भारत के हिन्दू संत-महापुरुषों को बदनाम करने की साजिश चल पड़ी है। संत कबीर जी, गुरु नानक जी, महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, स्वामी विवेकानंद आदि संतों का कुप्रचार हुआ तो अब हमारा हो रहा है। मेरे को कोई फरियाद नहीं लेकिन ऐसा करने वालो ! आपको क्या मिलेगा ? जरा भविष्य सोचो। कोई चोर नहीं और आप उसको चोर कहते हैं तो आपको बड़ा भारी पाप लगता है। भइया ! तू भगवान को प्रार्थना कर तेरी बुद्धि में भगवान द्वेष नहीं, सच्चा ज्ञान दे दें। फिर तू सत्य की कमाई का उपयोग करेगा और तेरे बच्चों का भविष्य जहरी नहीं उज्ज्वल बनायेगा।
कुप्रचार के शिकार न हों
महात्मा बुद्ध को बदनाम करने वालों ने तो अपनी तरफ से पूरी साजिश की लेकिन वे कौन से नरकों में होंगे मुझे पता नहीं है, बुद्ध तो आपके, हमारे और करोड़ों दिलों में अभी भी हैं। ऐसे ही गाँधी जी के लिए अंग्रेजों के पिट्ठू कितना-कितना बोलते और कितना-कितना लिखते थे लेकिन गांधी बापू डटे रहे तो बेटे जी हार गये व भाग गये और बापू जी अब भी जिंदाबाद हैं।
जब साबरमती के बापू के लिए लोगों ने ऐसा-ऐसा बोला और वे अडिग रहे तो हम भी साबरमती के बापू जी हैं। हमारी तो किसी के प्रति नफरत नहीं है, द्वेष नहीं है और विदेशी ताकतों को भी हम कभी बुरे शब्द नहीं कहते हैं। अगर ये किसी दूसरे धर्म के गुरुओं के पीछे ऐसा पड़ते तो आज देश की क्या हालत हो जाती ! हम सहिष्णु व उदार होते-होते अपनी संस्कृति पर कुठाराघात करने दे रहे हैं। अब हम सावधान रहेंगे, सहिष्णु तो रहेंगे लेकिन सूझबूझ से और आपस में संगठित रहेंगे। हमारे भारत में अशांति फैला दें ऐसे तत्वों के चक्कर में हम नहीं आयेंगे, कुप्रचार के शिकार नहीं बनेंगे।
अपने अनुभव का आदर करें
किसी पर लांछन लगाना तो आसान है लेकिन संत-महापुरुषों का प्रसाद लेकर पना बेड़ा पार करना तो पुण्यात्माओं का काम है। इतने-इतने लांछन लगते हैं फिर भी मुझे दुःख होता नहीं और सुख मिटता नहीं। संतों के संग से दूर करने वाला वातावरण भी खूब बन रहा है। न जाने कितने-कितने रूपये देकर चैनलों के द्वारा फिल्में, कहानियाँ, आरोप ऐसी-ऐसी कल्पना करके बनाया जाता है कि लगता है कि संत ही बेकार हैं, करोड़ों रुपये लेकर जो दिखाते हैं, कुप्रचार करते हैं वे तो सती-सावित्री के हैं, उनके पास तो दूध का धोया हुआ सब कुछ है और गड़बड़ी है तो सत्संगियों में और संतों में है, ऐसा कुप्रचार भी खूब होता है। लेकिन भाई ! जिनकी बीमारियाँ मिट जाती हैं, जिनके रोग-शोक मिट जाते हैं, वे कुप्रचार के शिकार नहीं होते।
सलूका-मलूका संत कबीर जी के शिष्य थे। उन्हें कबीर जी ने कहाः “भई ! वह वेश्या बोलती है कि मैं उसके बिस्तर पर था, दारूवाला बोलता है कि मैंने दारू पिया… ये सब बोलते हैं, सब लोग जा रहे हैं, तुम क्यों नहीं जाते ?”
सलूका-मलूका कहते हैं- “महाराज ! हमारे मन, बुद्धि और तन की सारी बीमारियाँ यहाँ मिटी हैं। हम आपके सत्संग का त्याग करके नहीं जाना चाहते। लोग चाहे आपके लिए कुछ भी बोलें, लल्लू-पंजू भक्त कुप्रचार सुनकर कुप्रचार के शिकार हो जायें तो हो जायें लेकिन महाराज ! हमें आप रवाना मत करिये।”
कबीर जी ने कहाः “इतनी समझ है तुम्हारी तो बैठो।” सत्संग सुनाते-सुनाते कबीर जी ने ऐसी कृपादृष्टि की कि सलूका-मलूका को भावसमाधि में प्रेमाश्रु आने लगे। भगेड़ू भागते रहे और कौन से गर्भों में कहाँ-कहाँ भगे भगवान जानें !
मैं सत्य का पक्षधर हूँ, कानून और व्यवस्था का पक्षधर हूँ। समाज की सुन्दर व्यवस्था रहे इससे मैं प्रसन्न होने वाला व्यक्ति हूँ फिर भी क्या-क्या कुप्रचार किये जा रहे हैं, कुछ-की-कुछ सामग्री जुटाये जा रहे हैं !
वे समाज के साथ बहुत जुल्म करते हैं…..
जिनके विचार प्रखर भगवद्-ज्ञान के भगवत्-प्रसाद के हैं, ऐसे लोग भी सावधान नहीं रहते और जिस किसी के हाथ का खाते हैं, जिस किसी से हाथ मिलाते हैं तो ऐसे भक्तों की भक्ति भी दब जाती है। इसलिए संग अच्छा करना चाहिए, नहीं तो निःसंग रहना चाहिए। निंदकों की बात सुनकर, कभी हलके वातावरण में रहकर कइयों की श्रद्धा हिल जाती है, शांति और भक्ति क्षीण हो जाती है। जब सत्संगियों के वातावरण में आते हैं तो लगता है कि ‘अरे, मैंने बहुत कुछ खो दिया !’ इसलिए कबीर जी सावधान करते हैं-
कबीरा निंदक न मिलो, पापी मिलो हजार।
एक निंदक के माथे पर, लाख पापिन को भार।।
निंदक ऐसे दावे से बोलते हैं कि लगेगा, ‘अरे यही सत्य जानता है, हम इतने दिन तक ठगे जा रहे थे।’ हजारों-हजारों जन्मों के कर्म-बंधन काटकर ईश्वर से मिलाने वाली श्रद्धा की डोर जो काटते हैं, वे समाज के साथ बहुत-बहुत जुल्म करते हैं। उनको हत्यारा कहो तो हत्यारे नाराज होंगे। हत्यारा तो एक-दो को मारता है इसी जन्म में लेकिन श्रद्धा तोड़ने वाला तो कई जन्मों की कमाई नाश कर देता है।
कैसे रखें हौसला बुलंद ?
विदेशी ताकतें तो वैसे ही साधु-संतों और हमारी संस्कृति को तोड़कर देश को तोड़ने के स्वप्न देख रही है और आप उस आग में घी डालने की गलती क्यों करते हो भाई साहब ? न लड़ो न लड़ाओ। हौसला बुलंद रखो ! हौसला बुलंद उसको कहा जाता है कि न दुःखी रहो न दूसरे को दुःखी करो, न टूटो न दूसरों को तोड़ो, न खुद डरो न दूसरों को भयभीत करो, न खुद बेवकूफ बनो न दूसरों को बेवकूफ बनाओ। यह वैदिक वाणी के आधार से मैं आपको बता रहा हूँ। मैं तो साँपों के बीच रहा हूँ, रीछों के साथ मुलाकात हुई और उनके प्रति भी मेरा सद्भाव रहा तो मनुष्य के प्रति, किसी पार्टी के प्रति मैं क्यों कुभाव करूँगा ? कुभाव करने से मेरा हृदय खराब होगा। मैं तो सद्भाव की जगह पर बैठा हूँ, सत्संग की जगह पर बैठा हूँ इसलिए मेरा सत्य बात कहने का कर्तव्य है, अधिकार है कि सबको मंगल की बात कह दूँ। हम नहीं चाहते कि कोई उसको उलटा समझकर परेशान हो। हमारी इस सूझबूझ का आप आदर करेंगे तो आपके जीवन में बहुत कुछ ऊँचाइयाँ आ सकती हैं।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2015, पृष्ठ संख्या 14,15 अंक 270
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ