भारतीय संस्कृति कितनी महान है कि जिससे भी लोगों का तन तंदुरुस्त रहे, मन प्रसन्न रहे और बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रकाश हो उसको धर्म जोड़ दिया । सूर्य को अर्घ्य देना भी धर्म का एक अंग माना गया है । आधुनिक विज्ञान के आधार पर भी सिद्ध हो चुका है कि सूर्य जीवनशक्ति का पुंज है इसलिए धनात्मक शक्ति का केन्द्र है ।
जब भगवान सूर्य को जल अर्पण किया जाता है, तब जब की धारा को पार करती हुई सूर्य की सप्तरंगी किरणें हमारे सिर से पैर तक पड़ती हैं, जो शरीर के सभी भागों को प्रभावित करती है । इससे हमें स्वतः ही ‘सूर्यकिरणयुक्त जल-चिकित्सा’ का लाभ मिलता है और बौद्धिक शक्ति में चमत्कारिक लाभ के साथ नेत्रज्योति, ओज-तेज, निर्णयशक्ति एवं पाचनशक्ति में वृद्धि पायी जाती है व शरीर स्वस्थ रहता है । इस चिकित्सा के प्रभाव से विकृत गैसें शरीर को प्रभावित नहीं करतीं । अर्घ्य जल को पार करके आने वाली सूर्यकिरणें शक्ति व सौंदर्य प्रदायक भी हैं । सूर्य प्रकाश के हरे, बैंगनी और अल्ट्रावायलेट भाग में जीवाणुओं को नष्ट करने की विशेष शक्ति है ।
अर्घ्य देने के बाद नाभि व भ्रूमध्य (भौहों के बीच) पर सूर्यकिरणों का आवाहन करने से क्रमशः मणिपुर व आज्ञा चक्रों का विकास होता है । इससे बुद्धि कुशाग्र हो जाती है । अतः हम सबको प्रतिदिन सूर्योदय के समय सूर्य को ताँबे के लोटे से अर्घ्य देना चाहिए । अर्घ्य देते समय इस ‘सूर्य गायत्री मंत्र’ का उच्चारण करना चाहिएः
‘ॐ आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि ।
तन्नो भानुः प्रचोदयात् ।’
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2009, पृष्ठ संख्या 28 अंक 198
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