ʹयह बहू तो ऐसी है… क्या करें, आजकल की तो परायी जाइयाँ आयीं, जमाना बिगड़ गया है। वह ऐसी है, फलानी ऐसी है…ʹ अरे ! तू भी तो पराई जाई है। अभी नानी और दादी बनकर बैठी है, तू इस घर की जाई है क्या ! तो सासुमाताओ ! परायी जाइयों की निंदा न करो और बहुरानियो ! चाहे सासु थोड़ा-बहुत कहे, तुम तो कभी सासु की निंदा न करो। यदि आपकी पत्नी और माँ यानी सासु-बहू, देवरानी जेठानी, ननद-भाभी आपस में भिड़ती रहती हैं तो क्या करना चाहिए ?
अकेले में पत्नी को समझाना चाहिए कि ʹतू मेरी माँ की फरियाद करती है, ʹमाँ ऐसी है, वैसी है……ʹ तेरी सारी बातें अगर सच्ची भी मानूँ तब भी मैंने उसका दूध पिया है, मैं उसके गर्भ में रहा हूँ, माँ की निंदा सुनने से मेरे पुण्य व मति मंद होंगे, मेरा प्रभाव नष्ट होगा और पुण्यहीन, मंद-बुद्धि, प्रभावहीन पति से तू कौन-सी संतान लेकर सुखी होगी ? इतना तो समझ ! भोली है तू। इसलिए माँ के खिलाफ मेरे को कुछ न सुनाये तो अच्छा है। मैं तो कहता हूँ कि वृद्धाओं का, माता का दिल जीतना तेरे बायें हाथ का खेल है, तू कर सकती है।ʹ उसको डाँटो नहीं, विश्वास में लो। वह माँ नहीं बनी है तो बोलो, ʹमाँ की सेवा करोगी तो तुम्हारी संतान भी ओजस्वी-तेजस्वी होगी, तुम भी अच्छी आत्मा की माँ बनोगीʹ अथवा माँ बनी है तो ʹगुड्डू की माँ, ललुआ की माँ….ʹ जो भी हो, उसको प्यार से समझाओ। 2-5 बार ऐसा प्रयत्न करोगे तो आपका अंतःकरण पवित्र होगा और पत्नी के हृदय में सासु के प्रति जो ग्रंथि है वह खुल जायेगी। और पत्नी को युक्ति दे दो कि ʹमाँ कितने साल की मेहमान है ! तेरे को मेरे साथ जिंदगी गुजारनी है, मेरे को तेरे साथ जिंदगी गुजारनी है।ʹ – ऐसे विश्वास में लेकर सास बहू का झगड़ा मिटा देना चाहिए।
देवरानी-जेठानी लड़ती हो तो क्या करें ? ʹहे प्रभु ! आनन्ददाता !!…..ʹ प्रार्थना का घर में पाठ कराओ, देवरानी-जेठानी का झगड़ा मुहब्बत में बदल जायेगा। जेठानी का पति कहे कि ʹदेख ! देवरानी ऐसी है, वैसी है….ʹ तू सुनाती है लेकिन वह मेरा छोटा भाई है, बेटे के बराबर है तो उसकी पत्नी तेरी और मेरी बहू के बराबर है। पगली मत बन, दिल बड़ा रख। बड़े का बड़प्पन इसी में है कि छोटे को प्रेम से अनुकूल करे। छोटे को डाँट के, धमका के या उसके ऐब देखकर नहीं उसके गुण देख के, उसकी सराहना करके उसको अनुकूल किया जाता है।ʹ बड़ा भाई अलग से अपनी पत्नी को कहेः ʹअरे कुछ भी है, बड़ा भाई पिता के तुल्य होता है तो बड़ी भाभी मेरी माँ के तुल्य है। तू थोड़ा बड़ा दिल रख न ! बड़ों का तो थोड़े आदर-सत्कार से दिल पिघल जाता है, तू क्यों नहीं बात समझती है ? काहे को भोली बनती है ?ʹ जेठानी ऐसी है, वैसी हैʹ लेकिन वह सब कुछ छोड़कर आयी है, तेरे जैसा त्याग तो है उसमें। तू भी पूरा मायका छोड़कर इधर आ गयी, वह भी मायका छोड़कर आ गयी। दोनों त्यागी-त्यागी होकर आपस में लड़ रही हो एक ही जात की होकर, बड़े आश्चर्य की बात है ! मेरी परीक्षा ले रही हो क्या तुम दोनों देवरानी-जेठानी ?ʹ ऐसा समझाकर उनको राजी कर दें।
ननद-भाभी का झगड़ा है पत्नी को समझा दे कि ʹदेख ! साल दो साल में वह बेचारी पराये घर जायेगी, अभी उसका दिल दुःखा के कन्या की बददुआ तू क्यों ले ! तेरे को भी कन्या होगी फिर वह दुःख देगी तो ! इसलिए माँ की कन्या तेरी अपनी कन्या से भी ज्यादा आदर के योग्य है। ननद के प्रति भाभी का उदार हृदय होना चाहिए, ऐसा शास्त्र कहते हैं।ʹ और ʹहे प्रभु ! आनन्ददाता !!….ʹ प्रार्थना का घर में पाठ करो तथा पड़ोस के बच्चे-बच्चियों को बुलाकर भी पाठ करो।
संघर्ष में, एक दूसरे की निंदा में, एक दूसरे की गलतियाँ खोजने में, एक दूसरे पर आरोप थोपने में हमारी शक्तियों का जितना ह्रास होता है और योग्यताएँ कुठित होती हैं, उतनी शक्ति और योग्यता हम अगर 15 मिनट ʹहरि ૐ….ʹ का गुंजन करने में लगायें तो हमारे दीदार करने वाले का भला हो जायेगा, ऐसी हम सबके अंदर योग्यता छुपी है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2013, अंक 249
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