भगवान का प्रिय बनना है ?

भगवान का प्रिय बनना है ?


आप भगवान को अपने-अपने ढंग से, अपनी-अपनी मान्यता से प्रेम करते हैं परंतु यदि आप भगवान से ही पूछें कि ‘प्रभु ! आपको कौन विशेष प्यारा है ? और भगवान के मार्गदर्शन में प्रेम-पथ पर चलना शुरू करें तो वह दिन दूर नहीं जब आप प्रेममूर्ति, भगवन्नमूर्ति, आनंदमूर्ति हो जायेंगे। भगवान कहते हैं ऐसे भक्त मुझे प्रिय हैं-

जो किसी से द्वेष नहीं करते। सबके मित्र हैं, दयालु हैं। जिनमें न ममता है, न अहंकार है। सुख-दुःख दोनों जिनके लिए समान हैं। जो क्षमावान हैं।

जो सदा संतोषी हैं, योगी हैं। शरीर, इन्द्रिय तथा मन को वश में रखते हैं। दृढ़ निश्चयवाले हैं। मन और बुद्धि जिन्होंने भगवान को अर्पित कर रखी है।

न तो उनसे किसी जीव को भय होता है, न उन्हें किसी जीव से भय होता है। उन्हें न तो हर्ष है, न संताप।

उन्हें किसी चीज की इच्छा नहीं रहती। बाहर भीतर से वे पवित्र रहते हैं, चतुर होते हैं। किसी से पक्षपात नहीं करते। दुःखों से मुक्त रहते हैं। किसी भी कर्म में कर्तापन का अभिमान नहीं रखते।

दुःखी प्रसन्न दिखते हुए भी ऐसे महापुरुष गहराई में सम रहते हैं। वे न किसी बात का शोक करते हैं, न कुछ चाहते हैं। शुभ और अशुभ सभी कर्मों का फल उन्होंने छोड़ रखा है।

मित्र और शत्रु में उनका एक सा भाव रहता है। मान और अपमान, गर्मी और सर्दी, सुख और दुःख उनके लिए बराबर हैं। संसार में उनकी कोई आसक्ति नहीं है।

निंदा और स्तुति उनके लिए बराबर हैं। वे मौन रहते हैं। जो मिल जाये उसी में वे संतुष्ट रहते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 7, अंक 216

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