हर परिस्थिति में अचूक मंत्र

हर परिस्थिति में अचूक मंत्र


एक बड़ा प्रतापी राजा था। उसके दरबार में एक से बढ़कर एक बुद्धिमान भरे पड़े थे। एक दिन उसने सबको बुलाया और कहाः “ऐसा कोई मंत्र खोजकर लाओ जो हर परिस्थिति में अचूक हो और बड़े-से-बड़े खतरे का मुकाबला कर सके।”

सारे बुद्धिमान दरबारी मंत्र की खोज में निकल पड़े। उन्होंने चहुँ ओर खूब खोज की लेकिन ऐसा कोई मंत्र उनके हाथ न लगा। थक-हारकर वे एक आत्मवेत्ता संत की शरण में जा पहुँचे।

संत ने उन्हें एक तह किया हुआ छोटा सा कागज देकर कहाः “इसे सिर्फ सबसे बड़े और आखिरी खतरे के वक्त खोला जाय। इसे पढ़कर तुम जान लोगे कि क्या करना चाहिए।”

दरबारियों ने तहशुदा कागज राजा को ला सौंपा। राजा उसे अपनी हीरे की अँगूठी में छिपाकर रख लिया। जब भी कोई खतरा सामने आता, राजा का ध्यान अँगूठी पर जाता और उसे संत का वचन याद आता कि ‘इसे सिर्फ सबसे बड़े और आखिरी खतरे के वक्त खोला जाय।’ कई खतरे आये और गये। हर बार राजा ने ठहरकर सोचा, ‘नहीं, यह आखिरी खतरा नहीं है। अभी और कोई उपाय किया जा सकता है।’

समय बीतता गया, राजा की मृत्यु की घड़ी आ पहुँची। मरणासन्न राजा शय्या पर पड़ा था। उसका ध्यान अँगूठी पर गया। तभी ख्याल आया, ‘नहीं, अभी कुछ और उपाय हो सकता है !’

दरबारियों ने विनती कीः “महाराज ! कृपा करके कागज को खोलिये। हम जानना चाहते हैं कि अब क्या उपाय क्या जाय ?”

राजा ने कहाः “हमें वचन निभाना चाहिए। जहाँ तक मंत्र का सवाल है, वह सचमुच अचूक है। इसके रहते मुझे कभी किसी खतरे का एहसास ही नहीं हुआ। हर बार कोई न कोई उपाय सूझ गया क्योंकि मैं इस मंत्र के बल पर घटनाओं को केवल साक्षी बनकर देख सका। मैंने स्वयं को घटनाओं के तेज बहाव में बह जाने नहीं दिया।”

और राजा चल बसा। जैसे ही राजा ने आखिरी साँस ली, दरबारियों ने सबसे पहले हीरे की अँगूठी से कागज निकाल के खोला। वह कोरा था, उसमें कोई मंत्र नहीं लिखा था ! दरबारी देख नहीं पाये फिर भी मंत्र अपना काम कर चुका था।

यह भी देख, वह भी देख।

देखत देखत ऐसा देख,

मिट जाय धोखा रह जाय एक।।

साक्षीभाव, असंगता वास्तव में एक ऐसा मंत्र है जो हर परिस्थिति में अचूक है। यह जिसके जीवन में आ जाता है वह दुनिया की सारी परिस्थितियों के सिर पर पैर रखकर सदगुरु कृपा से अपने परमात्म-स्वरूप, ब्रह्मस्वरूप को पा लेता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2016, पृष्ठ संख्या 7, अंक 287

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