शीत ऋतु विशेष

शीत ऋतु विशेष


(शीत ऋतुः 23 अक्तूबर से 17 फरवरी)

शीत ऋतु में पाचन शक्ति प्रबल रहती है। अतः इस समय लिया गया पौष्टिक व बलवर्धक आहार वर्ष भर शरीर को तेज, बल और पुष्टि प्रदान करता है। आइये, इस ऋतु में अपनी सेहत बनाने के लिए कुछ सरल प्रयोग जानें।

बल, सौंदर्य व आयुवर्धक प्रयोगः शरद पूर्णिमा के बाद पुष्ट हुए आँवलों के रस 4 चम्मच, शुद्ध शहद 2 चम्मच् व गाय का घी 1 चम्मच मिलाकर नियमित सेवन करें। इससे बल, वर्ण, ओज, कांति व दीर्घायुष्य की प्राप्ति होती है।

मस्तिष्क शक्तिवर्धक प्रयोगः 6 से 10 काली मिर्च, 2 बादाम, 2 छोटी इलायची, 1 गुलाब का फूल व आधा चम्मच खसखस रात को एक कुल्हड़ में पानी में भिगोकर रखें। सुबह बादाम के छिलके उतारकर सबको मिलाकर पीस लें व गर्म दूध के साथ मिश्री मिलाकर पियें। इसके बाद 2 घंटे तक कुछ न खायें। इससे मस्तिष्क की थकान दूर होकर तरावट आती है एवं शक्ति बढ़ती है। यह प्रयोग 2-3 हफ्ते नियमित करें।

स्फूर्तिदायक पेयः 2 चम्मच मेथीदाना 200 मि.ली. पानी में रात भिगोकर रखें। सुबह धीमी आँच पर चौथाई पानी शेष रहने तक उबालें। छानकर गुनगुना रहने पर 2 चम्मच शुद्ध शहद मिलाकर पियें। दिन भर शक्ति व स्फूर्ति बनी रहेगी।

पौष्टिक नाश्ताः चना, मूँग, मोठ यह सब मिलाकर एक कटोरी, एक मुट्ठी भर मूँगफली व एक चम्मच तिल (काले हों तो उत्तम) रात भर पानी में भिगोकर रखें। सुबह नमक मिलाकर भाप लें, उबाल लें। इसमें हरा धनिया, पालक व पत्तागोभी काटकर तथा चुकंदर, मूली एवं गाजर कद्दूकश करके मिला दें। ऊपर से काली मिर्च बुरककर नींबू निचोड़ दें। चार व्यक्तियों के लिए नाश्ता तैयार है। इसे खूब चबा-चबाकर खायें। यह नाश्ता सभी प्रकार खनिज-द्रव्यों, प्रोटीन्स, विटामिन्स व आवश्यक कैलरीज की पूर्ति करता है। जिनकी उम्र 60 साल से अधिक है व जिनकी पाचनशक्ति कमजोर है, उनको नाश्ता नहीं करना चाहिए।

शक्ति संवर्धक आहारः बाजरे के आटे में तिल मिलाकर बनायी गयी रोटी पुराने गुड़ व घी के साथ खाना, यह शक्ति-संवर्धन का उत्तम स्रोत है। 100 ग्राम बाजरे से 45 मि.ग्रा कैल्शियम, 5 मि.ग्रा. लौह व 361 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। तिल व गुड़ में भी कैल्शियम व लौह प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।

सर्दियों में पत्तों सहित ताजी, कोमल मूली का सेवन शक्तिवर्धक सरल साधन है। मूली में गंधक, पोटैशियम, आयोडीन, कैल्शियम, लौह, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम आदि खनिज विपुल मात्रा में पाये जाते हैं। अस्थि-निर्माण में इनकी विशेष आवश्यकता होती है। (पुरानी, पकी मूली अथवा सूखी (बड़ी, मोटी) मूली त्रिदोष-प्रकोपक होने के कारण त्याज्य है।)

बल-वीर्य-पुष्टिवर्धक प्रयोगः शीत ऋतु में दही का सेवन लाभदायी है। दही में दूध से डेढ़ गुना अधिक कैल्शियम पाया जाता है। यह दूध की अपेक्षा जल्दी पच जाता है। शीघ्र शक्ति प्रदान करने वाले द्रव्यों में से दही एक है। ताजे, मधुर दही में थोड़ी मिश्री मिलाकर मथ लें (इससे दही के दोष नष्ट हो जाते हैं) व दोपहर में भोजन के साथ खायें। इससे शरीर पुष्ट हो जाता है।

सावधानीः आम, अजीर्ण, कफ, सर्दी-जुकाम, रक्तपित्त, गुर्दे व यकृत की बीमारी एवं हृदयरोग वालों को दही का सेवन नहीं करना चाहिए।

इन प्रयोगों में देश (स्थान), व्यक्ति की उम्र, प्रकृति व पाचन के अनुसार द्रव्यों की मात्रा कम या अधिक ली जा सकती है।

शीत ऋतु में उपयोगी अश्वगंधा पाक

लाभः सर्दियों में अश्वगंधा से बने हुए पाक का सेवन करने से पूरे वर्ष शरीर में शक्ति, स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है।

यह पाक शक्तिवर्धक, वीर्यवर्धक, स्नायु व मांसपेशियों को ताकत देने वाला एवं कद बढ़ाने वाला एक पौष्टिक रसायन है। यह धातु की कमजोरी, शारीरिक-मानसिक कमजोरी आदि के लिए उत्तम औषधि है। इसमें कैल्शियम, लौह तथा जीवनसत्त्व (विटामिन्स) भी प्रचुर मात्रा में होते हैं।

अश्वगंधा अत्यन्त वाजीकर अर्थात शुक्रधातु की त्वरित वृद्धि करने वाला रसायन है। इसके सेवन से शुक्राणुओं की वृद्धि होती है एवं वीर्यदोष दूर होते हैं। धातु की कमजोरी, स्वप्नदोष, पेशाब के साथ धातु जाना आदि विकारों में इसका प्रयोग बहुत ही लाभदायी है।

यह पाक अपने मधुर व स्निग्ध गुणों से रस-रक्तादि सप्तधातुओं की वृद्धि करता है। अतः मांसपेशियों की कमजोरी, रोगों के बाद आने वाली दुर्बलता तथा कुपोषण के कारण आने वाली कृशता आदि में विशेष उपयोगी है। इससे विशेषतः मांस व शुक्र धातु की वृद्धि होती है। अतः यह राज्यक्ष्मा(क्षयरोग) में भी लाभदायी है। क्षयरोग में अश्वगंधा पाक के साथ ‘सुवर्ण मालती’ गोली का प्रयोग करें। किफायती दामों में शुद्ध ‘सुवर्ण मालती’ व ‘अश्वगंधा चूर्ण’ आश्रम के सभी उपचार केन्द्रों व स्टॉलों पर उपलब्ध हैं।

जब धातुओं का क्षय होने से वात का प्रकोप होकर शरीर में दर्द होता है, तब यह दवा बहुत लाभ करती है। इसका असर वातवाहिनी नाड़ी पर विशेष होता है। अगर वायु की विशेष तकलीफ है तो इसके साथ ‘महायोगराज गुगल’ गोली का प्रयोग करें।

इसके सेवन से नींद भी अच्छी आती है। यह वातशामक तथा रसायन होने के कारण विस्मृति, यादशक्ति की कमी, उन्माद, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) आदि मनोविकारों में भी लाभदायी है। दूध के साथ सेवन करने से शरीर में लाल रक्तकणों की वृद्धि होती है, जठराग्नि प्रदीप्त होती है, शरीर में शक्ति आती है व कांति बढ़ती है। सर्दियों में इसका लाभ अवश्य उठायें।

विधिः 480 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को 6 लीटर गाये के दूध में, दूध गाढ़ा होने तक पकायें। दालचीनी (तज), तेजपत्ता, नागकेशर और इलायची का चूर्ण प्रत्येक 15-15 ग्राम मात्रा में लें। जायफल, केसर, वंशलोचन, मोचरस, जटामांसी, चंदन, खैरसार (कत्था), जावित्री (जावंत्री), पीपरामूल, लौंग, कंकोल (कबाब चीनी), शुद्ध भिलावे की मिंगी, अखरोट की गिरी, सिंघाड़ा, गोखरू का महीन चूर्ण प्रत्येक 7.5-7.5 ग्राम की मात्रा में लें। रस सिंदूर, अभ्रकभस्म, नागभस्म, बंगभस्म, लौहभस्म प्रत्येक 7.5-7.5 ग्राम की मात्रा में लें। उपर्युक्त सभी चूर्ण व भस्म मिलाकर अश्वगंधा से सिद्ध किये दूध में मिला दें। 3 किलो मिश्री अथवा चीनी की चाशनी बना लें। जब चाशनी बनकर तैयार हो जाय तब उसमें से 1-2 बूँद निकालकर उँगली से देखें, लच्छेदार तार छूटने लगें तब इस चाशनी में उपर्युक्त मिश्रण मिला दें। कलछी से खूब घोंटे, जिससे सब अच्छी तरह से मिल जाये। इस समय पाक के नीचे तेज अग्नि न हो। सब औषधियाँ अच्छी तरह से मिल जाने के बाद पाक को चूल्हे से उतार लें।

परीक्षणः पूर्वोक्त प्रकार से औषधियाँ डालकर जब पाक तैयार हो जाता है, तब वह कलछी से उठाने पर तार-सा बँधकर उठता है। थोड़ा ठंडा करके 1-2 बूँद पानी में डालने से उसमें डूबकर एक जगह बैठ जाता है, फैलता नहीं। ठंडा होने पर उँगली से दबाने पर उसमें उँगलियों की रेखाओं के निशान बन जाते हैं।

पाक को थाली में रखकर ठंडा करें। ठंडा होने पर चीनी मिट्टी या काँच के बर्तन में भरकर रखें, प्लास्टिक में नहीं। 10 से 15 ग्राम पाक सुबह शहद या गाय के दूध के साथ लें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 29,30 अंक 215

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