गाय से होने वाले आधिभौतिक, आधिदैविक व आध्यात्मिक लाभों से समाज लाभान्वित हो इस उद्देश्य से हमारे शास्त्रों व संत-महापुरुषों ने गाय को सेवा करने योग्य और आदरणीय बताया है तथा गोपालन व गौ-सरंक्षण की प्रेरणा दी है। ‘ऋग्वेद’ कहा गया हैः ‘इन गौओं पर वध करने के लिए आघात न करें।’
आज विज्ञान भी गाय से होने वाले अनगिनत लाभों को स्वीकार करता है एवं गोवध से होने वाले भयंकर दुष्परिणामों को उजागर कर रहा है। गोवध पर्यावरण के लिए कितना घातक है यह बात आज कई वैज्ञानिक शोधों से सामने आ चुकी है।
‘युनाइटेड नेशन्स एनवायरनमेंट प्रोग्राम’ ने गोमांस को पर्यावरणीय रूप से हानिकारक मांस बताते हुए कहा कि ‘ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के मामले में एक किलो गोमांस-सेवन लगभग 160 कि. मी. तक किसी मोटरवाहन का इस्तेमाल करने के बराबर है।’
ब्रिटेन की ‘युनिवर्सिटी ऑफ लीडस’ के टिम बेंटन के अनुसार “कार्बन फुटप्रिंट (कार्बन डाइऑक्साइड या ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन) घटाने के लिए लोग सबसे बड़ा जो योगदान कर सकते हैं, वह कारें छोड़ना नहीं है बल्कि लाल रंग का मांस खाना कम करना है।”
आलू, गेहूँ या चावल जैसे मूल खाद्यों की तुलना में गोमांस से प्रति कैलोरी ऊर्जा प्राप्त करने में 160 गुना अधिक जमीन लगती है और 11 गुना अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। लाल मांस (गोमांस) के उत्पादन के लिए अन्य मांस की तुलना में 28 गुना अधिक जमीन और 11 गुना अधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है तथा 5 गुना अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जिससे वातावरण में तापमान की वृद्धि हो रही है। इसके कारण कहीं सूखे की समस्या बढ़ रही है तो कहीं समुद्र के जलस्तरों में बढ़ोतरी के कारण तटीय इलाके डूबते जा रहे हैं तो कहीं विनाशक तूफान आते हैं।
वर्ष 2015 में विश्व में गोमांस का कुल उत्पादन 5,84,43000 मीट्रिक टन हुआ और विश्व में पाँचवें स्थान पर भारत में 42,00,000 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ। ( 1 मीट्रिक टन= 1000 कि. ग्रा.)
गोहत्या पर पाबंदी लगाना आज न केवल एक धार्मिक आस्था का विषय है बल्कि पर्यावरण का संतुलन बनाये रखने के लिए भी अनिवार्य है। प्राणिमात्र का मंगल चाहने वाले भारतीय संत-महापुरुष तो आदिकाल से गायों का संरक्षण करते-करवाते आये हैं।
अपने व्यक्तिगत स्वार्थ और मति की संकीर्णता को छोड़कर प्रत्येक व्यक्ति को गोवध पर रोक लगे इस हेतु अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार प्रयास अवश्य करने चाहिए और कम-से-कम अपने आसपास के लोगों में तो जागृति लानी ही चाहिए।
यह संदेश सरकार और उच्च पदों पर आसीन सभी अधिकारियों, सांसदों, विधायकों, जिलाधीशों एवं न्यायपालिका को पढ़ाना चाहिए।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2016, पृष्ठ संख्या 29 अंक 278
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