सामाजिक व्यवस्था को तहस नहस करने का षड्यंत्र

सामाजिक व्यवस्था को तहस नहस करने का षड्यंत्र


‘दामिनी प्रकरण के बाद बनाये गये यौन-शोषण विरोधी कानूनों में कई मामूली आरोपों को गैर जमानती बनाया गया है। इससे ये कानून किसी निर्दोष पर भी वार करने के लिए सस्ते हथियार बनते जा रहे हैं।’ – यह मत अनेक विचारकों एवं कानूनविदों ने व्यक्त किया है। लोग अपनी दुश्मनी निकालने तथा अपने तुच्छ स्वार्थों की पूर्ति के लिए बालिग, नाबालिग लड़कियों एवं महिलाओं को मोहरा बना के उनसे झूठे आरोप लगवा रहे हैं।

‘भारतीय आतंकवाद विरोधी मोर्चा’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष, अधिवक्ता वीरेश शांडिल्य कहते हैं- “इस कानून की चपेट में संत समाज, राजनेता, सरकारी अधिकारी, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और आम आदमी – सभी हैं। यौन शोषण की धारा का अब हथियार की तरह इस्तेमाल होने लगा है, जो समाज के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इससे तो देश में अराजकता का माहौल पैदा हो जायेगा। इस खतरनाक महामारी को, कैंसर व एड्स से भी खतरनाक बीमारी को रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना होगा।

बलात्कार निरोधक कानून में ऐसे प्रावधान हैं जिनसे शिकायतकर्त्री बिना किसी सबूत के किसी पर भी आरोप लगाकर जेल भिजवा सकती है। इसका दुरुपयोग दहेज उत्पीड़न कानून से ज्यादा खतरनाक तरीके से हो रहा है। क्योंकि दहेज कानून तो शादी के बाद लगता था परंतु यह आरोप तो किसी भी व्यक्ति पर कभी भी केवल लड़की या महिला के बोलने मात्र से लग जाता है। इसमें जल्द बदलाव होना चाहिए, नहीं तो एक के बाद एक, निर्दोष प्रतिष्ठित व्यक्तियों से लेकर आम जनता तक सभी इसके शिकार होते रहेंगे। ऐसे कई उदाहरण भी सामने आ रहे हैं।

दिल्ली की एक लड़की ने अपनी उम्र 17 बताकर एक उद्योगपति के विरूद्ध दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया, पॉक्सो एक्ट भी लगा पर बाद में लड़की 22 साल की निकली। उद्योगपति से 50 लाख रूपये लेते हुए लड़की के साथी पकड़े गये तो इसी गैंग के ऐसे ही दो अन्य बनावटी बलात्कार के मामलों की जानकारी बाहर आयी।

पंचकुला (हरियाणा) में पहले तो एक महिला ने एक प्रापर्टी डीलर के खिलाफ रेप का मामला दर्ज कराया और उसके बाद उस व्यक्ति से डेढ़ करोड़ की फिरौती माँगी।

फरीदाबाद में एक युवती ने दो युवकों व एक महिला के साथ मिलकर बलात्कार का एक फर्जी मुकद्दमा दर्ज कराया। बाद में पोल खुली कि यह झूठा मामला 10 लाख रूपये उगाहने के लिए एक सामूहिक साजिश थी।

दिल्ली में 20 साल की लड़की ने दो युवकों पर गैंगरेप का आरोप लगाया। आरोप झूठा साबित हुआ। आरोपियों को बरी करते हुए दिल्ली फास्ट ट्रैक कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेन्द्र भट्ट ने कहाः “यह बहुत अफसोसजनक है कि एक रूझान चल निकला है जिसमें जाँच अधिकारी अपने फर्ज और जिम्मेदारियों को पूरी तरह धत्ता बताते हुए बलात्कार की शिकायत करने वाली लड़की के इशारे पर नाचते हैं।”

पहले सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश श्री अशोक कुमार गांगुली पर यौन-शोषण का आरोप लगा, फिर सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश श्री स्वतंत्र कुमार पर बलात्कार का आरोप लगाया गया और अभी हाल ही में देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में चुने गये श्री एच.एल.दत्तु पर एक महिला ने यौन-शोषण का आरोप लगाया है। पहली कथित घटना 1 साल, दूसरी ढाई साल तो तीसरी तीन साल पहले की है ऐसा आरोपकर्ता महिलाओं ने बताया है।

न्यायमूर्ति श्री एच.एल.दत्तु पर आरोप लगाने वाली महिला ने इससे पहले न्यायमूर्ति आर.एस.एंडलॉ, न्यायमूर्ति एस.के. मिश्रा, न्यायमूर्ति गीता मित्तल व न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल के खिलाफ भी भिन्न-भिन्न आरोप लगाये हुए हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारत के मुख्य न्यायाधीश श्री दत्तु की नियुक्ति को रोकने की उस महिला की याचिका को खारिज करते हुए कहाः “न्यायालय बदला लेने की जगह नहीं है।”

झूठे आरोप लगाकर किसी भी पुरुष का जीवन तहस-नहस करने और उसके साथ जुड़ी माँ, बहन, पत्नी आदि कई महिलाओं का जीवन बरबाद कर देने की प्रवृत्ति बढ़ने से ये कानून महिलाओं की सुरक्षा की जगह महिलाओं एवं पुरुषों-दोनों के लिए समस्या बन गये हैं। जिस व्यक्ति के ऊपर यह झूठा आरोप लगता है उसके परिवार का जीवन कैसा भयावह (दुःखदायी) हो जाता है ! बिना सच्चाई जाने समाज उऩ्हें बहिष्कृत कर देता है। कितने ही लोगों ने आत्महत्या तक कर ली। उनको न्याय कौन देगा ?

प्रतिष्ठितों के खिलाफ इस प्रकार के बेबुनियाद आरोप लगवाना-लगाना यह देश की व्यवस्था को कमजोर व अस्थिर करने के बहुत बड़ा षड्यंत्र है। अगर षड्यंत्रकारी अपने मंसूबों में कामयाब हो गये तो इस देश में जंगलराज हो जायेगा। असामाजिक तत्व अपनी क्षुद्र स्वार्थपूर्ति के लिए नारी समाज को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश व मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्री आर.डी. शुक्ला ने भी कहा है कि “नये बलात्कार निरोधक कानूनों की समीक्षा की आवश्यकता है। इनका दुरुपयोग रोकने के लिए संशोधन जरूरी है। किसी भी कानून में उसके दुरुपयोग होने की सम्भावना न्यूनतम होनी चाहिए। कानूनों को व्यावहारिक और प्रभावी बनाने के लिए कार्य होना चाहिए।”

किसी व्यक्ति को केवल  आरोपों के आधार पर लम्बे समय तक जेल में रखे जाने के विषय में अधिवक्ता अजय गुप्ता कहते हैं – ट्रायल के दौरान आरोपी को जेल में रखना समय पूर्व सजा देने से कम नहीं हैह।”

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच.एल.दत्तु कहते हैं- “बेल रूल है और जेल अपवाद। न्यायालय सजा निर्धारण के बाद सजा के सिद्धान्त का अधिक सम्मान करता है और हर आदमी तब तक निर्दोष है जब तक वह विधिवत् कोशिश करता है और विधिवत् उसे दोषी नहीं साबित कर दिया जाता।”

दहेज उत्पीड़न कानून के बाद अब बलात्कार निरोधक कानूनों में भी बदलाव करना होगा, नहीं तो असामाजिक स्वार्थी तत्व इसकी आड़ में सामाजिक व्यवस्था को तहस-नहस कर देश को विखंडित कर देंगे।

पूज्य बापू जी की प्रेरणा से देश-विदेश में हजारों बाल-संस्कार केन्द्र निःशुल्क चल रहे हैं। कत्लखाने ले जाने से बचायी गयीं हजारों गायों की सेवा की जा रही है। गरीबों-आदिवासियों के जीवन को उन्नत बनाने के लिए ‘भजन करो, भोजन करो, रोजी पाओ’ जैसी योजनाएँ चल रही हैं। पूज्य बापू जी के सम्पर्क में आऩे से असंख्य लोगों की शराब-कबाब आद बुरी आदतें छूट गयीं। कितने लोग नशे के पाश से छूट गये और कितने परिवार टूटने से बच गये ! पूज्य बापू जी द्वारा चलायी जा रही इन सेवाप्रवृत्तियों में रूकावट डालने से नुकसान किसको है ? समाज को ही न ! जिन महापुरुष का हर पल समाज के हितचिंतन में जाता है, उसके समय की बरबादी समाज की हानि नहीं तो किसकी है ? देश के नौनिहालों और युवाओं को, जो पाश्चात्य अंधानुकरण से प्रभावित होकर अपनी संस्कृति से विमुख हो रहे थे, उन्हें उत्तम संस्कार और सही दिशा बापू जी ने दी है, क्या यह सब टीका-टिप्पणी करने वाले कर सकते हैं ? क्या मीडिया या अन्य कोई समाज के इस नुकसान का भुगतान कर सकता है ? कभी नहीं।

अब समाज के जागरूक होने का समय आ गया है। जरूरत है कि हम अपने धर्म एवं संस्कृति की जड़ों को काटने के लिए रचे जा रहे षड्यंत्रों को समझें। जिन कानूनों से निर्दोषों को फँसाकर देश को तोड़ने का कार्य किया जा रहा है, उन कानूनों के प्रति अपनी आवाज उठायें। इन कानूनों में संशोधन करने के लिए अपने-अपने क्षेत्र के सांसदों, विधायकों, जिलाधीशों को ज्ञापन दें तथा माननीय राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृह मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय तथा देश के मुख्य न्यायाधीश को ज्ञापन सौंपें। इस प्रकार समाज के जागरूक लोगों को सामाजिक विखंडण करने वाले इन कानूनों के खिलाफ अपनी आवाज उठानी चाहिए।

श्री रवीश राय

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2014, पृष्ठ संख्या 6-8, अंक 262

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