सावधान ! समय बीत रहा है

Rishi Prasad 268 Apr 2015

सावधान ! समय बीत रहा है


हमारे जीवन का आधा हिस्सा सोने में बीतता है। कुछ भाग बीमारियों में चला जाता है। जो कुछ शेष है उसको भी लोग टी.वी., इंटरनेट, मखौल, इधर-उधर की बातों में बिता देते हैं। वे नहीं जानते कि उन्होंने अपना अत्यंत कीमती समय नष्ट कर दिया और कर रहे हैं। ऐसे वे ही लोग होते हैं जिनके जीवन का न कोई उद्देश्य होता है न कोई सिद्धान्त। वे लोग कितने अनजान हैं कि उनको अपनी इस अवनति का भान भी नहीं है। वे लोग धन को नष्ट करने में तनिक भी हिचकते नहीं, साथ-साथ चरित्र और समय की बलि भी देते हैं।
मनुष्य का जन्म किसी कार्य-विशेष के लिए हुआ है। जीवन खाने-पीने, पहनने और परिवार में परेशान होने के लिए नहीं है अपितु जीवन के पीछे परमात्मा का पवित्र विधान है। इस अनित्य शरीर में नित्य सच्चिदानंद स्वभाव को पाना व जानना ही वास्तविक जीवन है। इसलिए जीवन का प्रत्येक क्षण साक्षी सुखस्वरूप की स्मृति में, ध्यान में प्रतिष्ठित होने के लिए लगाना चाहिए। समय बेशकीमती है। एक बार हाथ से निकल गया तो निकल गया। जब-जब समय की सूचना देने वाली घंटी बजती है, तब-तब समझो कि तुम्हारे जीवन में मृत्यु एक घंटे को पार कर चुकी है। सोचो तो सही कि आज तुम कुछ नहीं करोगे तो और कब कर पाओगे। दूसरे क्षण क्या होगा, कौन जानता है ? किसी भी क्षण, इस समय भी दम निकल सकता है, इसमें संदेह ही क्या है ?
कब ऐसा काम करोगे जिससे जीवन का मतलब सिद्ध हो, मनुष्य-जीवन और पशु-जीवन में अंतर पड़े। कभी विचार करो कि ‘हम क्या हैं और क्या कर रहे हैं ?’ शरीर नश्वर है, अनिश्चित है तो इसका अर्थ यह नहीं कि हम पलायनवादी बनें। एक-एक क्षण का सत्स्वरूप की प्रीति में उपयोग करना चाहिए। समय अनमोल है, इसको अनमोल परमात्मा को पाने में ही लगाना चाहिए।
जिसको सफलता पानी हो और अपना मनुष्य जीवन धन्य करना हो, उसे अपना समय सत्संग, स्वाध्याय, सेवा, परोपकार आदि में ही बिताना चाहिए। बेकार की बातें एक क्षण के लिए भी की जायें तो मन पर बड़ा बुरा प्रभाव डालती हैं। यदि किन्हीं महापुरुष के दो वचन लग जाते हैं तो जीवन ही बदल जाता है। समय भाग ही नहीं रहा है, सीमित भी है। समय देने से भी बीता समय नहीं लौटता। धन तिजोरी में संग्रहीत कर सकते हैं परंतु समय तिजोरी में नहीं संजोया जा सकता। ऐसे अमूल्य समय को श्रेष्ठ कार्यों में, श्रेष्ठ चिंतन में, परम श्रेष्ठ ‘सोऽहम्’ स्वभाव में लगाकर जीवन सार्थक करें। सबसे श्रेष्ठ कार्य है ब्रह्मवेत्ता महापुरुष के मार्गदर्शन में परमात्मप्राप्ति करना।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2015, पृष्ठ संख्या 30, अंक 268
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