बच्चों को सुरक्षित माहौल मुहैया कराने और बच्चों के साथ अपराध करने वालों को सज़ा दिलाने के उद्देश्य से ‘पॉक्सो’ कानून बनाया गया था। परंतु सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता पवन शर्मा कहते हैं कि “पॉक्सो कानून में दी गयी बच्चे की परिभाषा तथा शंका के आधार परर कार्यवाही करने की पुलिस की बाध्यता इस कानून के दुरुपयोग के खतरे को बढ़ा देता है।” इतना ही नहीं, बच्चे को यौन शोषण की आशंका उसके अभिभावकों द्वारा जताये जाने पर कार्यवाही होना भी इस कानून की कमजोर कड़ी है।
पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता रविशेखर सिंह बताते हैं- “पॉक्सो कानून का सबसे कमजोर पहलू इसमें दी गयी नाबालिग की परिभाषा है। धारा 2(1)(डी) के अनुसार जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम हो वह नाबालिग है। किसी की उम्र किस तरह निर्धारित की जायेगी तथा वास्तविक उम्र के लिए कौन से प्रमाण पत्र मान्य होंगे, इसके बारे में कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे कई मामले सामने आये हैं, जिनमें एक ही लड़की के उम्रसंबंधी 3-4 अलग-अलग दस्तावेज पाये गये हैं। ऐसी स्थिति में वास्तविक उम्र का पता लगाने के लिए पुख्ता जाँच का प्रावधान होना चाहिए।”
नाबालिगों को मोहरा बना के इस कानून का प्रयोग बदला लेने और स्वार्थसिद्धि के लिए होने लगा है, ऐसा कई अधिवक्ताओं का मानना है। दिल्ली का रहने वाला रवि और उसके पड़ोस की लड़की – दोनों की शादी करने की बात पिता को मालूम पड़ी तो उसने लड़की के बालिक होने पर भी रवि के खिलाफ पॉक्सो के तहत यौन-शोषण का मुकद्दमा दर्ज करा दिया। इस सदमे से रवि ने आत्महत्या कर ली। विस्तृत खबर हेतु लिंक https://goo.gl/m4r8Ak
जोधपुर में 8वीं कक्षा की एक छात्रा ने अपनी चारित्रिक गलती को छुपाने के लिए गलती पकड़ने वाले पड़ोसी युवक पर पॉक्सो एक्ट के तहत मुकद्दमा दर्ज करा दिया था। लेकिन जाँच के दौरान लड़की ने सच्चाई स्वीकार की और बड़ी मुश्किलें सहने के बाद युवक निर्दोष साबित हुआ। विस्तृत खबर हेतु लिंक https://goo.gl/HOGEVH
धारा 22(2) के अनुसार अगर नाबालिग ने झूठा आरोप खुद लगाया है तो यह बात साबित होने पर भी उसे कोई सज़ा नहीं हो सकती। बालिग अपराधी जानते हैं कि किशोर अपराधी छूट जायेगा, अतः वे उन्हें अपराध में शामिल करते हैं या उनसे अपराध करवाते हैं।
मीडिया विश्लेषक उत्पल कलाल कहते हैं- “बच्चों व महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून जरूरी है परन्तु आज झूठे आरोप लगाने के लिए किस प्रकार साजिश रचकर लड़कियों व महिलाओं को मोहरा बनाया जाता है, इसका ताजा उदाहरण है संत आशाराम जी बापू को फँसाया जाना। शाहजहाँपुर (उ.प्र.) की आरोप लगाने वाली लड़की की सहेली का बयान देख सकते हैं। लड़की अपनी सहेली से कहती है कि ‘मेरे से जैसा बुलवाते हैं, वैसा मैं बोलती हूँ।’ मेडिकल रिपोर्ट व चिकित्सक के बयान दोनों से बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई है। मामूली खरोंच के निशान भी नहीं पाये गये। सूरत केस में भी बापू पर आरोप लगाने वाली महिला ने मीडिया को बताया कि पहले दिया हुआ बयान डर और भय से दिया था, अब मैं सच्चाई बताना चाहती हूँ।”
अधिवक्ता रविशेखर सिंह कहते हैं- “पॉक्सो व नये बलात्कार निरोधक कानून के प्रावधान काफी कड़े हैं। अतः यह कार्यवाही जरूरी है किसी भी तरह की कार्यवाही करने से पहले पुलिस प्रत्येक आरोप की प्रथम दृष्टया जाँच करे और ठोस सबूत मिलने पर ही अभियुक्त के विरूद्ध कार्यवाही करे। सिर्फ आरोप के आधार पर किसी को गिरफ्तार करना व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का गम्भीर उल्लंघन है।”
पॉक्सो व बलात्कार निरोधक कानून की खामियों को दूर करने से ही समाज के साथ न्याय हो पायेगा अन्यथा एक के बाद एक निर्दोष सज़ा भुगतने के लिए मजबूर होते रहेंगे। इसमें पुरुषों के साथ संबंधित बेशुमार महिलाएँ व बच्चे और रिश्ते-नातेदार भी पीड़ित हो रहे हैं। अतः बच्चों-महिलाओं की सुरक्षा तथा राष्ट्रहित में कार्यरत संस्थाएँ और जागरूक जनता सजग हो और इन कानूनों में आवश्यक संशोधन की माँग हो।
श्री रवीश राय
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2015, पृष्ठ संख्या 8,9 अंक 265
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