सत्संग जीवन का कल्पवृक्ष है

सत्संग जीवन का कल्पवृक्ष है


परमात्मा मिलना उतना कठिन नहीं है जितना कि पावन सत्संग का मिलना कठिन है । यदि सत्संग के द्वारा परमात्मा की महिमा का पता न हो तो सम्भव है कि परमात्मा मिल जाय फिर भी उसकी पहचान न हो, उनके वास्तविक आनंद से वंचित रह जाओ । सब पूछो तो परमात्मा मिला हुआ ही है । उससे बिछुड़ना असम्भव है । फिर भी पावन सत्संग के अभाव में उस मिले हुए मालिक को कहीं दूर समझ रहे हो ।

पावन सत्संग के द्वारा मन से जगत की सत्यता हटती है । जब तक जगत सच्चा लता है तब तक सुख-दुःख होते हैं । जगत की सत्यता बाधित होते ही अर्थात् आत्मज्ञान होते ही परमात्मा का सच्चा आनंद प्राप्त होता है । हम चाहें तो महापुरुष हमको उसका स्वाद चखा सकते हैं परंतु इसके लिए सत्संग का सेवन करना जरूरी है । हृदय में सच्ची जिज्ञासा एवं श्रद्धा होना जरूरी है । जीवन में एक बार सत्संग का प्रवेश हो जाय तो बाद में और सब अपने-आप आ मिलता है और भाग्य को चमका देता है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2009, पृष्ठ संख्या 9 अंक 201

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