दुःख को उत्सव बनाने की कला – पूज्य बापू जी

दुःख को उत्सव बनाने की कला – पूज्य बापू जी


हम दुःख चाहते नहीं हैं, दुःख भगवान ने बनाया नहीं है और दुःख हमको पसंद नहीं है फिर भी दुःख क्यों होता है ? क्योंकि ईश्वरीय रहस्य को, ईश्वरीय लीला को, ईश्वरीय ज्ञान को हम नहीं जानते। हमारे मन की कल्पनाओं से हम दुःख बना लेते हैं, सुख बना लेते हैं। वास्तव में अनुकूलता जहाँ होती है, उसको हम सुख बोलते हैं और प्रतिकूलता होती है, उसको हम दुःख बोलते हैं।

शास्त्र बोलते हैं- अनुकूलवेदनीयं सुखं प्रतिकूलवेदनीयं दुःखम्। तो यह अनुकूलता और प्रतिकूलता विधायक का विधान है, उस विधाता का विधान है। अनुकूलता देकर वे आपको उदार बनाते हैं ताकि आप उनकी तरफ आओ और प्रतिकूलता देकर के आपकी आसक्ति मिटाते हैं। विधान जो होता है न, वह मंगल के लिए होता है। हमको जो अच्छा नहीं लगता है वह भी होता है तो समझो विधान कल्याणकारी है और जो हमको अच्छा लगता है वह हमसे छीन लेता है तो समझो विधान की कृपा है। लेकिन हम क्या करते हैं कि जो अच्छा लगता है वह छीना जाता है तो हमारी दुःखाकार वृत्ति बनती है और ʹहम दुःखी हैंʹ ऐसी अपने में बेवकूफी भरते हैं। लेकिन ऐसा दुःख और परेशानी कोई नहीं है जिसमें हमारा कल्याण न छिपा हो। इसलिए कभी दुःख और परेशानी आये तो समझ लेना विधायक का विधान है। हमारा कल्याण करने के लिए आया है, आसक्ति छुड़ाने को आया है, संसार से मोह-ममता छुड़ाने को आया है। ʹवाह प्रभु, वाह ! तेरी जय हो !ʹ

दुःख को आप भजन में बदल सकते हैं, दुःख को आप ज्ञान में बदल सकते हैं, दुःख को विवेक में बदल सकते हैं, दुःख को दुःखहारी परमात्मा में बदल सकते हैं। दुःख आपके लिए भगवान की प्राप्ति का साधन हो जायेगा। अगर सुख आये और उसके भोगी बने तो सुख आपको खोखला बना देगा। सुख आया तो जो उसके भोगी बने हैं, वे नरकों में पड़े हैं, बीमार पड़े हैं।

तो आपको अगर जल्दी से दुःखों से पार होना हो तो सुख का लालच छोड़ दो। सुख का लालच छोड़ते ही आपका आपके अंतरात्मा के साथ जो संबंध है, वह स्पष्ट होगा। जैसे पानी के ऊपर की काई हटा देने से पानी दिखता है, ऐसे ही सुख का लालच हटाने से सुख का, मधुमय आनंद का दरिया लहराने लगेगा। दुःख के भय से आप भयभीत न हों। दुःख आये तो उत्सव मनाओः ʹवाह ! आ गया, वाह-वाह ! भला हुआ, अच्छा है। ये दुःख और कष्ट आसक्ति मिटाकर हरि में प्रीति जगाने वाले हैं, वाह भाई ! वाह !!ʹ तो बाहर से दुःख दिखेगा लेकिन तुम्हारे ईश्वरीय सम्बंध के स्मरण से दुःख भी सपना हो जायेगा, सुख भी सपना हो जायेगा, आनन्दस्वरूप परमात्मा अपना हो जायेगा।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2013, अंक 249

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *