Monthly Archives: May 2013

पापी का जूता, पापी के ही सर, संयम सात्त्विक धैर्य का देखो असर – पूज्य बापू जी


धृति अर्थात् धैर्य के तीन प्रकार हैं-तामसी धृति, राजसी धृति और सात्त्विक धृति। जो पापी, अपराधी, चोर, डकैत होते हैं वे भी धैर्य रख के अपने कर्म को अंजाम देने में सफल हो जाते हैं, यह ʹतामसी धृतिʹ है।

जो राजसी व्यक्ति हैं वे भी ठंडी-गर्मी सह के, धन-सत्ता बढ़ा के, अहंकार पोसकर गद्दी, कुर्सी के लिए धैर्य रखते हैं, यह ʹराजसी धैर्यʹ है।

तीसरे होते हैं सात्त्विक धैर्यवान। वे परमात्मा में विश्रांति पाने के लिए चल पड़ते हैं। साधन-भजन, परोपकार करते हैं, मान-अपमान आता है तो धैर्य रखते हैं। सफलता-विफलता में विह्वल होकर अपने आत्मा-परमात्मा को पाने का उद्देश्य नहीं छोड़ते और कठिनाइयों से भी डरते नहीं हैं, अपने उद्देश्य में डट जाते हैं।

बाल या यौवन काल में जिनके जीवन में सत्संग आ जाता है, उनके जीवन में भगवान की धृतिशक्ति सात्त्विक रूप में चमकती। जिसके जीवन में यह सात्त्विक धृति आती है, उसकी प्रज्ञा ठीक काम करने लगती है। वह छोटे से छोटा, लाचार से लाचार अकेला व्यक्ति तो क्या कन्या भी महानता का इतिहास रच डालती है।

सात्त्विक धृति के धनी व्यक्ति के ऊपर कैसी भी आफतें आ जायें, वह अपनी वर्तमान अवस्था में ही ऊपर उठता है। ʹमेरा भाग्य ऐसा है अथवा बाद में ऐसा होगाʹ , नहीं… अभी से ही। उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम का धृतिपूर्वक सदुपयोग करके छोटे से छोटे व्यक्ति भी महान हो गये, जैसे – शबरी भीलन।

जिस मनुष्य के जीवन में सात्त्विक धृति है, यदि वह ठान ले ते इतिहास का देदीप्यमान मार्गदर्शक बन सकता है, फिर वह चाहे कोई बेचारी अबला कन्या क्यों न हो, बड़े-बड़े तीसमारखाँओं को दिन में तारे दिखा सकती है।

आज सोनगढ़ इलाके का ʹवावʹ गाँव कन्या सोनबा की धृति की गवाही दे रहा है। सोनबा के पिता का नाम था मोकल सिंह। भावनगर जिले में सोनगढ़ के नजदीक एक छोटा सा गाँव था। सेंदरड़ा। एक दिन वह साहसी कन्या कहीं जा रही थी। उसे घुड़सवारी का शौक था। उसने देखा कि सामने से यवन सैनिकों का टोला आ रहा है और सूबेदार मेरे पर बुरी नजर डालता हुआ नजदीक आ रहा है। उस युवती ने आँखें अँगारे उगलें ऐसे ढंग से उसके सामने देखा लेकिन वह भी तो सूबेदार था, जूनागढ़ का सर्वेसर्वा !

सूबेदार ने कहाः “अरे सुन्दरी ! तेरे जैसी सुंदरी तो मेरी बेगम बनने के काबिल है। आ, तू मेरे महल में रहने के काबिल है।”

ऐसी गंदी-गंदी बातें सुनायीं कि सोनबा का खून खौलने लगा। उसने कहाः “हे दुर्बुद्धि दुष्ट ! सँभल के बात कर। तेरे दिन पूरे होने को हैं इसलिए तू मेरे ऊपर बुरी नजर डाल रहा है। तेरी आँखें निकाल के कौवों को दे दूँगी। तेरे साथ सेना है लेकिन मेरे साथ गुरु के वचन हैं। उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति, पराक्रम – ये छः सदगुण जिसके पास होते हैं, उस पर कदम-कदम पर परमात्मा कृपा बरसाता है। अगर तू अपनी जान बचाना चाहता है तो यह बकवास बंद कर, तू अपने रास्ते जा और मैं अपने रास्ते जा रही हूँ।”

“अरे बिहिश्त की परी ! तेरे जैसी सुंदरी और वीरांगना को हम अपनी खास पटरानी बनायेंगे। तुम अब हमारे हाथ से नहीं जा सकती चिड़िया ! सैनिको ! घेर लो इस सुन्दरी को।”

सोनबा ने देखा कि ये सैनिक मुझे घेरेंगे और यह दुष्ट मनचाहा आचरण करके मुझे जूनागढ़ ले जाना चाहेगा… हम्ઽઽઽ…. ૐ….. ૐ…. ૐ…. घोड़ी को ऐड़ी मारी। घोड़ी घूमती गयी और तलवार एक दो सैनिकों गिरा दिया। दूसरे सैनिक पकड़ने की कोशिश तो कर रहे थे लेकिन डर के मारे नजदीक नहीं आर रहे थे। घोड़ी उछाल मारते हुए सैनिकों के बीच में से भाग गयी लेकिन सोनबा जानती थी कि सूबेदार मेरा पीछा करेगा। उसने जाकर अपने पिता को बताया।

मोकल सिंह ने सारी बात समझकर अपने प्रजाजनों से कहाः “क्षत्रिय की कन्या पर अत्याचार, पूरी क्षत्रिय जाति का अपमान है। वह सूबेदार सेना लेकर आयेगा और हमारी छोटी सी रियासत को कुचलने की कोशिश करेगा लेकिन प्राण कुर्बान करके भी कन्या की धर्मरक्षा करना हमारा कर्तव्य है।”

“हाँ, हमारा कर्तव्य है।” सभी ने एक स्वर में कहा और लड़ने का निर्णय किया।

गाँव वालों ने रास्ते पर काँटों की बाड़ कर दी परंतु छोटी-सी रियासत को कुचलना सूबेदार के लिए क्या बड़ी बात थी ! रणभेरी बजा दी। हाथी ने सब इधर-उधर कर दिया। उसकी सेना ने पूरे गाँव को घेर लिया। खन… खन…. खन…. तलवारें चलने लगीं। सूबेदार के सैनिक कटने लगे।

आखिर सूबेदार ने कहाः “ये मनोबल से मजबूत हैं। गोलियाँ चलाओ। इनके पास बंदूकों की व्यवस्था नहीं है। तलवार और बंदूक की लड़ाई में तो बंदूक ही जीतेगी।” धड़-धड़-धड़ सेंदरड़ा गाँव के मुट्ठीभर सैनिक बलि चढ़ते देख सोनबा ने पिता जी से कहाः “पिता जी ! आप संधि का झंडा फहराइये।”

“संधि ! वह दुष्ट आकर तुझे ले जायेगा।”

“पिता श्री ! मैं आपकी कन्या हूँ। आप जरा भी संदेह नहीं रखिये। अपने कुल की प्रतिष्ठा को हानि पहुँचे ऐसा मैं कभी नहीं करूँगी। इस समय उनके पास बंदूकें हैं और हमारी सेना के पास बंदूकें नहीं हैं। इस समय बल से शत्रुओं के साथ हम नहीं जीत पायेंगे, बुद्धि से जीतना पड़ेगा।”

शास्त्र कहते हैं – उद्यम, साहस, धैर्य तो हो लेकिन बुद्धि का उपयोग भी हो। ये तीन सदगुण हैं और बुद्धि नहीं है तो मारे जायेंगे। सोनबा ने पिता के कान में कुछ बात कह दी।

पिता ने झंडा दिखाया कि हम आपसे लड़ना नहीं चाहते। सूबेदार ने देखा कि जब ये डर गये हैं और संधि करना चाहते हैं तो कोई हर्ज नहीं है। वह  बोलाः “मुझे तो बस वह सुंदरी चाहिए।”

सोनबा के पिता ने कहाः “तुमने इस छोटी सी बात के लिए नरसंहार करवाया ! तुम बोलते तो हम तुम्हारे जैसे सूबेदार के साथ अपनी बेटी का रिश्ता खुशी-खुशी कर देते। अब हमारी कन्या का विवाह तो हम तुमसे ही करेंगे लेकिन हमारे रीति-रिवाज के हिसाब से। अभी सिंहस्थ का साल है। इस सिहंस्थ में अगर विवाह करेंगे तो कन्या विधवा होकर लौटेगी। सिंहस्थ के बाद धूमधाम से विवाह करेंगे।”

सूबेदारः “अच्छी बात है।”

वह मूर्ख खुश हो गया।

मोकल सिंह ने कहाः “देखो सूबेदार जी ! हमारी रीति रिवाज के अनुसार कन्या को सुमुहूर्त चढ़ाना चाहिए।”

सुमुहूर्त मतलब क्या ?”

क्या है सुमुहूर्त का राज ? सोनबा ने पिता के कान में कौन सी बात कही ? क्या सूबेदार सोनबा से विवाह कर सका ? जानने के लिए इंतजार कीजिये अगले अंक का।)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2013, पृष्ठ संख्या 27,28, अंक 244

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

मोकल सिंह ने कहाः “वर पक्ष की ओर से कन्या को हीरे मोती के गहने तथा कीमती कपड़े आदि भेजने का रिवाज है। इसको हमारे यहाँ सुमूहूर्त कहते है।”

सूबेदारः “हमको क्या कमी है ! जूनागढ़ जाकर सब भेज देंगे। अभी तो ये नकद दस हजार सोने की मोहरें रख लो।” और फिर सूबेदार चल पड़ा जूनागढ़।

जिस जगह सूबेदार के साथ भिडंत हुई थी वहाँ सोनबा अपने कुटुम्बी लोगों को लेकर गयी और बोलीः “हमें यहाँ बावड़ी खुदवानी है। मनुष्यों और गाय-भैंसों के लिए पानी की किल्लत है।” बावड़ी का काम शुरु हुआ।

कुछ दिन बीते। एक राजपूत चिट्ठी लेकर सूबेदार के पास पहुँचा। चिट्ठी में लिखा था कि ʹकुंवरी साहेबा तीर्थयात्रा को जा रही हैं। तीर्थयात्रा में सखियाँ, सहेलियाँ भी जायेंगी, 20 हजार सोना-मोहरें दे दो।ʹ

“अरे, 20 क्या 25 हजार ले जाओ। ऐसी वीरांगना मिलेगी मुझे !”

25 हजार सोना-मोहरें दे दीं मूर्ख ने।

सोनबा ने पहले की 10 हजार और अब की 25 हजार सोने की मोहरें सूबेदार की मौत के लिए बावड़ी खुदवाने में लगा दी, जिसमें नीचे तलघर बनवाया। उसकी बनावट ऐसी थी कि ऊपर से पानी की बावड़ी दिखे लेकिन नीचे पूरा गाँव आ जाय ताकि सेंदरड़ा गाँव के लोग गुप्त रूप से रह सकें और कभी शत्रु आये तो उसे पता भी नहीं चले की कहाँ से कौन निकलकर आया। सोनबा ने बड़ी चतुराई से ऐसी बावड़ी खुदवायी क्योंकि उसके पास गुरुमंत्र था, ध्यान था। सुबह उठती तो ललाट पर भ्रूमध्य में ध्यान करती तो उसको अंतरात्मा की ऐसी प्रेरणा मिलती रही कि बड़े-बड़े साजिशकर्ता भी ठोकर खा गये।

जब वर्ष पूरा होने को आया तब सूबेदार ने कहलवाया कि अब शादी के लिए तैयारी कोर। मोकल सिंह ने कुछ टेढ़ी-मेढ़ी बात सुना दी कि ʹसोनबा से शादी करना माना कब्र में जाना है।ʹ

“हं….. मेरे लिए छोटे से गाँव का मुखिया ऐसा बोल जाये !….” सूबेदार ने सेना तैयार की और सेंदरड़ा गाँव के नजदीक आकर पड़ाव डाला। “एक बार संधि कर चुके हो, क्या फिर से मौत के घाट उतरना चाहते हो ? हा…. हा…. हा….”

धैर्य तो है इसके पास लेकिन तामसी धैर्य है। रात को शराब पी, मांस खाया और सोचने लगा कि ʹसुबह इन पर अपन सफल हो जायेंगे…ʹ राजसी धृति है। ʹऔर चाहिए, और चाहिए….ʹ – लगे रहते हैं लोभी लोग। ये दोनों धृतियाँ व्यक्ति को डुबाती हैं।

श्रीकृष्ण कहते हैं सात्त्विक धृति चाहिए। ईश्वर के रास्ते दृढ़ता से चलो। चाहे कितने विघ्न आयें लेकिन अपने कर्तव्य को, अपने धर्म को, जप-अनुष्ठान को मत छोड़ो, अपने गुरु के ज्ञान को न छोड़ो। यह सात्त्विक धृति है।

सोनबा में सात्त्विक धृति थी और उस सूबेदार में तामसी और राजसी धृति थी कि ʹअभी  तो धैर्य रखें, सुबह होते ही इनका कचूमर बना देंगे और सुंदरी को बलपूर्वक ले चलेंगे।ʹ

सूबेदार ने हुक्म दियाः “चारों तरफ ऐसा कड़ा पहरा लगाओ की आदमी तो क्या एक चिड़िया भी बाहर न निकल सके।”

मध्यरात्रि को जवानों का एक टोला आया चमचमाती तलवारों के साथ और सूबेदार के कई सैनिकों की मुंडियाँ धड़ से अलग करके गायब हो गया। यवन सैनिकों ने खोजा तो कोई मिले नहीं !

ʹचारों तरफ मेरी सेना… इतना कड़ा पहरा…. देखते ही गोली मारो का आदेश… फिर भी इतने सारे जवान कहाँ से आये और गये कहाँ !!”

उनको पता ही नहीं कि जहाँ ठहरा है वही तलघर से आये और तलघर में चले गये। नशेबाजों को क्या पता चले !

सुबह हुई। सूबेदार ने चढ़ाई कर दी। सेंदरड़ा गाँव को घेर लिया। हाथी की टक्कर से दरवाजा टूटा। घुसे अंदर, तो क्या देखते हैं कि लोग हैं ही नहीं !

“सेंदरड़ा के लोग कहाँ गये ? दरवाजे बंद करके छुप गये क्या ? दरवाजे तोड़ो !”

घर-घर के दरवाजे तोड़े तो सारे घर खाली ! पूरा सेंदरड़ा खाली !! सूबेदारः “लगता है डर के मारे भाग गये। मुखिया के घर में जाओ। उस सुंदरी को तो ले चलेंगे।”

न सुंदरी मिली न सुंदरा मिला…. धक्के खाते-खाते निराश होकर अपने पड़ाव पर आये। छावनी में आकर देखा तो दुश्मन अचानक हल्ला करके भाग गया है। कई सैनिक मारे गये हैं, कई घायल  अवस्था में पड़े हैं। सोचने लगे, ʹक्या कारण है ? बंदूकें हमारे पास, उनके पास कोई बंदूक नहीं फिर भी हम मौत के घाट उतार दिये जा रहे हैं। हम उपाय खोजेंगे धीरज से।ʹ

उपाय तो खोज रहे हैं लेकिन तामसी बुद्धि से। प्याली पी, सोये…. नींद तो क्या आनी थी, मौत आनी थी। सोनबा और सैनिक तलघर से निकले और धाड़-धाड़ हमला कर दिया। वे तो शराबी थे। वे बंदूकें सँभालें उसके पहले सोनबा ने उनको सँभला दिया…. किसी को भाला तो किसी की तलवार की नोंक। एक अकेली सोनबा और मुट्ठीभर सैनिक !

सोनबा सूबेदार के तम्बू में घुस आयी और गरज पड़ीः “तुझे सोनबा चाहिए थी न ? मैं  गयी हूँ मूर्ख !” और भाला सीधा उसकी छाती में घुसेड़ दिया। किसकी ? जो सोनबा को अपनी बेगम बनाना चाहता था। बाकी के सैनिक जान बचाकर भाग गये।

भावनगर जिले के सोनगड़ के पास सेंदरड़ा गाँव के नजदीक सोनबा ने जो बावड़ी खुदवायी थी, वहाँ बसा गाँव आज भी उस संयमी, सदाचारिणी, वीर कन्या की यशोगाथा की खबर दे रहा है। उस कन्या के सत्संग, साहस, धैर्य, गुरुभक्ति और संयमी जीवन की खबर दे रहा है। वह आजीवन ब्रह्मचारिणी रही। जैसे मीरा ने परमेश्वर को वर बनाया, ऐसे ही उस कन्या ने परब्रह्म परमात्मा को ही वर बनाया।

एक कन्या में कितनी शक्ति छुपी है ! इतना बड़ा सूबेदार, इतने सारे सैनिक, इतनी सारी बंदूकें… ये बेचारे छोटी-मोटी लाठियों तलवारों से उनका मुकाबला क्या करें ! सोनबा ने युक्ति खोजी और गुरुकृपा से उसे सूझ गयी। दुष्ट को कैसे धैर्यपूर्वक यमपुरी में पहुँचाया जाता है और अपने आत्मा को परमात्मा में कैसे पहुँचाया जाता है, इसकी सीख सोनबा ने सदगुरु से पा ली थी। सोनबा अपने को शरीर नहीं मानती थी। शरीर पंचभौतिक है, इसको स्वस्थ रखो, संयमी रखो लेकिन भीतर से जानो कि ʹशरीर की बीमारी मेरी बीमारी नहीं है। मन का दुःख मेरा दुःख नहीं है, चित्त की चिंता मेरी चिंता नहीं है। संसार सपना है, उसको चलाने वाला चैतन्य परमात्मा अपना है। ૐ…..ૐ…..ૐ…..

इस कथा से भगवान की यह बात स्पष्ट समझ में आ सकती है की तामसी और राजसी धैर्यवाला तुच्छ चीजों के लिए धैर्य धारण करता है। ऐसे तो बगुला भी मछली के शिकार के लिए धैर्यवान दिखता है अथवा तो कोई प्रेमी, प्रेमिका को फँसाने के लिए धैर्यपूर्वक लगा रहता है, प्रेमिका प्रेमी को उल्लू बनाने के लिए लगी रहती है लेकिन ये सारे धैर्य तुच्छ हैं। जो अपने आत्मा-परमात्मा के स्वभाव को पाने के लिए धैर्यवान होकर लग जाता है, उसका धैर्य सात्त्विक है। वह सात्त्विक धैर्यवान व्यक्ति अपने जीवनदाता के सुख, शांति, माधुर्य और सामर्थ्य को पा लेता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद मई 2013, पृष्ठ संख्या 23,24 अंक 245

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

परिप्रश्नेन


प्रश्नः बड़े में बड़ी बुराई क्या है ?

पूज्य बापू जीः पराधीनता सबसे बड़ी बुराई है।

प्रश्नः क्या भगवान के अधीन नहीं हों ? गुरु के अधीन नहीं हों ?

पूज्य बापू जीः अरे ! भगवान और गुरु के अधीन होना यह सारी अधीनताओंको मिटाने की कुंजी है, वह अधीनता नहीं है। जैसे बच्चा माँ-बाप के अधीन होता है, नहीं तो न जाने कितने-कितनों के अधीन हो जाये। तो माँ-बाप की अधीनता बच्चे को सभी अधीनताओं से सुरक्षित करती है।

माता, पिता और गुरु के मार्गदर्शन में, कहने में चलना यह अधीनता नहीं है लेकिन विकारों के कहने में, दुष्कर्मों में चलना, बाहर से सुखी होने के लिए पापकर्म में चलना यह पराधीनता है।

प्रश्न बुराईरहित कैसे होवें ?

पूज्य बापूजीः ईश्वर के नाते सभी को अपना मानना, बुराई रहित हो जाओगे। बुराई बड़ी पराधीनता है। बुराई वाला व्यक्ति खुद भी दुःखी होता है, दूसरों को भी दुःखी करता है और बुराई रहित व्यक्ति खुद भी सुखी होता है, दूसरों को भी सुखी करता है।

प्रश्नः डर लगता है, डर का नाश कैसे हो ?

पूज्य बापू जीः डर का नाश होगा ममता के त्याग से। ʹहम मर जायेंगे, ऐसा हो जायेगा, ऐसा हो जायेगा….ʹ ममता भगवान में रखो तो डर चला जायेगा। ʹयह मकान मेरा है, यह शरीर मैं हूँ, फलाना हूँ….ʹ इसी से डर लगता है। डर लगता है मन को, आत्मा को डर नहीं होता।

प्रश्न धन क्या है ?

पूज्य बापू जीः विवेक धन है, वैराग्य धन है, भगवत्शान्ति धन है, भगवत्प्रीति धन है। जब उत्पन्न हो तो उसी भाव की रक्षा करनी चाहिए।

प्रश्न विवेक क्या है ?

पूज्य बापू जीः आत्मा अविनाशी है, जगत प्रतिकूल है, नाशवान है इसी को विवेक बोलते हैं-

अविनाशी आतम अमर जग तातै प्रतिकूल।

ऐसो ज्ञान विवेक है सब साधन को भूल।। (विचार सागर)

आत्मा अविनाशी है और जगत विनाशी है- सब साधनों का मूल है ऐसा ज्ञान, ऐसा विवेक। एक दिन सब छूट जायेगा, उसके पहले जो अछूट है उसको पाना चाहिए-यह विवेक है, यह धन है इसकी रक्षा करनी चाहिए। जिसको प्रभुप्राप्ति जल्दी करनी है, वह विचारसागर, एकनाथी भागवत, इनमें से कोई एक पढ़े-ध्यान करे, पढ़े-ध्यान करे, लग जाय। अच्छे काम करने का विचार आये तो गाँठ बाँधकर याद करके बार-बार उसी अच्छे काम में लग जावे। अच्छे काम करके भगवान को अर्पण करे। बुरे काम का विचार आये तो ʹअभी नहीं बाद में,  अभी नहीं बाद में, बाद में….ʹ ऐसा करने से बुरे काम से रक्षा होगी।

प्रश्नः भगवद् ज्ञान, भगवत्प्रेम में चलते हैं लेकिन सफल क्यों नहीं होते ?

पूज्य बापू जीः सात दुर्गुण हैं-एक तो श्रद्धा विश्वास की कमी, दूसरा उत्साह की कमी, तीसरा विषय चिंतन, चौथा कुसंग, पाँचवाँ सत्संग का अभाव, छठा दृढ़ निश्चय नहीं और सातवाँ लापरवाही। इन सात दुर्गुणों के कारण भगवद् ज्ञान, भगवत्प्रेम में चलते हैं लेकिन सफल नहीं हो पाते।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2013, पृष्ठ संख्या 19, अंक 245

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

नमकः उपकारक व अपकारक भी


शरीर की स्थूल से लेकर सूक्ष्मातिसूक्ष्म सभी क्रियाओं के संचालन में नमक (सोडियम क्लोराइड) महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कोशिकाओं में स्थित पानी का संतुलन करना, ज्ञानतंतुओं के संदेशों का वहन करना वह स्नायुओं को आकुंचन-प्रसारण की शक्ति प्रदान करना ये सोडियम के मुख्य कार्य हैं।

सामान्यतः एक व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 5-6 ग्राम नमक की मात्रा पर्याप्त है। परंतु विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) के द्वारा किये गये सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 50 प्रतिशत व्यक्ति प्रतिदिन 8.7-11.7 ग्राम नमक लेते हैं। दीर्घकाल तक अधिक मात्रा में नमक का सेवन शरीर की सभी क्रियाओं को असंतुलित कर देता है। और आवश्यकता से कम मात्रा में नमक लेने से व्याकुलता, मानसिक अवसाद (डिप्रैशन), सिरदर्द, थकान, मांसपेशियों की दुर्बलता, मांसपेशियों की ऐंठन, वमन की इच्छा, वमन, अशांति हो सकती है।

अधिक नमक के घातक दुष्परिणाम

किसी भी प्रकार के नमक के अधिक सेवन से हानि होती है। Cellulite, संधिवात, जोड़ों  की सूजन, गठिया, उच्च रक्तचाप, पथरी, जठर का कैंसर, मूत्रपिंड के रोग, यकृत के रोग (Cirrhosis of liver), मोटापा और मोटापे से मधुमेह आदि रोग होते हैं।

नमक खाने के बाद कैल्शियम मूत्र के द्वारा शरीर से बाहर निकाला जाता है। जितना नमक अधिक उतना कैल्शियम तेजी से कम होता है। इससे हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं, दाँत जल्दी गिरने लगते हैं तथा बाल सफेद होकर झड़ने लगते हैं। अधिक नमक स्नायुओं को शिथिल करता व त्वचा पर झुर्रियाँ लाता है। ज्यादा नमक खाने वाले व्यक्ति जल्दी थक जाते हैं। अधिक नमक ज्ञानतंतुओं व आँखों को क्षति पहुँचाता है। इससे दृष्टिपटल क्षतिग्रस्त होकर दृष्टि मंद हो जाती है। नमक की तीक्ष्णता से शुक्रधातु पतला होकर स्वप्नदोष, शीघ्र पतन व पुंसत्वनाश होता है। अम्लपित्त, अधिक मासिकस्राव, एक्जिमा, दाद, गंजापन व पुराने त्वचा-रोगों का एक प्रमुख कारण नमक का अधिक सेवन भी है। अकाल वार्धक्य को रोकने वाली आयुर्वेदोक्त रसायन-चिकित्सा में नमक बिना के आहार की योजना की जाती है।

अधिक नमक से हृदयरोग

आवश्यकता से अधिक नमक खाने पर उसे फीका (Dilute) करने के लिए  शरीर अधिक पानी का उपयोग करता है। इससे जलीय अंश का संतुलन बिगड़कर रक्तदाब बढ़ जाता है, जो हृदयरोग उत्पन्न करता है। ʹसांइटिफिक एडवायजरी कमेटी ऑन न्यूट्रीशनʹ(SACN) तथा 2003 में इंगलैंड में किये गये शोध के अनुसार अतिरिक्त नमक से हृदय का आकार बढ़ जाता है।

अधिक नमक का मन पर प्रभाव

नमक सप्तधातुओं में निहित ओज को क्षीण कर देता है। ओजक्षय के कारण मनुष्य भयभीत व चिंतित रहता है। उसकी शारीरिक व मानसिक क्लेश सहने की क्षमता घट जाती है।

नमक के अति सेवन से कैसे बचें ?

भोजन बनाते समय ध्यान रखें कि भोजन स्वादिष्ट हो पर चरपरा नहीं। अधिकतर पदार्थों में सोडियम प्राकृतिक रूप से ही उपस्थित होता है, फलों व सब्जियों में विशेष रूप से पाया जाता है। अतः सब्जियों में नमक कम डालें। सलाद आदि में नमक की आवश्यकता नहीं होती। चावल व रोटी बिना नमक की ही बनानी चाहिए। अपनी संस्कृति में भोजन में ऊपर से नमक मिलाने की प्रथा नहीं है। वैज्ञानिकों का भी कहना है कि शरीर अन्न के साथ घुले-मिले नमक का ही उपयोग करता है। ऊपर से डाला नमक शरीर में अपक्व (Non Ionized) अवस्था में चला जाता है। चिप्स, पॉपकार्न, चाट आदि व्यंजनों में ऊपर से डाला गया नमक कई दुष्परिणाम उत्पन्न करता है। दीर्घकाल तक सुरक्षित रखने के लिए अत्यधिक नमक डाल के बनाये गये पदार्थ, जैसे-फॉस्टफूड, अचार, चटनी, मुरब्बे, पापड़, केचप्स आदि का सेवन स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं है।

सप्ताह में एक दिन, खासकर रविवार को बिना नमक का भोजन करना शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए खूब लाभदायी है। गर्मियों में व पित्त प्रकृतिवाले व्यक्तियों को तथा पित्तजन्य रोगों में नमक कम खाना चाहिए। परिश्रमियों की अपेक्षा सुखासीन व्यक्तियों को नमक की जरूरत कम होती है।

चैत्र महीने में 15 दिन बिना नमक का भोजन अर्थात् अलोन व्रत करने से त्वचा, हृदय, गुर्दे के विकार नहीं होते, वर्षभर बुखार नहीं आता। इन दिनों सुबह नीम के फूलों का 20 मि.ली. रस पीने से अथवा नीम के 10-15 कोंपलें और 1-2 काली मिर्च मिश्री या शहद के साथ लेने रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाती है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2013, पृष्ठ संख्या 29,30 अंक 244

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

नमक कौन सा खायें ?

आयुर्वेद के अनुसार सेंधा नमक सर्वश्रेष्ठ है। लाखों वर्ष पुराना समुद्री नमक जो पृथ्वी की गहराई में दबकर पत्थर बन जाता है, वही सेंधा नमक है। यह रूचिकर, स्वास्थ्यप्रद व आँखों के लिए हितकर है।

सेंधा नमक के लाभ

आधुनिक आयोडीनयुक्त नमक से सेंधा नमक श्रेष्ठ है। यह कोशिकाओं के द्वारा सरलता से अवशोषित किया जाता है। शरीर में जो 84 प्राकृतिक खनिज तत्त्व होते हैं, वे सब इसमें पाये जाते हैं।

शरीर में जल स्तर का नियमन करता है, जिससे शरीर की क्रियाओं में मदद मिलती है।

रक्त में शर्करा के प्रमाण को स्वास्थ्य के अनुरूप रखता है।

पाचन संस्थान में पचे हुए तत्त्वों के अवशोषण में मदद करता है।

श्वसन तंत्र के कार्यों में मदद करता है और उसे स्वस्थ रखता है।

साइनस की पीड़ा को कम करता है।

मांसपेशियों की ऐंठन को कम करता है।

अस्थियों को मजबूत करता है।

स्वास्थ्यप्रद प्राकृतिक नींद लेने में मदद करता है।

पानी के साथ यह रक्तचाप के नियमन के लिए आवश्यक है।

मूत्रपिंड व पित्ताशय की पथरी रोकने में रासायनिक नमक की अपेक्षा अधिक उपयोगी।

समुद्री नमक के लाभ

यह समुद्र से प्राकृतिक रूप में प्राप्त होता है, इसलिए इसमें शरीर के स्वास्थ्य के लिए जरूरी 80 से अधिक खनिज तत्त्व मौजूद रहते हैं। यह बाजारू आयोडीनयुक्त नमक से बहतु सस्ता व अधिक लाभदायक है।

रोगप्रतिकारक शक्ति को बढ़ाता है, जिससे सर्दी, फ्लू, एलर्जी आदि रोगों से रक्षा होती है।

कई जानलेवा बीमारियों में बचाता है।

समुद्री नमक आपका वजन कम करने में भी सहयोग देता है। यह पाचक रसों के निर्माण में मदद करता है, जिससे आहार का पाचन शीघ्र होता है। यह कब्ज को दूर करता है।

यह दमा के रोगियों को लाभप्रद है।

यह नमक मांसपेशियों की ऐंठन और दर्द को रोकने में मददरूप होता है।

पानी के साथ समुद्री नमक लेने से कोलेस्ट्रोल का प्रमाम कम होता है और उच्च रक्तचाप को यह कम करता है तथा अनियमित दिल की धड़कनों को नियमित करता है। इस प्रकार यह  , दिल के दौरे और हृदयाघात को रोकने में मदद करता है। यह शरीर में शर्करा का प्रमाण बनाये रखने में मदद करता है, जिससे इंसुलिन की आवश्यकता कम करता है। अतः मधुमेह के रोगियों के आहार में यह अनिवार्य रूप से होना चाहिए।

मानसिक अवसादः तनाव का सामना करने के लिए आवश्यक हार्मोन्स सेरोटोनिन और मेलाटोनिन को शरीर में बनाये रखने में मदद करता है। इससे हम अवसाद एवं तनाव से मुक्त रहते हैं और अच्छी नींद आती है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद मई 2013, पृष्ठ संख्या 29, अंक 245

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ