कार्तिक मास में दीपदान का विशेष महत्व है । श्री पुष्कर पुराण में आता है :-
तुलायाँ तिलतैलेन सायंकाले समायते ।
आकाशदीपं यो दद्यान्मासमेकं हरिं प्रति ॥
महती श्रियमाप्नोति रूपसौभाग्यसम्पदम ॥
जो मनुष्य कार्तिक मास में सन्ध्या के समय भगवान श्री हरी के नाम से तिल के तेल का दीप जलाता है, वह अतुल लक्ष्मी, रूप सौभाग्य, और सम्पत्ति को प्राप्त करता है । नारद जी के अनुसार दीपावली के उत्सव को द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या और प्रतिपदा – इन पांच दिनों तक मानना चाहिये । इनमें भी प्रत्येक दिन अलग अलग प्रकार की पुजा का विधान है ।
गोवत्स द्वादशी – कार्तिक मास की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी कहते हैं । इस दिन दूध देने वाली गाय को उसके बछड़े सहित स्नान कराकर वस्त्र ओढाना चाहिये, गले में पुष्पमाला पहनाना , सिंग मढ़ना, चन्दन का तिलक करना तथा ताम्बे के पात्र में सुगन्ध, अक्षत, पुष्प, तिल, और जल का मिश्रण बनाकर निम्न मंत्र से गौ के चरणों का प्रक्षालन करना चाहिये ।
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते ।
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नमः ॥
(समुद्र मंथन के समय क्षीरसागर से उत्पन्न देवताओं तथा दानवों द्वारा नमस्कृत, सर्वदेवस्वरूपिणी माता तुम्हे बार बार नमस्कार है।)
पूजा के बाद गौ को उड़द के बड़े खिलाकर यह प्रार्थना करनी चाहिए–
“सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता ।
सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस ॥
ततः सर्वमये देवि सर्वदेवलङ्कृते।
मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरू नन्दिनी ॥“
(हे जगदम्बे ! हे स्वर्गवसिनी देवी ! हे सर्वदेवमयि ! मेरे द्वारा अर्पित इस ग्रास का भक्षण करो । हे समस्त देवताओं द्वारा अलंकृत माता ! नन्दिनी ! मेरा मनोरथ पुर्ण करो।) इसके बाद रात्रि में इष्ट , ब्राम्हण , गौ तथा अपने घर के वृद्धजनों की आरती उतारनी चाहिए।
धनतेरस – दुसरे दिन कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन को धनतेरस कहते हैं । भगवान धनवंतरी ने दुखी जनों के रोग निवारणार्थ इसी दिन आयुर्वेद का प्राकट्य किया था । इस दिन सन्ध्या के समय घर के बाहर हाथ में जलता हुआ दीप लेकर भगवान यमराज की प्रसन्नता हेतु उन्हे इस मंत्र के साथ दीप दान करना चाहिये-
मृत्युना पाशदण्डाभ्याम् कालेन श्यामया सह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम ॥
(त्रयोदशी के इस दीपदान के पाश और दण्डधारी मृत्यु तथा काल के अधिष्ठाता देव भगवान देव यम, देवी श्यामला सहित मुझ पर प्रसन्न हो।)
नरक चतुर्दशी – नरक चतुर्दशी के दिन चतुर्मुखी दीप का दान करने से नरक भय से मुक्ति मिलती है । एक चार मुख ( चार लौ ) वाला दीप जलाकर इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिये –
“दत्तो दीपश्वचतुर्देश्यां नरकप्रीतये मया ।
चतुर्वर्तिसमायुक्तः सर्वपापापनुत्तये ॥“
(आज नरक चतुर्दशी के दिन नरक के अभिमानी देवता की प्रसन्नता के लिये तथा समस्त पापों के विनाश के लिये मै चार बत्तियों वाला चौमुखा दीप अर्पित करता हूँ।)
यद्यपि कार्तिक मास में तेल नहीं लगाना चाहिए, फिर भी नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल-मालिश (तैलाभ्यंग) करके स्नान करने का विधान है। ‘सन्नतकुमार संहिता‘ एवं धर्मसिन्धु ग्रन्थ के अनुसार इससे नारकीय यातनाओं से रक्षा होती है। जो इस दिन सूर्योदय के बाद स्नान करता है उसके शुभकर्मों का नाश हो जाता है। –
दीपावली – अगले दिन कार्तिक अमावस्या को दीपावली मनाया जाता है । इस दिन प्रातः उठकर स्नानादि करके जप तप करने से अन्य दिनों की अपेक्षा विशेष लाभ होता है । इस दिन पहले से ही स्वच्छ किये गृह को सजाना चाहिये । भगवान नारायण सहित भगवान लक्ष्मी जी की मुर्ती अथवा चित्र की स्थापना करनी चाहिये तत्पश्चात धूप दीप व स्वस्तिवाचन आदि वैदिक मंत्रो के साथ या आरती के साथ पुजा अर्चना करनी चाहिये । इस रात्रि को लक्ष्मी भक्तों के घर पधारती है ।
अन्नकूट दिवस / गोवर्धन-पूजा – पांचवे दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अन्नकूट दिवस कह्ते है । धर्मसिन्धु आदि शास्त्रों के अनुसार गोवर्धन-पूजा के दिनगायों को सजाकर, उनकी पूजा करके उन्हें भोज्य पदार्थ आदि अर्पित करने का विधान है। इस दिन गौओ को सजाकर उनकी पूजा करके यह मंत्र करना चाहिये,
गौ-पूजन का मंत्र –
लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता ।
घृतं वहति यज्ञार्थ मम पापं त्यपोहतु ॥
(धेनु रूप में स्थित जो लोकपालों की साक्षात लक्ष्मी है तथा जो यज्ञ के लिए घी देती है , वह गौ माता मेरे पापों का नाश करे । रात्री को गरीबों को यथा सम्भव अन्न दान करना चाहिये । इस प्रकार पांच दिनों का यह दीपोत्सव सम्पन्न होता है ।)