ईश्वरप्राप्ति में बाधक क्या है ? मान की चाह, अति भाषण, यश की लोलुपता, अधिक निद्रा, अधिक खान-पान, धन की लोलुपता – धन की माँग या दान की माँग। सातवी है कि अत्यन्त छोटी-छोटी बातों में, छोटे-छोटे लोगों में या छोटी-मोटी, हलकी पुस्तकों में उलझना और आठवीं बात है क्रोध और द्वेष। गुस्से-गुस्से में निर्णय लेना, ‘यह ऐसा है, वह ऐसा है….’ अपने अंदर गंदगी नहीं होगी तो दूसरे की गंदगी का महत्तव नहीं लगेगा। नौवीं है कामासक्ति। कामासक्ति भी आदमी को बेईमान और ईश्वर से दूर कर देती है। दसवीं है आलस्य और ग्यारहवीं है शौकीनी। ये ग्यारह बातें नाश का साधन हैं। इनसे बचें और हितकारी ग्यारह बातें अपने जीवन में लायें। गंदी आदत और गंदे स्वभाव का त्याग करें।
हितकारी ग्यारह बातें हैं – सत्संग में रुचि, दया, सबसे मैत्री, नम्रताभरा और शास्त्रोचित व्यवहार, व्रत-नियम, तपस्या, पवित्रता और सहनशीलता। सहनशीलता की कमीवाला भगेड़ू होता है। दसवीं बात है मितभाषण और ग्यारहवीं है स्वाध्यायशीलता।
एक दिन भी मेरे गुरुदेव स्वाध्याय के बिना नहीं रहे 93 साल की उम्र तक ! जब महाप्रयाण कर रहे थे उस समय भी सत्संग की बात सुनायी कि “शरीर में पीड़ा हो रही है, इसका प्रारब्ध है। मैं इस पीड़ा का साक्षी चैतन्य आत्मा हूँ।”
स्वाध्यायान्मा प्रमदः। तैत्तिरीयोपनषिद् 1.11
सत्संग व सत्शास्त्र का विचार करने में आलस्य नहीं करो, लापरवाही न करो।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2015, पृष्ठ संख्या 19 अंक 267
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