सर्वज्ञ होते हुए भी अनजान

सर्वज्ञ होते हुए भी अनजान


(पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से)

‘विष्णुसहस्रनाम’ के 64वें श्लोक में भगवान का एक नाम दिया गया है ‘अविज्ञाता‘ अर्थात् अनजान । भगवान सबके आत्मा बनकर बैठे हैं तो सब कुछ जानते हैं लेकिन बड़े अनजान भी हैं । कैसे ? इसकी व्याख्या करते हुए भक्तजन बोलते हैं कि ‘भक्तों के दोष देखने में भगवान अनजान हैं ।’

भक्तों ने जो व्याख्या की है हम उसका विरोध नहीं करते, उनको धन्यवाद देते हैं लेकिन मेरी व्याख्या भी उसमें जोड़ दो कि ‘भक्त का, मनुष्य का, प्राणियों का अहित करने में भगवान अनजान हैं । जैसे माँ बच्चे का अहित नहीं कर सकती, ऐसे ही भगवान हमारा अहित नहीं कर सकते ।’

भक्त के दोष देखने में भगवान अनजान रहेंगे तो उसके दोष निकालेंगे कैसे ? वह निर्दोष कैसे बनेगा ? किसी का अमंगल करने का ज्ञान भगवान में नहीं है, दण्ड देंगे तो भी मंगल के लिए । जैसे माँ चपत लगायेगी तो भी मंगल के लिए और मिठाई खिलायेगी तो भी मंगल के लिए ।

भगवान को उलाहना दिया करो, उनसे छेड़खानी कर लिया करो कि ‘महाराज ! हम चाहे अज्ञानी हैं, अनजान हैं लेकिन आप भी अनजान हैं । हमारा अहित करने में आप अनजान हैं । है क्या ताकत आपमें हमारा अहित करने की, बोलो ?’ ऐसे आप भगवान को भी चुनौति (चैलेंज) दिया करो । भगवान वहाँ हार जायेंगे । जैसे – एक बच्चे ने माँ को चुनौती दी कि “माँ ! तू हमारा अमंगल नहीं कर सकती । हिम्मत है तो कर के दिखा ।” तो माँ बोलीः “इधर आ दिखाती हूँ !” बच्चा बोलाः “कुछ भी हो माँ ! तू अमंगल नहीं कर सकती ।” माँ बोलीः “अरे नटखट ! इधर आ तेरे को दिखाती हूँ ।” ऐसा करके कान पकड़कर धीरे से तमाचा लगाया । बोलीः “देख, मैंने तेरे को ठीक कर दिया न !” बच्चा बोलाः “हाँ, अहंकार से हम बेठीक हो गये थे, आपने तमाचा मारकर ठीक ही तो किया माँ ! अमंगल तो नहीं किया ! मैया रे मैया… प्रभु रे प्रभु…. हा हा हा….!”

ऐसे ही ठाकुर जी जो भी करेगे हमारे हित के लिए ही करेंगे । भगवान किसी का अमंगल नहीं कर सकते । जैसे – हम हमारे शरीर के किसी अंग का अमंगल नहीं करेंगे, चाहे उसको कटवा दें फिर भी अमंगल नहीं करेंगे, भलाई के लिए थोड़ा हिस्सा कटवायेंगे । भगवान कहते हैं-

सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ।

‘मेरा भक्त मुझको सम्पूर्ण भूत-प्राणियों का सुहृद अर्थात् स्वार्थरहित दयालु और प्रेमी, ऐसा तत्त्व से जानकर शांति को प्राप्त होता है ।’ (गीताः 5.29)

एक बार नारायण बापू (पूज्य बापू जी के मित्र संत) किसी बात पर आ गये तो मैं खूब हँसा । उन्होंने थोड़ा दम मारा तो मैं और हँसा । बोलेः “क्यों हँसते हो ?” मैं बोलाः “तुम्हारी ताकत नहीं है…!” महाराज पहुँचे हुए थे, अदृश्य होने की सिद्धियाँ थी उनके पास और जो भी संकल्प करते थे सफल होता था, यह भी मैं जानता था । नल गुफा में हमारे साथ रहते थे । सिद्धपुरुष थे लेकिन उनको मैंने दम मार दिया । मैंने कहाः “आपकी ताकत नहीं है….!” तो मेरी ओर देखने लगे । वे जानते थे कि मैं उनकी ताकत को जानता हूँ । मैंने कहाः “आप अहित कर ही नहीं सकते ।” फिर हँसने लगे । ऐसे आप भी कभी-कभी भगवान को चुनौती दिया करो कि ‘महाराज ! आप हमारा अमंगल करने में अनजान हैं, आपकी ताकत नहीं कि हमारा बुरा कर सको ।

साधु ते होई न कारज हानी । (श्री रामचरित. सुं.कां. 5.2)

आपके साधु भी हमारे कार्य की हानि नहीं कर सकते तो आप क्या कर सकते हो ? आप तो संतों के संत हैं । प्रभु ! आप हमारा अहित कैसे कर सकते हो ?’

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2009, पृष्ठ संख्या 12,13 अंक 199

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