पूज्य बापू जी के कारण देशभर में प्राकृतिक रंगों से होली खेलने का रूझान हर वर्ष बढ़ रहा है। जो शिवरात्रि को शिवजी को अभिषेक पानी की बरबादी है, दीपावली पर दीये जलाना तेल की बरबादी है ऐसी बकवास करते हैं, उन्होंने निशाना बनाया अब होली को। ऐरोली (मुंबई) व सूरत कार्यक्रमों के दिन कुछ चैनलों द्वारा देशवासियों को महाराष्ट्र के बीड़, जालना, सांगली, उस्मानाबाद आदि उन स्थानों के अकालग्रस्तों के इन्टरव्यू दिखाये गये जहाँ होली कार्यक्रम हुआ ही नहीं था। इन क्षेत्रों में अकाल की स्थिति होली के कारण नहीं, शराब, कोल्डड्रिंक्स, निर्दोष गायों व पशुओं की हत्या आदि के लिए पानी की विपुल मात्रा में बरबादी तथा पीने के पानी के रख-रखाव में प्रशासनिक लापरवाही के कारण पैदा हुई है। वेटिकन फंड से चलने वाले मीडिया के तबके ने अपनी देशभक्ति का परिचय देते हुए उऩ असंख्य स्थानों पर अपनी बगुला छाप आँखें मूँद लीं, जहाँ वास्तव में पानी की बरबादी हो रही है। वे शराब कबाब आदि को बरबादी से जोड़ना ही नहीं चाहते, क्यों ? क्योंकि जो बिकाऊ मीडिया है, वह सत्य का पक्षधर नहीं हो सकता।
महाराष्ट्र में शराब बनाने की मात्र एक कम्पनी द्वारा पानी की बरबादी 20,14,00,00,000 लिटर।
कोल्डड्रिंक्स की मात्र एक कम्पनी द्वारा पानी की बरबादी 5,16,80,00,000 लिटर।
महाराष्ट्र में आई पी ऐल मैचों के मात्र तीन मैदानों के लिए पानी की बरबादी 64,80,000 लिटर।
केवल मुंबई में पीने के पानी की पाइपलाइनें फटने से पानी की बरबादी 6,50,00,000 लिटर।
महाराष्ट्र के मात्र एक कत्लखाने में गोहत्या के लिए रोज पानी की बरबादी 18,00,000 लिटर।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2013, पृष्ठ संख्या 2, अंक 244
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