(तुलसी विवाह प्रारम्भः 3 नवम्बर 2014)
तुलसी के निकट जिस मंत्र-स्तोत्र आदि का जप-पाठ किया जाता है, वह सब अनंत गुना फल देने वाला होता है।
प्रेत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस, भूत, दैत्य आदि सब तुलसी के पौधे से दूर भागते हैं।
ब्रह्महत्या आदि पाप तथा पाप और खोटे विचारों से उत्पन्न होने वाले रोग तुलसी के सामीप्य एवं सेवन से नष्ट हो जाते हैं।
तुलसी का पूजन, रोपण व धारण पाप को जलाता है और स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदायक है।
श्राद्ध और यज्ञ आदि कार्यों में तुलसी का एक पत्ता भी महान पुण्य देने वाला है।
जो चोटि में तुलसी स्थापित करके प्राणों का परित्याग करता है, वह पापराशि से मुक्त हो जाता है।
तुलसी के नाम-उच्चारण से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
तुलसी ग्रहण करके मनुष्य पातकों से मुक्त हो जाता है।
तुलसी पत्ते से टपकता हुआ जल जो अपने सिर पर धारण करता है, उसे गंगास्नान और 10 गोदान का फल प्राप्त होता है।
पद्म पुराण से।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2014, पृष्ठ संख्या 30, अंक 262
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