महिला सुरक्षा कानून बन रहे हैं महिलाओं के लिए ही घातक

महिला सुरक्षा कानून बन रहे हैं महिलाओं के लिए ही घातक


जरूरी है कानूनों में संशोधन

निर्भया कांड के  बाद बलात्कार से रक्षा हेतु नये कानून बनाये गये, जिनके अंतर्गत प्रावधान है कि शिकायतकर्त्री बिना किसी सबूत के (केवल बोलने मात्र से) किसी पर भी आरोप लगाकर उसे जेल भिजवा सकती है। क्या इन कानूनों के कारण महिलाओं पर होने वाला अत्याचार कम हुआ ? नहीं, बल्कि छेड़खानी, बलात्कार जैसे आरोप लगाकर सनसनी फैलाने के मामले बढ़ने लगे। लोग अपनी दुश्मनी निकालने के लिए बालिग, नाबालिग लड़कियों एवं महिलाओं को मोहरा बना के उनसे झूठे आरोप लगवाने लगे।

2012 में दर्ज किये गये रेप केसों में से ज्यादातर केस बोगस पाये गये। 2013 के शुरुआती 8 महीनों में यह आँकड़ा 75 प्रतिशत तक पहुँच गया था।

दिल्ली महिला आयोग की जाँच के अनुसार अप्रैल 2013 से जुलाई 2014 तक बलात्कार की कुल 2753 शिकायतों में से 1466 शिकायतें झूठी पायी गयीं। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा बरखा सिंह शुक्ला ने कहा कि ‘इस तरह के गलत एवं झूठे मामले काफी चिंतित करने वाले हैं, दुष्कर्म की ज्यादातर फर्जी शिकायतें बदला लेने और पैसे ऐंठने के मकसद से की गयीं थीं।

झूठे आरोपों का बोलबाला

कानून सभी पक्षों को ध्यान में रखकर बनाया जाना चाहिए। कानून ऐसा होना चाहिए जिससे केवल दोषी को सजा मिले, निर्दोष को नहीं। लेकिन आज निर्दोष प्रतिष्ठित व्यक्तियों से लेकर आम जनता तक सभी बलात्कार निरोधक कानूनों के दुरुपयोग के शिकार हो रहे हैं। इसके कई उदाहरण भी सामने आये हैं-

पंचकुला (हरियाणा) में पहले तो एक महिला ने एक प्रॉपर्टी डीलर के खिलाफ रेप का मामला दर्ज कराया और उसके बाद उस व्यक्ति से डेढ़ करोड़ रूपये की फिरौती माँगी।

पहले सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश श्री अशोक कुमार गांगुली पर यौन-शोषण का आरोप लगा, फिर सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश श्री स्वतंत्र कुमार पर बलात्कार का आरोप लगा और तत्पश्चात देश के सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन नवनिर्वाचित मुख्य न्यायाधीश श्री. एच. एल. दत्तु पर एक महिला ने यौन शोषण का आरोप लगाया था।

इसी प्रकार गहरा षड्यंत्र करके विश्व कल्याण में रत पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू पर झूठे, मनगढ़ंत आरोप लगाकर पिछले 31 महीनों से उन्हें जेल में रखा हुआ है। आरोप लगाने वाली लड़की की मैडिकल जाँच रिपोर्ट व जाँच करने वाली गायनेकॉलोजिस्ट डॉ. शैलजा वर्मा के बयान के अनुसार लड़की के शरीर पर खरोंच तक नहीं आयी है। फिर भी निर्दोष, निष्कलंक बापू जी अभी तक जेल में हैं।

दहेज उत्पीड़न के कानून के बाद अब बलात्कार निरोधक कानूनों में बदलाव करना होगा, नहीं तो असामाजिक स्वार्थी तत्त्व इसकी आड़ में सामाजिक व्यवस्था को तहस-नहस कर देश को विखंडित कर देंगे।

महिला सुरक्षा कानून बन रहे हैं महिलाओं के लिए ही घातक

झूठे रेप केसों के बढ़ते आँकड़ों को देखकर सभ्य परिवारों के पुरुषों एवं महिलाओं को डर लग रहा है। इसी कारण कई सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थान अब महिलाओं को नौकरी नहीं दे रहे हैं तथा नौकरी के पेशेवाली महिलाओं के साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार किया जा रहा है, जो महिलाओं के हित में नहीं है। कोई भी निर्दोष पुरुष झूठे मामले में फँसाया जाता है तो उसके परिवार की सभी महिलाओं (माँ, बहनें, भाभी, मौसी आदि आदि) को अनेक प्रकार की यातनाएँ सहनी पड़ती हैं।

निर्दोष पूज्य बापू जी को जेल में रखने से करोड़ों-करोड़ों माताएँ-बहनें दुःखी हैं और आँसू बहा रही हैं। अंधे कानून का ऐसा क्रूर उपयोग होने से हिन्दुओं की आस्था न्यायपालिका से डगमगा रही है।

प्रसिद्ध न्यायविद् का मत

“चाहे हजार दोषी छूट जायें पर एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए।”

न्यायमूर्ति सुनील अम्बवानी

मुख्य न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय

क्या केवल कड़क कानून ही नारी सुरक्षा के लिए पर्याप्त हैं ?

नारी की सुरक्षा केवल कड़क कानून बनाने से ही नहीं हो सकती। यदि वास्तव में नारी की सुरक्षा चाहते हैं तो

अश्लील वैबसाइटों, फिल्मों, पुस्तकों आदि पर पाबंदी लगायी जानी चाहिए।

भारतीय संस्कृति के अनुरूप संयम की शिक्षा दी जानी चाहिए।

सजग नागरिकों को क्या करना चाहिए ?

आज आवश्यकता है कि जिन कानूनों से निर्दोषों को फँसाकर देश को तोड़ने का कार्य किया जा रहा है, उनमें बदलाव हेतु आवाज उठायें तथा मुख्य पदों पर आसीनों को ज्ञापन दें। इन अंधे कानूनों के अंधे उपयोग के खिलाफ अपनी आवाज उठायें।

अन्य कई झूठे केसों तथा न्यायविदों का मत जानने के लिए देखें-

https://www.mum.ashram.org/Join/PressCoverage.aspx

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2016, पृष्ठ संख्या 9,10 अंक 279

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