आप गाय का दूध पी रहे हैं या कई विदेशी पशुओं का ?
आज बहुत से लोग जो जर्सी होल्सटीन आदि नस्लों का दूध पी रहे हैं, सोचते होंगे कि ‘हम गाय का पौष्टिक दूध पी के तंदुरुस्त हो रहे हैं’ लेकिन क्या यह सच है ? कई अनुसंधानों से पता चला है कि जर्सी, होल्सटीन आदि पशुओं का दूध पीने से अनेक गम्भीर बीमारियाँ होती हैं। मैड काऊ, ब्रुसेलोसिस, कई प्रकार के चर्मरोग, मस्तिष्क ज्वर आदि रोग जर्सी, होल्सटीन को पालने वालों, उनके परिवार व आसपास के लोगों में हो रहे हैं। एक शोध के अनुसार पशुओं से मनुष्यों में होने वाले रोगों से विश्वभर में प्रतिवर्ष 22 लाख लोग मरते हैं। कृषि वैज्ञानिक पद्मश्री सुभाष पालेकर जी का कहना हैः “जर्सी आदि नस्लें गायें नहीं हैं।” श्री वेणीशंकर वासु ने जर्सी आदि विदेशी नस्लों के गाय न होने के कई अकाट्य प्रमाण दिये हैं।
देशी गाय का दूध शक्तिवर्धक और रोगप्रतिरोधक होने से अनेकानेक शारीरिक-मानसिक रोगों से रक्षा करता है। इनकी सेवा करने से कई असाध्य रोग भी मिट जाते हैं।
क्यों उत्तम है देशी गाय जर्सी आदि विदेशी पशुओं से ?
देशी गाय | जर्सी आदि विदेशी पशु |
1.इनके दूध में पाये जाने वाले विशिष्ट पोषक तत्त्व हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। देशी गाय का दूध पेप्टिक अल्सर, मोटापा, जोड़ों का दर्द, दमा, स्तन व त्वचा का कैंसर आदि अनेक रोगों से रक्षा करता है। | इनका दूध मानव शरीर में बीटा केसोमार्फिन-7 नामक विषाक्त तत्त्व छोड़ता है। इससे मधुमेह, धमनियों में खून जमना, हृदयाघात, ऑटिज्म, स्किजोफ्रेनिया (एक मानसिक रोग) जैसी घातक बीमारियाँ होती हैं। |
2.रोगप्रतिरोधक क्षमता अधिक होने से इनको बीमारियाँ कम होती हैं। | रोगप्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण इनमें थनैला, मुँहपका, पशु-प्लेग आदि अनेक रोगों का भयंकर प्रकोप होता है। |
3.इनका दूध सुपाच्य, पौष्टिक व सात्विक है। | इनका दूध ऐसा गुणकारी नहीं है। |
4.इनमें स्थित सूर्यकेतु नाड़ी स्वर्ण-क्षार बनाती है, जिसका बड़ा अंश दूध में और अल्पांश गोमूत्र में आता है। देशी गोदुग्ध पीला होता है। | इनमें सूर्यकेतु नाड़ी नहीं होती इसलिए इनका दूध सफेद और सामान्य होता है। |
5.इनके पंचगव्य का विभिन्न धार्मिक कार्यों में व औषधीय रूप में प्रयोग होता है। | विदेशी नस्लों के दूध, मल, मूत्र आदि में ये विशेषताएँ दूर-दूर तक नहीं हैं। |
6.इनके रखरखाव पर कम खर्च आता है। | इनके रखरखाव पर बहुत खर्च होता है। |
7.इनके जीने की दर है 80-90 प्रतिशत। | इनके जीने की दर है मात्र 40-50 प्रतिशत। |
8.विपरीत मौसम में भी इनके दूध-उत्पादन में 5-10 प्रतिशत की ही कमी होती है। | इनका दूध-उत्पादन 70-80 प्रतिशत कम हो जाता है। |
9.यह 15-17 बार गर्भवती हो सकती है। | यह 5-7 बार ही गर्भवती हो सकती है। |
10.इनके बैल खेती हेतु उपयोगी होते हैं। | इनके बैल खेती हेतु उपयोगी नहीं होते। |
पर्यावरण के लिए भी नुक्सानदायक है संकर नस्ल
संकर नस्ल को देशी गाय की तुलना में चार गुना पानी की ज्यादा जरूरत होती है। इससे भूजल का अत्यधिक दोहन हो रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर हम अभी नहीं जागे तो आने वाली पीढ़ी को जहाँ दूध की कमी से जूझना होगा, वहाँ पर्यावरण भी और खराब मिलेगा।
राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, करना के डॉ. डी. के. सदाना का कहना है कि “भारत की मान्य नस्लों (गीर, थारपारकर, कांकरेज, ओंगोल, कांगायम एवं देवनी) की क्रॉसब्रीडिंग पर पूर्णतया रोक लगा देनी चाहिए। इन मान्य नस्लों पर क्रॉसब्रीडिंग करके उनके मूल गुणों को नष्ट करना देश के लिए अत्यंत हानिप्रद होगा।” विदेशी संकरित जर्सी, होल्सटीन पशुओं को गाय कहना धरती की वरदानस्वरूपा गौ का घोर अपमान है। वे महज संकरित जर्सी, होल्सटीन पशु हैं। उन्हें गाय के रूप में प्रचारित कर भारतवासियों को गुमराह किया गया है। इनके दूध, मूत्र, गोबर और इनको छू के आने वाली हवाओं से भी होने वाली घातक बीमारियों को देखकर इन्हें जहरीले तत्त्व और रोग-बीमारियों का उपहार ले के आयी हुई कलियुगी पूतनाएँ ही कहना ठीक रहेगा। द्वापर की पूतना तो केवल स्तन पर जहर का लेप करके आयी थी परंतु ये कलियुगी पूतनाएँ तो अपने दूध में ही धीमा जहर (स्लो पॉईजन) घोल के आयी हैं।
अतः इनसे बचाव हेतु देशी गायों का रक्षण-संवर्धन जरूरी है। देशी गायों से होने वाले लाभ व विदेशी नस्लों की घातक हानियों के बारे में सरकार, गोपालकों व जनता को अवगत कराकर जागृति लाने का प्रयास करें।
देशी गाय का दूध पीना सर्वश्रेष्ठ व अमृतपान के तुल्य है। यदि यह न मिले तो भैंस (प्राकृतिक पशु) के दूध से काम चला लें किंतु जर्सी आदि विदेशी पशुओं का दूध भूलकर भी न पियें क्योंकि यह भैंस के दूध से अनेक गुना हानिकारक है।
लेखकः डॉ. उमेश पटेल, पशु-चिकित्सक
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2016, पृष्ठ संख्या 9, अंक 280
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