घर से जाओ खाके तो बाहर मिले पका के

घर से जाओ खाके तो बाहर मिले पका के


(पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से)

अंतर्यामी ईश्वर की शरण लेने से मनुष्य का अवश्य कल्याण होता है । उसके सहारे सब कार्य करने से मानव कार्य के बोझ से मुक्त हो जाता है । क्रिया का भार अपने ऊपर लेने से अहंकार की उत्पत्ति होती है, काम बिगड़ जाते हैं । जो सबसे बड़ा सहारा और पालनहार है, उस चैतन्यस्वरूप परमात्मा की शरण में जाने से किसी का सहारा नहीं लेना पड़ता ।

हर व्यक्ति अपने से किसी-न-किसी ऊँचे की शरण जाता है । बेल (लता) भी वृक्ष की शरण जाती है, तब ऊपर उठती है । अनपढ़ पठित की शरण जाता है तो विद्वान बनता है । हारा हुआ व्यक्ति हिम्मत वाले की शरण जाता है तो जीतता है । सब किसी-न-किसी का सहारा लेते ही हैं । छोटा नेता बड़े नेता के आगे-पीछे घूमता है और बड़ा नेता भी किसी और बड़े नेता के आगे पीछे घूमता है और वह बड़ा नेता संत या देवी-देवता की शरण लेता है, फिर चाहे किसी महापुरुष की कृपा की शरण ले या भगवान की कृपा की शरण ले । जब शरण लेनी ही है तो भाई ! आप सीधे परमात्मा की शरण दिलाने वाली भगवद्-साधना कर लो, ताकि इधर-उधर की शरण लेने की जरूरत न पड़े ।

कबीरा इह जग आयके बहुत से कीने मीत ।

जिन दिल बाँधा एक से वे सोय निश्चिंत ।।

बहुतों की शरण ली, बहुतों से मित्रता की ‘यह काम आयेगा, वह काम आयेगा, यह सेठ काम में आयेगा, यह नेता काम में आयेगा, यह फलाना भाई काम में आयेगा….’ ठीक है लेकिन आपका आत्मचैतन्य होगा तभी तो आप चल-फिर सकोगे और दूसरों के काम में आओगे । जो सतत् आपके काम आ रहा है, उसका पता सद्गुरु के सत्संग से पा लो, दीक्षा के द्वारा उससे नाता जोड़ लो तभी दूसरे कोई काम आयेंगे । अगर उस चैतन्यस्वरूप परमात्मा से संबंध नहीं तो दूसरे कब तक काम आयेगें ?

घर से जाओ भूखे तो बाहर मिलें धक्के ।

घर से जाओ खाके तो बाहर मिले पका के ।।

इसलिए रोज सुबह आप गुरुमंत्र जपते हुए सात्त्विक श्रद्धापूर्वक अपने हृदय को भगवदरस से भरो, भगवद्ध्यान से भरो, सत्संग की कोई पुस्तक पढ़कर या तो कैसेट सुनकर सत्संग के पवित्र विचारों से भरो, परमेश्वरीय आनंद से भर दो ।

आप तृप्त होकर फिर व्यवहार करिये, भूखे पेट कब तक मजदूरी करेंगे ? इतना तो मजदूर भी जानता है कि भले गरीबी है, फिर भी काम पर जाना है तो कुछ टिक्कड़ (रोटी) खाकर जाऊँ । ऐसे ही आपको भी जब बाहर किसी से मिलना है तो अंदर की एक दो प्याली पीकर फिर जाइये । वह प्याली बोतल की नहीं, भगवद्ध्यान की, भगवद्सत्संग की, भगवन्नाम-जप की, भगवद्स्मृति की प्याली पीजिये ।

जाम पर जाम पीने से क्या फायदा ?

रात बीती सुबह को अभागी अल्कोहल उतर जायेगी ।

तू हरिनाम की प्यालियाँ पिया कर,

तेरी सारी जिंदगी सुधर जायेगी, सुधर जायेगी ।।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2009, पृष्ठ संख्या 15 अंक 203

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