अथर्ववेद (5.19.6) में आता हैः
उग्रो राजा मन्यमानो ब्राह्मणं यो जिघत्सति।
परा तत् सिच्यते राष्ट्र ब्राह्मणो यत्र जीयते।।
अर्थात जिस राष्ट्र में ब्रह्मज्ञानियों को, वेदवेत्ताओं को सताया जाता हो, वह राज्य ज्ञानहीन होकर नष्ट हो जाता है।
महापुरुष, ज्ञानवान दूरदर्शी होते हैं और समाज के दोष-दुर्गुओं को दूर करने के लिए सदैव प्रयासरत रहते हैं। वे देश के नागरिकों को चरित्रवान, संस्कारवान व ज्ञानवान बनाने के लिए सतत संघर्ष करते रहते हैं। समाज को ऐसे योग्य व्यक्तियों का सम्मान करना चाहिए।
अपूज्या यत्र पूज्यन्ते पूजनीयो न पूज्यते।
त्रीणि तत्र प्रवर्तन्ते दुर्भिक्षं मरणं भयम्।।
(स्कन्द पुराण, मा.के. 3.45)
जहाँ पूजनीय लोगों का सम्मान नहीं होता और असम्माननीय लोग सम्मानित होते हैं, वहाँ भय, मृत्यु, अकाल, दरिद्रता, शोक तांडव करते हैं। जैसे सद्दाम व लादेन का सम्मान और महात्मा बुद्ध की मूर्तियों का अपमान हुआ तो उन देशों में भय, शोक, बमबारी, लड़ाई, झगड़े, नरसंहार रुकने का नाम नहीं लेते। श्रेष्ठ जनों का अपमान, अवहेलना आबादी को बरबादी में बदलते हैं।
विदेशी शक्तियाँ हमारी संस्कृति को नष्ट करना चाहती हैं। अभी भी समय है क हम चेत जायें और ब्रह्मनिष्ठ महापुरुषों द्वारा दिखाये गये मार्ग का अनुसरण करते हुए राष्ट्र के एवं स्वयं अपने भी स्वाभिमान की रक्षा करें तथा देश को नष्ट होने से बचायें, भारतीय संस्कृति को, ऋषि संस्कारों को बचायें।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2014, पृष्ठ संख्या 21, अंक 263
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