निंदकों, कुप्रचारकों की खुल गयी पोल – ईश्वर ने उगला सच

निंदकों, कुप्रचारकों की खुल गयी पोल – ईश्वर ने उगला सच


धर्मांतरणवालों के सुनियोजित षड्यंत्र के तहत आश्रम पर झूठे आरोप लगाने वाले ईश्वर नायक को आखिर न्यायाधीश श्री डी.के. त्रिवेदी जाँच आयोग में विशेष पूछताछ के दौरान सच्चाई को स्वीकार करना ही पड़ा। परम पूज्य बापू जी ने करूणा कृपा कर महामृत्युंजय मंत्र द्वारा मृत्युशय्या पर पड़े ईश्वर नायक को नवजीवन दिया था। उसने माना कि ‘मैं जब कनाडा में बीमार पड़ा और मुझे अस्पताल में भर्ती किया गया तो उस दौरान मेरी पत्नी ने फोन द्वारा पूज्य बापू जी का सम्पर्क किया और उनकी सूचना के अनुसार मेरे बिस्तर के पास मंत्रजप किया, उससे मैं ठीक हो गया। मैं मंत्र की शक्ति में मानता हूँ।’

उसने यह भी कहा कि ‘पूज्य बापू जी पीड़ित व्यक्ति को ठीक करने के लिए उससे अथवा तो उसके मित्र-परिवार के पास से कोई पैसा, वस्तु नहीं लेते। पूज्य बापू जी द्वारा पीड़ित व्यक्ति को दुःख से मुक्त करने का जो कार्य किया जाता है, वह मेरी दृष्टि से पूज्य बापू जी की समाज सेवा का एक कार्य है।’

ईश्वर नायक ने यह भी माना कि आश्रम आने के पूर्व उसकी तथा उसके परिवार के लोगों की मानसिक स्थिति बिगड़ी हुई थी और व्यक्ति के खुद के कर्मों का उसके शरीर के अवयवों पर असर होता है। जैसे कर्म हों उसके अनुसार उसकी शारीरिक स्थिति में फर्क पड़ता है।

आश्रम के पवित्र वातावरण में रहकर ईश्वर नायक ने सुख-शांति का अनुभव किया। उसने स्वीकार किया कि ‘आश्रम में रहकर साधना करने के दौरान मैंने ऐसी स्थिति का अनुभव किया कि मैं जैसे किसी दिव्य जगत में हूँ। मैं एकदम प्रफुल्लित था और ध्यान में मार्मिक हास्य भी करता। मुझे अदभुत आनंद हुआ। आश्रमवासी सेवक (साधक) शयन के पूर्व शास्त्र की चर्चा, माला द्वारा मंत्रजप और ध्यान करके सोते हैं – यह आश्रम एक नित्यक्रम है।’

साजिशकर्ता ने तथा झूठी कहानियाँ बनाने वाले अखबार ने आश्रम के बड़ बादशाह (वटवृक्ष) के बारे में समाज में मिथ्या भ्रम फैलाये। इस बारे में ईश्वर नायक ने सच्चाई को स्वीकार करते हुए कहा कि ‘आश्रम में स्थित वटवृक्ष की परिक्रमा करने से साधकों के प्रश्नों का निराकरण हुआ है, लौकिक लाभ भी हुए हैं – ऐसा मैं जानता हूँ। वटवृक्ष की महिमा के बारे में लोगों के अनुभवों के पत्र एकत्रित करके मेरी पत्नी ने एक पुस्तक भी लिखनी शुरू की थी।’

ईश्वर नायक ने यह भी स्वीकार किया कि ‘पंचेड़, रतलाम (म.प्र.) के पास कोई एक गाँव में पूज्य बापूजी द्वारा एक भंडारे का आयोजन किया गया था। उसमें अनेक आदिवासी आये और भोजन किया। भोजन कराने के बाद पूज्य बापू जी द्वारा मुझे नोटों का एक बंडल उन आदिवासियों में बाँटने के लिए दिया। उस समय मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि पूज्य बापू जी द्वारा मुझे दिये नोट वहाँ उपस्थित सभी आदिवासियों में बाँटने के बाद भी कम नहीं होते थे ! इससे मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने ऐसा चमत्कार देखा कि नोटों का जो बंडल मुझे बाँटने के लिए दिया गया था, वह बढ़ गया है।’

कृतघ्नता का कोई प्रायश्चित नहीं है। परम पूज्य बापू जी के अनगिनत उपकारों को भूलकर षड्यंत्रकारियों का साथ देने वाले ईश्वर नायक ने स्वयं ही अपने हाथों मानो, अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी चलायी है, जिससे वह सज्जनों की दृष्टि में धिक्कार का पात्र बन गया है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2010, पृष्ठ संख्या 7, अंक 212

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