संतों की अनोखी युक्ति

संतों की अनोखी युक्ति


पूज्य बापू जी

(ऋषि दयानन्द जयंतीः 4 मार्च 2016)

झेलम (अखंड भारत के पंजाब प्रांत का शहर) में एक दिन ऋषि दयानंद जी का सत्संग सम्पन्न हुआ। अमीचन्द ने भजन गाया। दयानंद जी ने उसकी प्रशंसा की। वह जब चला गया तो लोगों ने दयानंद जी से बोलाः “यह तो तहसीलदार है परंतु चरित्रहीन है। अपनी पत्नी को मारता है, उसे घर से निकाल दिया है। शराब पीता है, मांस खाता है…..” इस प्रकार बहुत निंदा की।

दूसरे दिन वह आया। ऋषि दयानंद जी ने उसको फिर से भजन गाने को कहा। उसने भजन गाया और उन्होंने फिर प्रशंसा कीः “तू भजन तो ऐसा गाता है कि मेरा हृदय भर गया। मैं तो कल भी, आज भी भावविभोर हो गया लेकिन देख यार ! सफेद चादर पर एक गंदा दाग लगा है। तू द्वेष करता है, अपनी पत्नी पर हाथ उठाता है। अपनी पत्नी के द्वेष बुद्धि छोड़ दे। अपनी बुराइयाँ व अहंकार छोड़ दे तो तू हीरा होकर चमकेगा। अरे, हीरा भी कुछ नहीं होता। हीरों का हीरा तो तेरा आत्मा है।….” और वह तहसीलदार बदल गया। उसने सारी बुरी आदतें छोड़ दीं और आगे चलकर संगीतकार महता अमीचंद के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

किसी की बुराई देखकर संत उसको ठुकराते नहीं हैं लेकिन उसकी अच्छाई को प्रोत्साहित करके उसकी बुराई उखाड़ के फेंक देते हैं। इसलिए संत का सान्निध्य भगवान के सान्निध्य से भी बढ़कर माना गया है। भगवान तो माया बनाते हैं, बंधन भी बनाते हैं। संत माया नहीं बनाते, बंधन नहीं बनाते, बंधन काट के मुक्त कर देते हैं, इसलिए भगवान और संत को खूब स्नेह से सुनें और उनकी बात मानें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2016, पृष्ठ संख्या 23 अंक 278

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