जो यहाँ मिला वह कहीं नहीं

जो यहाँ मिला वह कहीं नहीं


मेरा नाम जेम्स हिगिन्स है। मैं नौटिंघम (इंगलैंड) का रहने वाला हूँ। फरवरी 2007 को प्रयागराज के अर्धकुंभ के अवसर पर मैं भारत आया था। मेरा परम सौभाग्य था कि मेले में घूमते-घामते मैं संत श्री आसारामजी बापू के पावन सान्निध्य में जा पहुँचा। बापू जी के सत्संग में जाने का मेरा यह पहला अवसर था।

सत्संग-मंडप में अपार भीड़ थी इसलिए मुझे पीछे री बैठने की जगह मिली। कौन बोल रहे हैं, यह मैं नहीं देख पा रहा था। मुझे सत्संग जरा भी समझ में नहीं आ रहा था क्योंकि मुझे हिन्दी बिल्कुल नहीं आती थी, पर मेरे मन में उठकर चले जाने का विचार नहीं आया क्योंकि बड़ा आनन्द और शांति का अनुभव हो रहा था।

दूसरे दिन पुनः मैं सत्संग में गया। इस बार मुझे आगे बैठने को मिला। यह मेरे लिए परम सौभाग्य का दिन था। पूज्य बापूजी के सान्निध्यमात्र से मुझे गुरुतत्त्व की महत्ता समझ में आ गयी। उसके कुछ ही समय पश्चात् मैं इंग्लैंड वापस चला गया लेकिन 3 माह बाद मैं बापू जी के दर्शन के लिए बेचैन हो उठा।

मैं भारत वापस आ गया। उस समय बापूजी हरिद्वार में पूरा एक महीना रूके थे। मैं वहाँ जा पहुँचा, प्रतिदिन नियमित रूप से सत्संग सुनता। यद्यपि अब भी मैं सत्संग बिल्कुल नहीं समझ पाता था लेकिन बापू जी को ओर से आने वाला अतुलनीय प्रेम और आनंद का प्रवाह मुझे सुबह और शाम दोनों सत्रों में बाँधे रखता था। जब बापू जी हरिद्वार से जाने वाले थे, तब उन्होंने मुझे व्यासपीठ के पास बुलाया और शक्तिपात वर्षा का अनुपम प्रसाद दिया। उसी क्षण मेरे नेत्र आँसुओं से भर गये और मैं दंडवत् उनके श्रीचरणों में जा पड़ा, मुझे ऐसा अनुभव हुआ जिसका मैं वर्णन नहीं कर सकता।

उस दिन से मैं बापू जी का भक्त बन गया हूँ। अभी समय निकाल के आश्रम में आता रहता हूँ। बापू जी के सान्निध्य के इन थोड़े-से-दिनों में मुझे ढेर सारा प्रसाद मिला है। मेरा जन्म एक धनाढय परिवार में हुआ था। मेरे माता-पिता के पास मिलियन्स की (अरबों की) जमीन-जायदा है। मैं खूब घूमा-फिरा हूँ और अनेक देशों की यात्राएँ की हैं, लेकिन जो प्रेम और शांति मैंने पूज्य बापू जी के दिव्य सान्निध्य में पायी है वह मुझे दुनिया में कहीं नहीं मिली। कितना भी धन हो उससे वह आनंद नहीं खरीदा जा सकता, जो एक ब्रह्मज्ञानी संत दे सकते हैं। मेरी माता जी ने भी बापू जी से मंत्रदीक्षा ली है और बापू जी के श्रीचरणों में उनकी अटूट श्रद्धा है। वे साल में एक दो बार गुरुदेव के श्रीचरणों में प्रणाम करने व उनके आनंददायी सत्संग का श्रवण करने आती हैं।

सचमुच, यह भारत देश का परम सौभाग्य है कि संत श्री आसाराम जी बापू जैसे ब्रह्मज्ञानी संत यहाँ पर मौजूद हैं। अन्य संस्कृतियाँ तो उदय हुई और चली गयीं पर शाश्वत सनातन धर्म ऐसे संतों की बदौलत आज भी खड़ा है। मैं हिन्दू संस्कृति को विश्व की महानतम संस्कृति मानता हूँ कि मुझे पूज्य बापू जी से मंत्रदीक्षा मिली है और उनके सान्निध्य में रहने का अवसर मिला है। भारतीय लोग निश्चय ही धन्य हैं कि यह संस्कृति उन्हें धरोहर में मिली है और मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि यह चिरस्थायी हो। भारतमाता की जय, सदगुरुदेव की जय !

Mr James W. Higgins

27, Church Street, South Wells

NG25 OHQ, U.K.

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2010, पृष्ठ संख्या 31, अंक 212

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