पारिजात या हारसिंगार को देवलोक का वृक्ष कहा जाता है। कहते हैं कि समुद्र मंथन के समय विभिन्न रत्नों के साथ-साथ यह वृक्ष भी प्रकट हुआ था। इसकी छाया में विश्राम करने वाले का बुद्धिबल बढ़ता है। यह वृक्ष नकारात्मक ऊर्जा को भी हटाता है। इसके फूल अत्यंत सुकुमार व सुगंधित होते हैं जो दिमाग को शीतलता व शक्ति प्रदान करते हैं। हो सके तो अपने घर के आसपास इस उपयोगी वृक्ष को लगाना चाहिए। पारिजात ज्वर व कृमि नाशक, खाँसी-कफ को दूर करने वाला, यकृत की कार्यशीलता को बढ़ाने वाला, पेट साफ करने वाला तथा संधिवात, गठिया व चर्मरोगों में लाभदायक है।
औषधीय प्रयोग
पुराना बुखारः इसके 7-8 कोमल पत्तों के रस में 5-10 मि.ली. अदरक का रस व शहद मिलाकर सुबह शाम लेने से पुराने बुखार में फायदा होता है।
बच्चों के पेट में कृमिः इसके 7-8 पत्तों के रस में थोड़ा सा गुड़ मिला के पिलाने से कृमि मल के साथ बाहर आ जाते हैं या मर जाते हैं।
जलन व सूखी खाँसीः इसके पत्तों के रस में मिश्री मिला के पिलाने से पित्त के कारण होने वाली जलन आदि विकार तथा शहद मिला के पिलाने से सूखी खाँसी मिटती है।
बुखार का अनुभूत प्रयोगः 30-35 पत्तों के रस में शहद मिलाकर 3 दिन तक लेने से बुखार में लाभ होता है।
सायटिका व स्लिप्ड डिस्कः पारिजात के 60-70 ग्राम पत्ते साफ करके 300 मि.ली पानी में उबालें। 200 मि.ली. पानी शेष रहने पर छान के रख लें। 25-50 मि.ग्राम केसर घोंटकर इस पानी में घोल दें। 100 मि.ली. सुबह शाम पियें। 15 दिन तक पीने से सायटिका जड़ से चला जाता है। स्लिप्ड डिस्क में यह प्रयोग रामबाण उपाय है। वसंत ऋतु में पत्ते गुणहीन होते हैं अतः यह प्रयोग वसंत ऋतु में लाभ नहीं करता।
संधिवात, जोड़ों का दर्द, गठियाः पारिजात की 5 से 11 पत्तियाँ पीस के एक गिलास पानी में उबालें, आधा पानी शेष रहने पर सुबह खाली पेट 3 महीने तक लगातार लें। पुराने संधिवात, जोड़ों के दर्द, गठिया में यह प्रयोग अमृत की तरह लाभकारी है। अगर पूरी तरह ठीक नहीं हुआ तो 10-15 दिन छोड़कर पुनः 3 महीने तक करें। इस प्रयोग से अन्य कारणों से शरीर में होने वाली पीड़ा में भी राहत मिलती है। पथ्यकर आहार लें।
चिकनगुनिया का बुखार होने पर बुखार ठीक होने के बाद भी दर्द नहीं जाता। ऐसे में 10-15 दिन तक पारिजात के पत्तों का यह काढ़ा बहुत उपयोगी है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2016, पृष्ठ संख्या 31 अंक 288
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