श्री निलेश सोनी (वरिष्ठ पत्रकार)
प्रधान सम्पादक, ‘ओजस्वी है भारत !’
किसी ने ठीक ही लिखा है कि हिन्दू तो वह बूढ़े काका का खेत है, जिसे जो चाहे जब जोत जाय। उदार, सहिष्णु और क्षमाशील इस वर्ग के साथ वर्षों से बूढ़े काका के खेत की तरह बर्ताव हो रहा है। हिन्दू समाज का नेतृत्व करने वाले ब्रह्मज्ञानी संतों, महात्माओं, समाज-सुधारकों, क्रांतिकारी प्रखर वक्ताओं पर जिसके मन में जो आता है, वह कुछ भी आरोप मढ़ देता है। अब तो दुष्प्रचार की हद हो गयी, जब 73 वर्षीय पूज्य संत श्री आशारामजी बापू पर साजिशकर्ताओं की कठपुतली, मानसिक असंतुलन वाली कन्या द्वारा ऐसा घटिया आरोप लगवाया गया, जिसको कोई सिर-पैर नहीं, जिसे सुनने में भी शर्म आती है। इससे देश-विदेश में फैले बापू जी के करोड़ों भक्तों व हिन्दू समाज में आक्रोश का ज्वालामुखी सुलग रहा है।
कुदरत के डंडे से कैसे बचेंगे ?
आरोप लगाने वाली लड़की की मेडिकल जाँच रिपोर्ट में चिकित्सकों ने आरोप को साफ तौर पर नकार दिया है। इससे स्पष्ट होता है कि यह सिर्फ बापू जी को बदनाम करने की सोची-समझी साजिश है लेकिन प्रश्न यह है कि करोड़ों भक्तों के आस्था के केन्द्र बापू जी के बारे में अपमानजनक एवं अशोभनीय आरोप लगाकर भक्तों की श्रद्धा, आस्था व भक्ति को ठेस पहुँचाने वाले कुदरत के डंडे से कैसे बच पायेंगे ? शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है कि ‘भगवान स्वयं का अपमान सहन कर सकते हैं मगर अपने प्यारे तत्त्वरूप संतों का नहीं।’
व्यावसायिक हितों की चिंता
इन झूठे, शर्मनाक आरोपों के मूल में वे शक्तियाँ काम कर रही हैं, जो यह कतई नहीं चाहती हैं कि बापू जी की प्रेरणा से संचालित गुरुकुलों के असाधारण प्रतिभासम्पन्न विद्यार्थी आगे चलकर देश, संस्कृति व गुरुकुल का नाम रोशन करें। दुनिया जानती है कि भारतीय वैदिक गुरुकुल परम्परा पर आधारित शिक्षण एवं सर्वांगीण व्यक्तित्व निर्माण के क्षेत्र में बापू जी के मार्गदर्शन में देशभर में चल रहे गुरुकुल आज कॉन्वेंट शिक्षण पद्धति के लिए सबसे बड़ी चुनौति बन चुके हैं। एक तरफ कई व्यावसायिक संस्थाओं की लूट इस पहाड़ के नीचे आ रही है तो दूसरी तरफ इंटरनेट और अश्लील साहित्य सामग्री के जरिये देश के भविष्य को चौपट करने की सुनियोजित साजिश पर पानी फिर रहा है। ओजस्वी-तेजस्वी भारत निर्माण बापू जी के संकल्प को हजम कर पाना उन साजिशकर्ताओं के लिए अब काँटोभरी राह साबित हो रहा है। ऐसे में गुरुकुलों की बढ़ती लोकप्रियता, विश्वनीयता की छवि और मेधावी बच्चों की प्रतिभा को कुचलने के लिए अब कुछ इस तरह से कीचड़ उछाला जा रहा है कि माता-पिता अपने बच्चों को गुरुकुल में भेजें ही नहीं।
पहले गुरुकुल के बच्चों पर तांत्रिक विद्या का मनगढंत आरोप लगाया गया परंतु जब सर्वोच्च न्यायालय में इन आरोपों की हवा निकल गयी तो अब सीधे बापू जी के चरित्र पर ही कीचड़ उछालने लगे हैं। मगर सूर्य पर थूकने का दुस्साहस करने वाले खुद ही गंदे हो जाते हैं। जो समाज को मान-अपमान, निंदा-प्रशंसा और राग-द्वेष से ऊपर उठाकर समत्व में प्रतिष्ठित करते हुए समत्वयोग की यात्रा करवाते हैं, भला ऐसे संत के दुष्प्रचार की थोथी आँधी उनका क्या बिगाड़ पायेगी ? टीआरपी के पीछे दौड़ने वाले चैनल बापू को क्या बदनाम कर पायेंगे ? बापू के भक्तों की हिमालय सी दृढ़ श्रद्धा के आगे आरोप बिसात एक तिनके के समान है।
चाहे धरती फट जाये तो भी सम्भव नहीं
वैसे आज किसी पर कीचड़ उछालना बहुत आसान है। पहले बापू जी के आश्रम के लिए जमीन हड़पने, अवैध कब्जे, गैर-कानूनी निर्माण के थोकबंद आरोप लगाये गये मगर सत्य की तराजू पर सभी झूठे, बेबुनियाद साबित हुए। जब इनसे काम नहीं बना तो बापू जी और उनके द्वारा संचालित आश्रम, समितियों और साधकों पर अत्याचार किये गये लेकिन भक्तों ने इनका डटकर मुकाबला किया। साजिश करने वालों ने हर बार मुँह की खायी। कितने तो आज भी लोहे के चने चबा रहे हैं तो कितने कुदरत के न्याय के आगे खामोश हैं परंतु बावजूद इसके आज भी बापू जी के ऊपर अनाप-शनाप आरोप लगवाने वालों को अक्ल नहीं आयी। साजिशकर्ताओं के इशारे पर बकने वाली एक लड़की ने बापू जी पर जैसा आरोप लगाया है, दुनिया इधर की उधर हो जाय, धरती फट जाय तो भी ऐसा सम्भव नहीं हो सकता है। यह घिनौना आरोप भक्तों की श्रद्धा, साधकों की आस्था को डिगा नहीं सकता है।
पूरा जीवन खुली किताब
बापूजी का पूरा जीवन खुली किताब की तरह है। उसका हर पन्ना और उस पर लिखी हर पंक्ति समाज का युग-युगांतर तक पथ प्रदर्शन करती रहेगी। बापू जी कोई साधारण संत नहीं, वे असाधारण आत्मसाक्षात्कारी महापुरुष हैं।
दरअसल सबसे बड़ी समस्या यह है कि सारे आरोप हिन्दू संतों पर ही लगाये जाते हैं क्योंकि हिन्दू चुपचाप सह सह लेता है। दुनिया के और किसी धर्म में ऐसा होने पर क्या होता है यह किसी से छुपा नहीं है। हमारी उदारता और सहिष्णुता का दुरुपयोग किया जाता है। तभी तो महापुरुषों को बदनाम करने का षड्यन्त्र चलता ही रहा है, फिर चाहे कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी श्री जयेन्द्र सरस्वती जी हों या फिर सत्य साँईं बाबा हों। आरोप लगाने वालों ने तो माता सीताजी व भगवान श्रीकृष्ण पर भी लांछन लगाया था। ऐसे में यह कल्पना कैसे की जा सकती है कि समाज को संगठित कर दिव्य भारतीय संस्कृति की विश्व क्षितिज पर पताका लहराने वाले विश्ववंदनीय संत पर आरोप न लगाये जायें ? संत तो स्वभाव से ही क्षमाशील होते हैं लेकिन उनके भक्त अपमान बर्दाश्त करने वाले नहीं हैं। झूठ के खिलाफ सत्य की यह धधकती मशाल अन्याय और अत्याचार के अँधेरे को कुचलकर ही रहेगी।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2013, पृष्ठ संख्या 17,18 अंक 250
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