भारत में मानव-अधिकार नहीं हैं ?

भारत में मानव-अधिकार नहीं हैं ?


-मिसेज ए. हिग्गिंस, लंदन, इंग्लैंड
(अंग्रेजी में प्राप्त हुई ईमेल का अनुवाद)
मैं एक 58 वर्षीय महिला हूँ, जिसका जन्म इंग्लैंड में हुआ था। मेरे माता-पिता के धर्म अलग-अलग थे। उन्होंने मुझे कोई भी धर्म अपनाने की स्वतंत्रता दी। मैंने बहुत सारे धर्म देखे लेकिन उनमें से कोई भी मुझे मेरे अनुकूल नहीं लगा। मैं समझो एक अरण्य में उलझ गयी। मुझे धर्म की जरूरत थी पर मैं एक ऐसा धर्म चाहती थी जो मुझे सांत्वना, सुख और स्वीकृति दे, जो सबको बिना शर्त के स्वीकार करता हो और जिसे मैं सच्चे हृदय से स्वीकार कर सकूँ।
50 वर्ष की उम्र में मैंने जब पहली बार 2007 में ग्वालियर (म.प्र.) में बापू जी के दर्शन किये तो मुझे लगा कि जिसकी आशा कर रही थी वही धर्म मुझे मिल गया। हिन्दू धर्म सभी का स्वागत करता है और सबको अपना लेता है। यह साम्प्रदायिक धर्मान्धता से बिल्कुल रहित है। यहाँ हर जाति, मत और धर्म के लोगों का स्वागत होता है, यहाँ तक कि धर्मविहीनों के लिए भी इसका द्वार खुला है।
यह मेरे लिए अब तक का सबसे विलक्षण अनुभव था। मैंने बापू जी से दीक्षा ली और अपने जीवन में पूर्णता का एहसास किया। मैं अपने आपको अत्यंत भाग्यशाली मानती हूँ कि मुझे एक हयात ब्रह्मज्ञानी संत गुरु के रूप में मिले।
मैं एक सफल प्रॉपर्टी डेवलपर हूँ। मेरा जीवन स्तर काफी सम्पन्न है। लेकिन यह क्षणभंगुर सफलता उस सच्चे सुख के मुकाबले में कुछ भी नहीं है जिसे मैंने बापू जी से मिलने के उपरान्त अपनी आत्मा में विश्वास के रूप में पाया है।
जब मैं बापू जी से मिली, उसी क्षण उन्होंने मुझे अपने चरणों में स्थान दिया। बापू जी ने कभी मुझसे एक रुपया भी नहीं मांगा। बापू जी और उनके शिष्यों की साधुताई से मेरे आध्यात्मिक कल्याण के लिए सब कुछ हुआ है। मैं कितनी भाग्यशाली और धन्य हूँ, यह मेरे लिए शब्दों में बयान करना असम्भव है। जब से बापू जी मिले हैं तब से मेरे जीवन में बहुत सारी चमत्कारी घटनाएँ घटी हैं और अब भी घटती रहती हैं। मेरे जीवन में मानो अब सब कुछ बहुत ही आसान सा हो गया। मैं अपने प्यारे गुरुदेव बापू जी के प्रति सदा कृतज्ञ रहूँगी क्योंकि उन्होंने मुझे विश्वास, आशा और उदारता प्रदान की।
यह मेरी समझ से बाहर है कि आज बापू जी जेल में क्यों हैं। इन बुजुर्ग संत को तो इस उम्र में अपने निःस्वार्थ भाव तथा अथक प्रयासों से किये हुए समस्त पुण्यमय एवं पवित्र संत-उचित कार्यों को भली प्रकार पूरा करने के सुफलों का आनंद उठाते हुए आराम करना चाहिए था। उन लोगों को अपने किये पर वास्तव में शर्म आनी चाहिए जिन्होंने बापूजी को फँसाने के लिए यह षड्यंत्र रचा है। आज जो भारत में बापू जी के साथ हो रहा है ऐसा पूरे विश्व में कहीं पर भी नहीं होता। क्या भारत में मानव-अधिकार की रक्षा करने वाली व्यवस्था नहीं है ? बापू जी के अधिकारों का क्या हुआ ? उन्हें एक साजिश के तहत 2 साल से भी ज्यादा समय से जेल में रखा गया है। उनके खिलाफ न तो कोई ठोस सबूत है और न ही मेडिकल रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि हुई है फिर भी उनको जमानत क्यों नहीं दी जाती ? भारत एक बुजुर्ग सज्जन के साथ ऐसा व्यवहार कैसे कर सकता है ?
मैं रोज बापू जी की रिहाई हेतु प्रार्थना करती हूँ। मुझे आशा है कि भारत शीघ्र ही जागेगा और अपने किये हुए को समझते हुए बापू जी को रिहा कर देगा। यह एक लोकतांत्रिक सरकार के लिए शर्मिंदगी की बात है कि वे एक ऐसे महानतम दर्जे के देशभक्त संत के साथ इस कदर अत्याचार कर रहे हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन अपने देश और पूरे विश्व की भलाई के लिए न्योछावर कर दिया।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2015, पृष्ठ संख्या 29 अंक 275
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