लक्ष्मी जी कहाँ ठहरती हैं और कहाँ से चली जाती हैं ?

लक्ष्मी जी कहाँ ठहरती हैं और कहाँ से चली जाती हैं ?


‘देवी भागवत’ में कथा आती है कि जब देवराज इन्द्र राज्यहीन, श्रीहीन हो गये तो वे समस्त देवताओं सहित गुरुदेव बृहस्पति जी को साथ में लेकर ब्रह्मा जी के पास गये । देवगुरु बृहस्पति जी ने सारा वृत्तान्त ब्रह्मा जी को कह सुनाया । तब ब्रह्मा जी सबको लेकर भगवान नारायण के पास गये । परन्तु वहाँ पहुँचते ही सभी देवतागण भयभीत हो गये क्योंकि वे श्री हीन होने के कारण निस्तेज एवं भयग्रस्त थे ।

भगवान श्री हरि उनको ऐसा देखकर बोलेः ब्रह्मन तथा देवताओ ! भय मत करो । मेरे रहते तुम लोगों को किस बात का भय है ! मैं तुम्हें परम ऐश्वर्य को बढ़ाने वाली अचल लक्ष्मी प्रदान करूँगा । परंतु मैं कुछ समयोचित बात कहता हूँ, तुम लोग उस पर ध्यान दो । मेरे वचन हितकर, सत्य, सारभूत एवं परिणाम में सुखावह हैं । जैसे अखिल विश्व के सम्पूर्ण प्राणी निरन्तर मेरे अधीर रहते हैं, वैसे ही मैं भी अपने भक्तों के अधीन हूँ । मैं अपनी इच्छा से कभी कुछ नहीं कर सकता । सदा मेरे भजन-चिंतन में लगे रहने वाला निरंकुश भक्त जिस पर रूष्ट हो जाता है, उसके घर लक्ष्मीसहित मैं नहीं ठहर सकता – यह बिल्कुल निश्चित है ।

मुनिवर दुर्वासा महाभाग शंकर के अंश व वैष्णव हैं । उनके हृदय में मेरे प्रति अटूट श्रद्धा भी है । उन्होंने तुम्हें श्राप दे दिया है । अतएव तुम्हारे घर से लक्ष्मीसहित मैं चला आया हूँ, क्योंकि जहाँ शंखध्वनि नहीं होती, तुलसी का निवास नहीं रहता, शंकरजी की पूजा नहीं होती, वहाँ लक्ष्मी नहीं रहतीं ।

ब्रह्मन् व देवताओ ! जिस स्थान पर मेरे भक्तों की निंदा होती है, वहाँ रहने वाली महालक्ष्मी के मन में अपार क्रोध उत्पन्न हो जाता है । अतः वे उस स्थान को छोड़ देती हैं । जो मेरी उपासना नहीं करता तथा एकादशी और जन्माष्टमी के दिन अन्न खाता है, उस मूर्ख व्यक्ति के घर से भी लक्ष्मी चली जाती है । जो मेरे नाम तथा अपनी कन्या का विक्रय करता है एव जहाँ अतिथि भोजन नहीं पाते, उस घर को त्यागकर मेरी प्रिया लक्ष्मी चली जाती है । जो अशुद्ध हृदय, क्रूर, हिंसक व निंदक है, उसके हाथ का जल पीने में भगवती लक्ष्मी डरती हैं, अतः उसके घर से वे चल देती हैं । जो कायर व्यक्तों का अन्न खाता है, निष्प्रयोजन तृण तोड़ता है, नखों से पृथ्वी को कुरेदता रहता है, निराशावादी है, सूर्योदय के समय भोजन करता है, दिन में सोता व मैथुन करता है और जो सदाचारहीन है, ऐसे मूर्खों के घर से मेरी प्रिया लक्ष्मी चली जाती है ।

जो अल्पज्ञानी व्यक्ति गीले पैर या नंगा होकर सोता है तथा निरंतर बेसिर-पैर की बातें बोलता रहता है, उसके घर से वे साध्वी लक्ष्मी चली जाती हैं । जो सिर पर तेल लगाकर उसी से दूसरे के अंग को स्पर्श करता है, अपने सिर का तेल दूसरे को लगाता है तथा अपनी गोद में बाजा लेकर उसको बजाता है, उसके घर से रुष्ट होकर लक्ष्मी चली जाती है ।

जो व्रत, उपवास, संध्या व भगवद्भक्ति से हीन है, उस अपवित्र पुरुष के घर से मेरी प्रिया लक्ष्मी चली जाती हैं । जो दूसरों की निंदा तथा उनसे द्वेष करता है, जीवों की सदा हिंसा करता है व दयारहित है, उसके घर से जगज्जननी लक्ष्मी चली जाती है । जिस स्थान पर भगवान श्री हरि की चर्चा होती है और उनके गुणों का कीर्तन होता है, वहीं पर सम्पूर्ण मंगलों को भी मंगल प्रदान करने वाली भगवती लक्ष्मी निवास करती है ।

पितामह ! जहाँ भगवान व उनके भक्तों का यश गाया जाता है, वहीं उनकी प्राणप्रिया भगवती लक्ष्मी सदा विराजती हैं । जहाँ शंखध्वनी होती है, तुलसी का निवास रहता है व इनकी सेवा, वंदना होती है, वहाँ लक्ष्मी सदा विद्यमान रहती है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2011, पृष्ठ संख्या 10 अंक 228

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