स्त्रियों के भूषण सात सदगुण – पूज्य बापू जी

स्त्रियों के भूषण सात सदगुण – पूज्य बापू जी


जिस स्त्री में सात दिव्य गुण होते हैं, उसमें साक्षात भगवान का ओज तेज निवास करता है। एक है ʹकीर्तिʹ अर्थात् आसपास के लोगों का आपके ऊपर विश्वास हो। अड़ोस-पड़ोस के लोग आप में विश्वास करें, ऐसी आप सदाचारिणी हो जाओ। यह भगवान की कीर्ति का गुण है। लोगों का विश्वास हो कि ʹयह महिला बदचलन नहीं है, झूठ-कपट करके ठगेगी नहीं।ʹ आप बोलें तो आपकी बात पर लोग विश्वास करें। कीर्ति में ईश्वर का वास होता है।

दूसरा ʹश्रीʹ माने सच्चरित्रता का सौंदर्य हो। चरित्र की पवित्रता हर कार्य में सफल बनाती है। जिसका जीवन संयमी है, सच्चरित्रता से परिपूर्ण है उसकी गाथा इतिहास के पन्नों पर गायी जाती है। व्यक्तित्व का निर्माण चरित्र से ही होता है। बाह्यरूप से व्यक्ति भले ही सुंदर हो, निपुण गायक हो, बड़े-से-बड़ा कवि हो, चमक-दमक व फैशन वाले कपड़े पहनता हो परंतु यदि वह चरित्रवान नहीं है तो समाज में उसे सम्मानित स्थान नहीं मिल सकता। उसे तो हर जगह अपमान, अनादर ही मिलता है। चरित्रहीन व्यक्ति आत्मसंतोष और आत्मसुख से वंचित रहता है। अतः अपना चरित्र पवित्र होना चाहिए।

स्वयं अमानी और दूसरों को मान देने वाली वाणी बोलो। यह ʹमधुर वाणीʹ रूपी तीसरा गुण है। कम बोलें, सच बोलें, प्रिय बोलें, सारगर्भित बोलें, हितकर बोलें।

ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय।

औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय।।

चौथा गुण है ʹस्मृतिʹजो काम करना है वह भूल गये या जरा-जरा बात में ʹमैं भूल गयी…ʹ नहीं। आपका स्मृति का सदगुण विकसित हो इसलिए मैं ૐઽઽઽઽ का प्रयोग करवाता हूँ। इससे स्मृति में भगवान का ओज व समता रहती है।

पाँचवा गुण है ʹमेधाʹ अर्थात् अचानक प्रतिकूल परिस्थिति आ जाय तो सारभूत निर्णय लेने की ताकत।

छठा गुण है ʹधैर्यʹ अर्थात् इन्द्रियों को धारण करने की, नियंत्रित करने की शक्ति। ऐसा नहीं कि कहीं कुछ देखा, खरीद लिया। बढ़िया दिखा, खा लिया। नाक बोलती है, ʹजरा परफ्यूम सूँघ लो।ʹ पैर बोलते हैं, ʹजरा फिल्म में ले जाओ।ʹ नहीं, संयम से। किधर पैरों को जाने देना, किधर आँख को जाने देना, इस बारे में धैर्य से, नियम से रहें। जरा-जरा बात में उत्तेजित-आकर्षित नहीं हो जाना।

सातवाँ गुण है ʹक्षमाʹक्षमा स्त्री की सुंदरता, हृदय की सुंदरता है। अपराधी को सजा देने के ताकत है फिर भी उसका मंगल सोचते हुए क्षमा करने का यह ईश्वरीय गुण आपके जीवन में हो। कभी सासु से अपराध हुआ, कभी बहू, पति या पड़ोसी से हुआ तो कभी किसी से अपराध हुआ, उसके अपराध को याद कर-करके अपना दिल दुखाओ नहीं व उसको भी बार-बार उसके अपराध की याद दिलाकर दुःखी मत करो। अपराधी को भी उसके मंगल की भावना से क्षमा कर दो। अगर उसको दंड देकर उसका मंगल होता है तो दंड दो लेकिन क्षमा के, मंगल के भाव से ! गंगाजी तिनका बहाने में देर करें परंतु तुम क्षमा करने में देर मत करो।

अश्वत्थामा ने द्रौपदी के बेटों को मार दिया। अर्जुन उसे पकड़कर ले आये और बोलेः “अब इसका सिर काट देते हैं। इसके सिर पर पैर रखकर तू स्नान कर। अपने बेटों को मारने वाले को दंड देकर तू अपना शोक मिटा।”

द्रौपदीः “नहीं-नहीं, मुच्यतां मुच्यतामेष…. छोड दो, इसे छोड़ दोष अभी एक माँ रोती है अपने बेटे के शोक में। यह भी तो किसी का बेटा है। फिर दो माताएँ रोयेंगी। नहीं-नहीं, क्षमा !”

इन सात सदगुणों में भगवान का सामर्थ्य होता है। ये सदगुण सत्संग और मंत्रजप वाले के जीवन में सहज में आ जाते हैं। इन्हें सभी अपने जीवन में ला सकते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2013, पृष्ठ संख्या 20,21 अंक 248

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