चेटीचंड पर्वः 1 अप्रैल 2014
झूलेलाल जी का वरुण अवतार यह खबर देता है कि कोई तुम्हारे को धनबल, सत्ताबल अथवा डंडे के बल से अपने धर्म से गिराना चाहता हो तो आप ‘धड़ दीजिये धर्म न छोड़िये।’ सिर देना लेकिन धर्म नहीं छोड़ना।
भगवान झूलेलाल को अवतरण सिंधु नदी के किनारे बसने वाले सत्संगी लोगों ने करवाया था। मरख बादशाह जितना महत्त्वकांक्षी था उतना ही धर्मांध और अनाचारी भी था। उसने हिन्दू जाति को समाप्त करने के लिए फरमान निकाला कि ‘या तो हमारे मजहब में आ जाओ या तो मरने को तैयार हो जाओ।’
कई कायर लोगों ने मजहब बदला, हिन्दू धर्म छोड़कर गये। बाकी के लोगों ने सोचा कि ‘नहीं, यह वैदिक धर्म है, किसी व्यक्ति का चलाया हुआ नहीं है। भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण का भी चलाया हुआ नहीं है, सनातन है। इसको छोड़कर हम दूसरे धर्म में जायें ? स्वधर्मे निधनं श्रेयः…. अपने धर्म में मर जाना अच्छा है। लेकिन मरना भी कायरता है, डटे रहें, टक्कर लेनी चाहिए।’ ऐसा सत्संग में सुना था। गये समुद्र के किनारे। 40 दिन का व्रत रखने का संकल्प लिया कि 40 दिन भगवान को पुकारेंगे।
आये हुए सभी लोग किनारे पर एकटक देखते-देखते पुकारते- ‘हे स्रर्वेश्वर ! तुम अब रक्षा करो। मरख बादशाह तो धर्मींध है और उसका मूर्ख वजीर ‘आहा’, दोनों तुले हैं कि हिन्दू धर्म को नष्ट करना है। लेकिन प्रभु ! हिन्दू धर्म नष्ट हो जायेगा तो अवतार बंद हो जायेंगे। मानवता की महानता उजागर करने वाले रीति रिवाज सब चले जायेंगे। आप ही धर्म की रक्षा के लिए युग-युग में अवतरित होते हो। किसी भी रूप में अवतरित होकर प्रभु हमारी रक्षा करो। रक्षमाम् ! रक्षमाम् !! ॐ….’ फिर शातं हुए तो इन्द्रियाँ मन में गयीं और मन बुद्धि में और बुद्धि भगवान में शांत हुई। ऐसी-ऐसी आराधना, पूजा, प्रार्थनाएँ कीं।
एक दिन संध्या के समय समुद्र की उन सात्त्विक लहरों के बीच झूलेलाल जी का प्राकट्य हुआ। शीघ्र ही अवतार लेकर आने का आश्वासन, सांत्वना व हिम्मत देते हुए उन्होंने कहाः “तुम भूखे हो, प्रसाद खा लो – मीठे चावल, कोहर, मिश्री और नारियल। मरख बादशाह को बोल दो कि मैं नसरपुर में ठक्कर रत्नराय के यहाँ आ रहा हूँ।”
सप्ताह हुआ होगा कि आकाशवाणी ने सत्य का रूप लिया। नसरपुर में ठक्कर रत्नराय के यहाँ संवत् 1117 के चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया को उस निराकार ब्रह्म ने माता देवकी के गर्भ से साकार रूप लिया। और मरख बादशाह को सन्मार्ग दिखाकर उसे धर्मांतरण करने से रोका।
झूलेलाल भगवान के अवतार ने भी बहुत सारे लोगों को सत्संग द्वारा उन्नत किया। झूलेलाल भगवान के भाई थे – सोमा और भेदा। दोनों को उन्होंने कहाः “तुम भी चलो, लोगों को जरा भलाई के रास्ते लगायेंगे।” लेकिन वे बोलेः “अरे ! यह कथा का काम तुम करो। हम तो कमायेंगे, धंधा करेंगे।” वे तो धंधे में लगे लेकिन ये तो जोगी गोरखनाथजी के सम्पर्क में आ गये व उनसे गुरुमंत्र लिया। गोरखनाथजी ने झूलेलालजी को कहाः ”जैसा मैं अमर योगी हूँ ऐसे ही तुम भी अमर होओगे।” तब से नाम पड़ गया ‘अमरलाल’।
तो चेटीचंड महोत्सव मानव-जाति को संदेश देता है कि क्रूर व्यक्तियों से दबो नहीं, डरो नहीं, अपने अंतरात्मा-परमात्मा की सत्ता को जागृत करो। परिस्थितियों से हार मत मानो, परिस्थितियों के प्रकाशक शुद्ध परमात्मा के ज्ञान में, परमात्म-प्रेरणा में, परमात्म-शांति में आओ।
सिंधी लोग जल और ज्योत की उपासना करते हैं। जल द्रवरूप होता है, शीतलता देता है अर्थात् आपका हृदय द्रवीभूत हो और उसमें भगवान की शीतलता आये। ज्योत प्रकाश देती है और प्रेरणा देती है कि सुख में भी फँसो नहीं, दुःख में भी फँसो नहीं। किसी भी परिस्थिति में फिसलो नहीं, फँसो नहीं, प्रकाश में जियो, ज्ञान में जियो !
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2014, पृष्ठ संख्या 4,5 अंक 255
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