बात उस समय की है जब हिन्दुओं पर मुगलों का अत्याचार अपनी चरम सीमा पर था और हिन्दू अपने को दीन व लाचार मानकर सब सह रहे थे। औरंगजेब का खौफ महाराष्ट्र के गाँवों में छाया हुआ था। उसके क्रूर सैनिक आकर आतंक मचाते थे, युवतियों को उठाकल ले जाते थे, किसानों की भेड़-बकरियों व गायों को अपना भोजन बना लेते थे, फसलों को तहस-नहस कर देते थे।
एक बार दशहरे के पर्व पर छत्रपति शिवाजी के पौत्र साहूजी महाराज के मंत्री बाजीराव पेशवा, जो वीर, पराक्रमी व बड़े बुद्धिमान भी थे, अपने सैनिकों के साथ खानदेश की मुहिम पर निकले। ‘होल’ गाँव से गुजर रहे थे कि किसी पेड़ के पीछे से एक मिट्टी का ढेला बड़े जोर से आकर उनके मुँह पर लगा। उनके मुँह से खून आने लगा। इतने में एक बालक गाँव की तरफ भागता दिखायी दिया। बाजीराव ने सैनिकों को आदेश दियाः ”जाओ, उस बालक को शीघ्र पकड़कर ले आओ।” जब पेशवा के सामने उस बालक को लाया गया तो पीछे-पीछे उसकी विधवा माँ और मामा भी आ गये।
बालक ने आते ही निडरता से व्यंग्यात्मक प्रश्न कियाः “क्यों, मिट्टी के ढेले से पेट नहीं भरा क्या ?”
बाजीराव उस बालक की निर्भयता देखकर दंग रह गये ! बालक से पूछाः “तुमने मुझे ढेला क्यों मारा ?”
बालकः “शुक्र मनाओ कि ढेला ही मारा है। तुम लोग हमें लाचार मानकर हमारी भेड़-बकरियों को मार के खा जाते हो, किसानों की फसलें जला देते हो। लेकिन अब हम नहीं सहेंगे, हम लड़ेंगे और तुम्हें मुँह की खानी पड़ेगी, जैसे अभी खायी है।”
पेशवाजी तनिक भी क्रोधित नहीं हुए बल्कि बालक की निर्भयता व वीरता देखकर बहुत प्रसन्न हुए और बोलेः “बेटा ! मैं तुम्हारी निडरता देख बहुत खुश हुआ लेकिन हम वे नहीं हैं जो तुम समझ रहे हो। मैं तो साहूजी महाराज का मंत्री बाजीराव हूँ। हमारे महाराज तो आप सबके रक्षक हैं।”
बालक शर्मिन्दा होते हुए बोलाः “क्षमा कीजिये। आप ही की तरह वे मुगल सैनिक घोड़े पर सवार होकर आते हैं जिस कारण मैं धोखा खा गया।”
पेशवा ने बालक की माँ और मामा से कहाः “यह बालक बड़ा निर्भय और होनहार है। इस कोमल उम्र में इतना साहस ! धन्य है इसका अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम ! बचपन में ही वतन के लिए मर-मिटने का अदभुत भाव है। यह जरूर एक दिन बहादुर सिपहसालार बनकर मराठा साम्राज्य में चार चाँद लगायेगा। अगर आप लोग अनुमति दें तो इसे महाराज की सेवा के लिए ले जाऊँ ?”
माँ और मामा ने गौरवान्वित हो स्वीकृति दे दी। यही बालक आगे चलकर मराठा साम्राज्य का वीर सेनापति “मल्हारराव होल्कर’ के नाम से शौर्य एवं पराक्रम का प्रतीक बनकर चमक उठा। सारे मुगल सरदार इसके नाम से थरथर काँपते थे।
हमारे देश में मल्हारराव होल्कर, हकीकत राय, गुरुगोविन्दसिंह के दो वीर पुत्र, स्कंदगुप्त, छत्रपति वीर शिवाजी – ऐसे अनेक वीर बालक हुए हैं, जिन्होंने अपनी संस्कृति, धर्म व राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राणों तक की परवाह नहीं की। हर बच्चे में इनके समान साहस, शौर्य व योग्यताएँ छुपी हुई हैं। माँ-बाप को चाहिए कि वे अपने बच्चों में बाल्यकाल में ही ऐसे संस्कारों का सिंचन करें कि उनमें भी अपनी संस्कृति व देश के लिए कुछ कर दिखाने की उमंग जगे। आज की मैकाले शिक्षा पद्धति, फिल्मों, मीडिया आदि के माध्यम से हमारे देश के नौनिहालों को भ्रमित किया जा रहा है। देश में ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि वे पाश्चात्य जगत के अँधानुकरण के लिए विवश हो जायें और अपनी भारतीय संस्कृति व धर्म के प्रति हीनभावना से ग्रस्त हो जायें। अतः हमें अपने देश की बाल पीढ़ी की ऐसे वातावरण से रक्षा करनी होगी और उन्हें संतों-महापुरुषों के मार्गदर्शन का लाभ दिलाना होगा, जिससे उनका जीवन चमक उठे और वे अपने देश, संस्कृति व माता-पिता को गौरवान्वित कर सकें।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2014, पृष्ठ संख्या 19,20 अंक 257
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