जीव को ब्रह्म बनाने का विश्वविद्यालय

जीव को ब्रह्म बनाने का विश्वविद्यालय


भगवत्पाद सदगुरुदेव साँईं श्री लीलाशाह जी महाराज की आज्ञा से पूज्य बापू जी ने संवत् 2028 में गुरुपूर्णिमा अर्थात् 8 जुलाई 1971 को अहमदाबाद की धरती पर चरण रखे। आश्रम स्थापना के बारे में पूज्य श्री बताते हैं- “हम वाड़ज (अहमदाबाद) में सत्संग करने के लिए आये थे। शहरी माहौल से हमारा चित्त ऊब गया था, इसलिए इधर घूमने के लिए आये थे। यहाँ आते ही हमारे चित्त में कुछ विलक्षण एहसास हुआ। हमने समितिवालों से कहा कि ‘यहाँ एक कुटिया बना दें तो कैसा रहेगा ?’
उन्होंने कहाः “बापू जी ! जरूर बननी चाहिए।” मोक्ष कुटीर बनाने के कार्य में मजदूरों के साथ हम भी लगे थे। लगभग 15 साल तो हम मोक्ष कुटीर में रहे।”
‘मौनी अमावस्या’ के दिन संवत् 2028 अर्थात् सन् 1972 में मोक्ष कुटीर तैयार हुआ था। इस आश्रम की महत्ता बताते हुए पूज्य बापू जी कहते हैं- “यहाँ पूर्वकाल में जाबल्य ऋषि ने तपस्या की थी। यहाँ पिछले 43 साल से ध्यान-भजन चल रहा है। कितना भी अशांत व्यक्ति इधर आश्रम के माहौल में आता है तो उसके चित्त में यहाँ की आध्यात्मिक आभा का, ध्यानयोग का, भक्तियोग का कुछ-न-कुछ सात्त्विक एहसास होने लगता है। इस भूमि में आत्मसुख को जगाने की आभा है।”
करीब 30-35 वर्ष पूर्व कुछ पर्यटक अहमदाबाद आश्रम में आये थे। आश्रम के एकांत और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण वातावरण से प्रभावित हुए बिना वे नहीं रह सके। उन्होंने पूज्य बापू जी से पूछाः “यहाँ क्या प्रवृत्ति होती है ?” पूज्य श्री बोलेः “त्रिकाल संध्या होती है। ध्यान-भजन होता है।”
उन्होंने आश्चर्य से पूछाः “इतनी सुंदर जगह ! क्या यहाँ कुछ प्रवृत्ति नहीं होती ?”
तब पूज्य श्री ने कहाः “यहाँ जीव को अपने ब्रह्मस्वभाव में जगाने का विश्वविद्यालय चलता है !”
पूज्य बापू जी के कल्याणकारक मार्गदर्शन में आश्रम द्वारा लोक-कल्याण की अनेकानेक सत्प्रवृत्तियाँ चलायी जा रही हैं, जिनसे समाज के विभिन्न वर्गों के असंख्य लोग लाभान्वित हो रहे हैं। इस आश्रमरूपी विशाल वटवृक्ष की शाखाएँ भारत के शहरो-गाँवों तक ही नहीं, केवल विदेशों तक ही नहीं बल्कि करोड़ों हृदयों तक फैल चुकी हैं।
इस महान तपोभूमि, तीर्थभूमि के 43वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में 20 जनवरी को अहमदाबाद आश्रम म् ‘श्री आशारामायण’ का सामूहिक पाठ, पादुका-पूजन, पूज्य श्री के दुर्लभ सत्संग, भजन-कीर्तन, प्रार्थना आदि कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। 40-45 वर्षों से पूज्य श्री के सान्निध्य से लाभान्वित हो रहे साधकों ने अपने अनुभव बताये। सभी साधकों ने पूज्य बापू जी से करूण भाव से प्रार्थना कीः ‘हे गुरुवर ! आपके बिना सब सूना है। हम बच्चों के लिए ही सही, अब तो आश्रम जल्दी आ जाइये !’
स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2015, पृष्ठ संख्या 27, अंक 266
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *