चार अमृतवेलाएँ हैं। एक सूरज उगने के सवा दो घंटे पहले से सूर्योदय तक (ब्राह्ममुहूर्त का समय) काल-दृष्टि से अमृतवेला है।
दूसरी देश (स्थान) की दृष्टि से अमृतवेला है। जिस देश में, जिस जगह में सत्संग, ध्यान, भजन होता हो, वहीं हम ध्यान-भजन करते हैं तो वह अमृतवेला है।
तीसरी अमृतवेला है संग की दृष्टि से। भगवद्भाव में मस्त, भगवद्भाव से छके हुए सत्संगी सजातीय विचार करते हों, भगवान की गुरु की लीलाओं की, महिमा की चर्चा करते हों तो वह अमृतवेला है।
चौथा – ब्रह्मवेत्ता, ब्रह्मज्ञानी गुरु का सान्निध्य मिले वह अमृतवेला है।
प्रभात की अमृतवेला सभी को सुलभ है। ब्रह्मज्ञानियों का संग, उच्च कोटि के भगवद्भक्त-गुरुभक्तों का संग तथा पवित्र स्थान या आश्रम में रहना सभी को सुलभ नहीं है लेकिन सत्संगियों को इन अमृतवेलाओं का लाभ कभी-कभी एक साथ मिलता है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2016, पृष्ठ संख्या 21 अंक 279
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