मीडिया की स्वतन्त्रता बन रही बेकाबू – पत्रकार श्री अरुणेश सी. दवे

मीडिया की स्वतन्त्रता बन रही बेकाबू – पत्रकार श्री अरुणेश सी. दवे


भारत में संविधान की जिस संवैधानिक तरीके से बेइज्जती की जाती है वैसा उदाहरण किसी और देश में मिलना मुश्किल है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया को आजादी होने का मतलब यह नहीं कि किसी भी आदमी की इज्जत तार-तार करने का हक हासिल हो गया है। फिलहाल मामला आशारामजी का है, जिन्हें ‘बलात्कारी, धोखेबाज और शातिर’ सिद्ध करने का अभियान हमारी मीडिया ने जोर-शोर से चलाया हुआ है। भारत के पढ़े लिखे युवा से लेकर दिग्गज बुद्धिजीवी, मानवाधिकार के हनन के खिलाफ दिन-रात एड़ियाँ घिसने वाले लोग भी सहर्ष सुर-से-सुर  मिलाकर आशारामजी को कोसने में लगे हैं।

ऐसा नहीं है कि आशारामजी मीडिया की इस आदत के पहले शिकार हैं। निठारी कांड के संदिग्ध रहे पंधेर नरपिशाच के रूप में दिखाया गया था। लेकिन पुलिस जाँच पूर्ण होने पर पता चला कि वह किसी भी हत्याकाँड में शामिल नहीं था। उस आदमी का पूरा जीवन आर्थिक और सामाजिक रूप से तबाह हो गया। उसे और उसके परिवार को हुई क्षति की कोई भरपाई नहीं कर सकता।

इसी प्रकार बापू जी पर एक लड़की के यौन-शोषण का जो आरोप है, उसमें पुलिस की कार्यवाही  का प्रसारण एवं पुलिस द्वारा बनाये गये केस एवं उसकी तफ्तीश के नतीजे को जनता के सामने लाना मीडिया का कर्तव्य है। लेकिन विभिन्न सूत्रों का हवाला देकर अपुष्ट तथ्य जनता के सामने पेश करना तथा आरोपी के खिलाफ जनमत तैयार करना मीडिया का काम नहीं है।

क्या सच है, क्या नहीं यह अदालत को तय करना है। एक न्यूज चैनल ‘आशारामजी द्वारा 2000 बच्चियों के साथ ‘यौन-शोषण’ की खबर चला रहा था। क्या यह तथ्य पुलिस द्वारा प्रमाणित है ? क्या पुलिस कको अपनी तफ्तीश के दौरान ऐसी कोई जानकारी मिली है ? इसके पहले भी आशारामजी के सेवादार  के पास उनकी अश्लील क्लिपिंग मिलने का दावा चैनलों ने किया था जो कि बाद में हवा-हवाई सिद्ध हुआ।

मीडिया को आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है। जो कोई वर्ग ‘सेल्फ रेग्युलेशन’ (स्वनियंत्रण) के अधिकार का पात्र बना दिया जाता है तो उसकी नैतिक जिम्मेदारियाँ भी बहुत अधिक बढ़ जाती है। लेकिन दुर्भाग्यवश भारत की न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका और मीडिया – चारों स्तम्भ बहुत तेजी से अपना सम्मान खोते जा रहे हैं। किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2013, पृष्ठ संख्या 15, अंक  251

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *