होली कैसे मनाये

होली कैसे मनाये


 

होली भारतीय संस्कृति की पहचान का एक पुनीत पर्व हैभेदभाव मिटाकरपारस्परिक प्रेम व सदभाव प्रकट करने का एक अवसर है |अपने दुर्गुणों तथा कुसंस्कारोंकी आहुति देने का एक यज्ञ है तथा परस्पर छुपे हुए प्रभुत्व कोआनंद कोसहजता कोनिरहंकारिता और सरल सहजता के सुख को उभारने का उत्सव है |

 

यह रंगोत्सव हमारेपूर्वजों की दूरदर्शिता है जो अनेक विषमताओं के बीच भी समाज में एकत्व कासंचार करता है | होली के रंग-बिरंगे रंगों की बौछार जहाँ मन में एक सुखदअनुभूति प्रक कराती है वहीं यदि सावधानी, संयम तथा विवेक न रख जाये तो ये ही रंग दुखद भी जाते हैं | अतः इस पर्व पर कु सावधानियाँ रखना भी अत्यंत आवश्यक है |

प्राचीन समय में लोगपलाश के फूलों से बने रंग अथवा अबीर-गुलालकुमकुम– हल्दी से होली खेलते थे |किन्तु वर्त्तमान समय में रासायनिक तत्त्वों से बने रंगोंका उपयोगकिया जाता है | ये रंग त्वचा पे चक्तो के रूप में जम जाते हैं | अतः ऐसे रंगों से बचना चाहिये | यदि किसि नेआप पर ऐसारंग लगा दिया हो तो तुरन्त ही बेसनटादू,ल्दी व तेल के मिश्र सेबना उब्टन रंगो हुए अंगों पर लगाकर रंग को धो डालना चाहिये |यदि उब्टन करने से पूर्व उस स्थान को निंबु से रगड़कर सा कर लियाजाए तो रंग छुटने में और अधिकसुगमता आ जाती है |

रंग खेलने से पहले अपने शरीर को नारियल अथवा सरसों के तेल से अच्छी प्रकार लेना चाहिए | ताकि तेलयुक्त त्वचा पर रंग का दुष्प्रभाव न पड़े और साबुन लगाने मात्र से ही शरीर पर से रंग छुट जाये | रंग आंखों में या मुँह में न जाये इसकी विशेष सावधानी रखनी चाहिए | इससे आँखों तथा फेफड़ों को नुक्सान हो सकता है |

जो लोग कीचड़ व पशुओं के मलमूत्र से होली खेलते हैं वे स्वयं तो अपवित्र बनते ही हैं दूसरों को भी अपवित्र करने का पाप करते हैं | अतः ऐसे दुष्ट कार्य करने वालों से दूर हीरहें अच्छा |

र्त्तमान समय में होली के दिन शराब अथवा भंग पीने कीकुप्रथा है | नशे से चूर व्यक्ति विवेकहीन होकर घटिया से घटिया कुकृत्य कर बैठते हैं | अतः नशीले पदार्थ से तथा नशा करने वाले व्यक्तियो से सावधान रहना चाहिये |जकल सर्वत्र उन्न्मुक्तताकादौर चल पड़ा है | पाश्चात्य जगत के अंधानुकरण में भारतीयसमाज अपने भले बुरे का विवेक भी खोता चला जा रहा है | जो साधक है, संस्कृति काआदर करने वाले हैश्वर व गुरु में श्रद्धा रखते है ऐसे लोगो में शिष्टता व सयमविशेषरूप से होना चाहिये | पुरु सिर्फ पुरुषोंसे थास्त्रियाँ सिर्फ स्त्रियों के संग ही होली मनायें | स्त्रियाँ यदि अपने घर में ही होली मनायें तो अच्छा है ताकि दुष्ट प्रवृत्तिके लोगो कि कुदृष्टि से बच सकें|

होली मात्र लकड़ी के ढ़ेर जलाने त्योहारनहीँ है |यह तो चित्त की दुर्बलता को दूर करनेकामन की मलिन वासना को जलाने कापवित्र दिन है | अपने दुर्गुणोंव्यस्नो व बुराईं को जलानेका पर्व है होली …….

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