महेन्द्र चावला के आरोपों की हकीकत

महेन्द्र चावला के आरोपों की हकीकत


निंदकों, कुप्रचारकों की खुल गयी पोल

विदेशी षड्यंत्रकारियों का हत्था बनकर मीडिया में आश्रम के खिलाफ मनगढंत आरोपों की झड़ी प्रचारित करने वाले महेन्द्र चावला की न्यायाधीश श्री डी.के.त्रिवेदी जाँच आयोग के समक्ष पोल खुल गयी। चालबाज महेन्द्र ने वास्तविकता को स्वीकारते हुए उसने कहा कि मैं अहमदाबाद आश्रम में जब-जब आया और जितना समय निवास किया, तब मैंने आश्रम में कोई तंत्रविद्या होते हुए देखा नहीं।

आश्रम में छुपे भोंयरे (गुप्त सुरंग) होने का झूठा आरोप लगाने वाले महेन्द्र ने सच्चाई को स्वीकारते हुए माना कि यह बात सत्य है कि जिस जगह आश्रम का सामान रहता है अर्थात् स्टोर रूम है, उसे मैं भोंयरा कहता था।

श्री नारायण साँई के नाम के नकली दस्तावेज बनाने वाले महेन्द्र ने स्वीकार किया कि यह बात सत्य हे कि कम्पयूटर द्वारा किसी भी नाम का, किसी भी प्रकार का, किसी भी संस्था का तथा किसी भी साइज का लेटर हेड तैयार हो सकता है। बनावटी हस्ताक्षर किये गये हों, ऐसा मैं जानता हूँ।

महेन्द्र ने स्वीकार किया कि वह दिल्ली से दिनांक 5.8.2008 को हवाई जहाज द्वारा अहमदाबाद आया, जहाँ अविन वर्मा, वीणा चौहान व राजेश सोलंकी पहले से ही आमंत्रित थे। इन्होंने प्रेस कान्फ्रेन्स द्वारा आश्रम के विरोध के झूठे आरोपों की झड़ी लगा दी थी। साधारण आर्थिक स्थितिवाला महेन्द्र अचानक हवाई जहाजों में कैसे उड़ने लगा ? यह बात षड्यंत्रकारी के बड़े गिरोह से उसके जुड़े होने की पुष्टि करती है।

महेन्द्र के भाइयों ने पत्रकारों को दिये इंटरव्यू में बतायाः “आर्थिक स्थिति ठीक न होने के बावजूद हमने उसकी पढ़ाई के लिए पानीपत में अलग कमरे की व्यवस्था की थी। उसकी आदतें बिगड़ गयी। वह चोरियाँ भी करने लगा। एक बार वह घर से 7000 रूपये लेकर भाग गया था। उसने खुद के अपहरण का भी नाटक किया था और बाद में इस झूठ को स्वीकार कर लिया था।

इसके बाद वह आश्रम में गया। हमने सोचा वहाँ जाकर सुधर जायेगा लेकिन उसने अपना स्वभाव नहीं छोड़ा। और अब तो धर्मांतरणवालों का हथकंडा बन गया है और कुछ का कुछ बक रहा है। उसे जरूर 10-15 लाख रूपये मिले होंगे। नारायण साँई के बारे में उसने जो अनर्गल बातें बोली हैं वे बिल्कुल झूठी व मनगढंत है।”

महेन्द्र के भाइयों ने यह भी बतायाः “आश्रम से आने के बाद किसी के पैसे दबाने के मामले में महेन्द्र के खिलाफ एफ.आई.आर. भी दर्ज हुई थी। मार-पिटाई व झगड़ाखोरी उसका स्वभाव है। वास्तव में महेन्द्र के साथ और भी लोगों का गैंग है और ये लोग ही मैं नारायण साँई बोल रहा हूँ, मैं फलाना बोल रहा हूँ….. मैं यह कर दूँगा, वह कर दूँगा….. इस प्रकार दूसरों की आवाजें निकाल के पता नहीं क्या-क्या साजिशें रच रहे हैं।

अंततः महेन्द्र चावला की भी काली करतूतों का पर्दाफाश हो ही गया। इस चालबाज साजिशकर्ता को उसक घर परिवार के लोगों ने तो त्याग ही दिया है, साथ ही समाज के प्रबुद्धजनों की दुत्कार का भी सामना करना पड़ रहा है। भगवान सबको सदबुद्धि दें, सुधर जायें तो अच्छा है।

ऐसे विदेशियों के हथकंडे साबित हो ही रहे हैं। कोई जेल में है तो किसी को परेशानी ने घेर रखा है तो कोई प्रकृति के कोप का शिकार बन गये हैं। और उनके सूत्रधारों के खिलाफ उन्हीं का समुदाय हो गया है। यह कुदरत की अनुपम लीला है। कई देशों में तथाकथित धर्म के ठेकेदारों द्वारा सैंकड़ों बच्चों का यौन-शोषण कई वर्षों तक किया गया। गूंगे-बहरे, विकलांग बालकों का यौन-शोषण और वह भी इतने व्यापक पैमाने पर हुआ। उसका रहस्य प्रकृति के खोल के रख दिया है (जिसका विवरण ऋषि प्रसाद के पिछले अंक में प्रकाशित हुआ है)। ऐसी नौबत आयी कि साम, दाम, दंड, भेद आदि से भी विरोध न रूका। आखिरकार इन सूत्रधारों को जाहिर में माफी माँगनी पड़ी। पूरे यूरोप का वकील-समुदाय बालकों किशोरों का यौन-शोषण करने वालों के खिलाफ खड़ा हो गया। भारत को तोड़ने की साजिशें रचने वाले अपने कारनामों की वजह से खुद ही टूट रहे हैं। पैसों के बल से न जाने क्या-क्या कुप्रचार करवाते हैं परंतु सूर्य को बादलों की कालिमा क्या ढकेगी और कब तक ढकेगी ? स्वामी रामतीर्थ, स्वामी रामसुखदासजी आदि के खिलाफ इनकी साजिशें नाकामयाब रहीं। ऐसे ही अब भी नाकामायाबी के साथ कुदरत का कोप भी इनके सिर पर कहर बरसाने के लिए उद्यत हुआ है।

डॉ. प्रे. खो. मकवाना (एम.बी.बी.एस.)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2010, पृष्ठ संख्या 5,6, अंक 210

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