सूर्यकिरण हजार प्रकार के हैं। उनमें तीन विभाग हैं – एक तापकर्ता (ज्योति), दूसरे पोषक (आयु) और तीसरे गो किरण। तापकर्ता और पोषक किरण तो हम झेलते हैं लेकिन गो किरण कोई प्राणी नहीं झेल सकता है। सूर्यकेतु नाड़ी जिस प्राणी में है, वही गो किरण पर्याप्त मात्रा में झेल सकता है और सूर्यकेतु नाड़ी देशी गाय में है। वह गो किरण पीती है इसलिए उसका नाम ‘गौ’ है। अभी विज्ञानी चकित हो गये कि देशी गाय के दूध में, घी में, मूत्र में और गोबर में सुवर्णक्षार पाये गये। मैं खुली चुनौती देता हैं कि दुनिया का ऐसा कोई देश हो या ऐसा कोई व्यक्ति हो जो मुझे सच्चाई से कह दे कि ‘फलाने व्यक्ति का, फलाने जीव का मल और मूत्र पवित्र माना जाता है।’ नहीं बोल सकता है। केवल हिन्दुस्तान की देशी गाय का मल और मूत्र पवित्र माना जाता है। मरते समय भी गौमूत्र व गोबर से लीपन करके मृतक व्यक्ति को सुलाया जाता है। और खास बात, कोई मर गया हो या मरने की तैयारी में हो तो वहाँ गोझरण छिड़क दो अथवा गोबर व गोमूत्र से लीपन कर दो, उसकी दुर्गति नहीं होगी।
गौ सेवा से बढ़ती है आभा व रोगप्रतिकारक शक्ति
देशी गाय के शरीर से जो आभा (ओरा) निकलती है, उसके प्रभाव से गाय की प्रदक्षिणा करने वाले की आभा में बहुत वृद्धि होती है। आम आदमी की आभा 3 फीट की होती है, जो ध्यान भजन करता है उसकी आभा और बढ़ती है। साथ ही गाय की प्रदक्षिणा करे तो आभा और सात्त्विक होगी। डॉक्टरों, वैद्यों, हकीमों ने कहा हो कि ‘यह आदमी बच नहीं सकता है, यह रोग असाध्य है।’ तो देशी गाय को पालो और अपने हाथ से उसको खिलाओ, थोड़ा प्रसन्न करो और उसकी पीठ पर हाथ घुमाओ। उसकी प्रसन्नता के स्पंदन आपकी उँगलियों के अग्रभाग से शरीर में आयेंगे और आपकी रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी। 6 से 12 महीने लगेंगे लेकिन आप चंगे (स्वस्थ) हो जाओगे। गाय पालने के और भी बहुत सारे फायदे है। श्रीकृष्ण गाय चराने जाते थे, राजा दिलीप गाय चराने जाते थे, मेरे गुरुदेव गौशालाएँ चलवाते थे और अपने यहाँ कत्लखाने ले जायी जा रही गायों को रोक-रोक के निवाई (राज.) में 5 हजार गायें रखी गयीं थी। अभी वहाँ चारा बहुत महँगा मिलता है तो अलग-अलग जगह पर गौशालाएँ खोल दी हैं और वहाँ सेवा होती रहती है।
आप भी फायदे में, गाय भी बनेगी स्वनिर्भर
भैंस का दूध मिले 25 रूपये लीटर और देशी गाय का दूघ मिले 27 रूपये का तो गाय का ही लेना चाहिए क्योंकि यह बहुत सात्त्विक एवं मेधाशक्तिवर्धक है। गाय के गोबर से धूपबत्तियाँ और कई चीजें बनती हैं, उसके साथ-साथ फिनाईल बनता है। रसायनों से बना फिनायल जीवाणुओं को तो नष्ट करता है लेकिन हवामान भी गंदा करता है। इससे ऋणात्मक आभा बनती है। लेकिन गोझरण से बने हुए फिनायल से घर में सात्त्विक आभा पैदा होगी और गायों की सेवा भी होगी, साथ ही यह गाय को स्वनिर्भर कर देगा। एक गाय से 6 से 7 लीटर गोमूत्र रोज मिलता है और गोमूत्र इकट्ठा करने वाले मजदूरों को रोजी मिलेगी। अतः सभी लोग गोझरण वाले फिनायल की माँग करो। तो यह सब दिखती है गाय की सेवा लेकिन इसके द्वारा आप अपनी ही सेवा कर रहे हैं।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2015, पृष्ठ संख्या 14 अंक 267
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