मोक्ष का कारणः शुद्ध मन
गुप्त रूप से रहो। दिखावा बिल्कुल न करो। प्रत्येक बात पर संयम रखो। शुद्ध मन में आत्मा का प्रकाश होता है, न कि अशुद्ध मन में। अशुद्ध मन बंधन का कारण है और शुद्ध मन मोक्ष का।
आत्मा को समझने के लिए स्वयं को शरीर न समझो। शरीरभाव समाप्त करो, आत्मभाव रखो। शरीर न सुंदररूप है और न आनंदरूप। प्रत्येक व्यक्ति आनंद के लिए दौड़ रहा है जबकि स्वयं आनंदस्वरूप है।
मन का संयम
मन पर पूर्ण संयम होना चाहिए। बुरे संकल्पों से अलग रहना चाहिए, नहीं तो बड़ी खराबी होगी। किसी बुरे विचार को बार-बार न विचारना चाहिए, उसकी याद ही मिटा देनी चाहिए। मन की दौड़ बाहर की ओर न हो तो समझो कि तुम्हारे अभ्यास का मन पर प्रभाव पड़ा है। जैसे समुद्र में जहाज पर कोई पक्षी बैठा हो तो वह उड़कर कहाँ जायेगा ? उड़ते-उड़ते इधर-उधर घूम फिर के थककर आ के जहाज पर शांत बैठेगा। वैसे ही मन भी भले ही दौड़े, स्वयं ही थककर आ के एक आत्मा में स्थिर होगा।
मन से, कर्म से, वचन से छल छोड़ देना अन्यथा करोड़ों उपचार करने से भी सच्चा सुख, स्थायी सुख नहीं मिलता।
करम वचन मन छाड़ि छलु जब लगि जनु न तुम्हार।
तब लगि सुखु सपनेहुँ नहीं किएँ कोटि उपचार।। (रामायण)
वास्तव में हर व्यक्ति का मूल स्वरूप सच्चिदानंद ब्रह्म-परमात्मा है। जैसे तरंग, बुलबुले का मूल स्वरूप पानी है, वैसे ही तुम्हारा मूल स्वरूप सच्चिदानंद परमात्मा है। अपने परमात्म-स्वभाव की स्मृति जगाओ। तुम साक्षी हो, चैतन्य हो, नित्य हो। आकर्षण-विकर्षण, विकारों में मन को भटकने मत दो। ॐ ॐ आनंद…. ॐ शांति…. ॐ माधुर्य… ॐ सोऽहम्…..’अरे मन ! मैं वही चैतन्य हूँ जिससे तू स्फुरित होकर भटकता है। संसारी आकर्षण और फरियाद छोड़कर मुझ चिद्घन चैतन्य से एकाकार हो जा। जड़-चेतन, जीव और जगत सभी राममय है और राम-ब्रह्म परमार्थरूप में सर्वरूप है, उसको समझ और सर्वरूप हो जा।’ वास्तव में हर तरंग और बुलबुला पानी है, ऐसे ही हर जीव ब्रह्मस्वरूप साक्षी है, चैतन्य है। उस चैतन्य ब्रह्मस्वभाव को पाना कठिन नहीं है लेकिन जिनको कठिन नहीं लगता ऐसे सत्पुरुषों का मिलना कठिन है। जो ईश्वर को अपने से दूर नहीं मानते, दुर्लभ, परे या पराया नहीं मानते अपितु अपना आत्मा जानते हैं, उनका सत्संग-सान्निध्य पाओ और उनके अनुभवों का आदर करो।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2017, पृष्ठ संख्या 13 अंक 289
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