(शरद पूर्णिमाः 18 अक्तूबर 2013)
शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा की किरणों से अमृत बरसाता है। ये किरणें स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त लाभदायी हैं। इस रात्रि में शरीर पर हल्के-फुल्के परिधान पहनकर चन्द्रमा की चाँदनी में टहलने, घास के मैदान पर लेटने तथा नौका-विहार करने से त्वचा के रोमकूपों में चन्द्र किरणें समा जाती हैं और बंद रोम-छिद्र प्राकृतिक ढंग से खुलते हैं। शरीर के कई रोग तो इन चन्द्र किरणों के प्रभाव से ही धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं।
इन चन्द्र किरणों से त्वचा का रंग साफ होता है, नेत्रज्योति बढ़ती है एवं चेहरे पर गुलाभी आभा उभरने लगती है। यदि देर तक पैरों को चन्द्र किरणों का स्नान कराया जाय तो ठंड के दिनों में तलुए, एड़ियाँ, होंठ फटने से बचे रहते हैं।
चन्द्रमा की किरणें मस्तिष्क के लिए अति लाभकारी हैं मस्तिष्क की बंद तहें खुलती हैं, जिससे स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है। साथ ही सिर के बाल असमय सफेद नहीं होते हैं।
शरद पूर्णिमा की चाँदनी के स्वास्थ्य प्रयोग
शरद पूर्णिमा की शीतल रात्रि को (9 से 12 बजे के बीच) चन्द्रमा की किरणों में महीन कपड़े ढँककर रखी हुई दूध-चावल की खीर वर्षभर आयु, आरोग्य, पुष्टि व प्रसन्नतादायक होती है, अतः इसका अवश्य सेवन करना चाहिए। देर रात होने के कारण कम खायें, भरपेट न खायें, सावधानी बरतें।
दो पके सेवफल के टुकड़े करके शरद पूर्णिमा को रातभर चाँदनी में रखने से उनमें चन्द्र किरणें और ओज के कण समा जाते हैं। सुबह खाली पेट सेवन करने से कुछ दिनों में स्वास्थ्य में आश्चर्यजनक लाभकारी परिवर्तन होते हैं।
इस दिन रात को चाँदनी में सेवफल 2-3 घंटे रख के फिर उसे चबा-चबाकर खाने से मसूड़ों से खून निकलने का रोग (स्कर्वी) नहीं होता तथा कब्ज से भी छुटकारा मिलता है।
250 ग्राम दूध में 1-2 बादाम व 2-3 छुहारों के टुकड़े करके उबालें। फिर इस दूध को पतले सूती कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में 2-3 घंटे तक रख दें। यह दूध औषधिय गुणों से पुष्ट हो जायेगा। सुबह इस दूध को पी लें।
सोंठ, काली मिर्च और लौंग डालकर उबाला हुआ दूध चाँदनी रात में 2-3 घंटे रखकर पीने से बार-बार जुकाम नहीं होता, सिरदर्द में लाभ होता है।
इस रात्रि में 3-4 घंटे तक बदन पर चन्द्रमा की किरणों को अच्छी तरह पड़ने दें। इससे त्वचा मुलायम, कोमल व कंचन सी दमकने लगेगी।
तुलसी के 10-12 पत्ते एक कटोरी पानी में भिगोकर चाँदनी रात में 2-3 घंटे के लिए रख दें। फिर इन पत्तों को चबा-चबाकर खा लें व थोड़ा पानी पियें। बचे हुए पानी को चबाकर खा लें व थोड़ा पानी पियें। बचे हुए पानी को छानकर एक-एक बूँद आँखों में डालें, नाभि में मलें तथा पैरों के तलुओं पर भी मलें। आँखों से धुँधला दिखना, बार-बार पानी आना आदि में इससे लाभ होता है। तुलसी के पानी की बूँदें चन्द्रकिरणों के संग मिलकर प्राकृतिक अमृत बन जाती हैं। (दूध व तुलसी के सेवन में दो-ढाई घंटे का अंतर रखें।)
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2013, पृष्ठ संख्या 32, अंक 250
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