तुलसी

तुलसी


तुलसी को विष्णुप्रिया कहा जाता है। हिन्दुओं के प्रत्येक शुभ कार्य में, भगवान के प्रसाद में तुलसीदल का प्रयोग होता है। जहाँ तुलसी के पौधे अत्यधिक मात्रा में होते हैं वहाँ की हवा शुद्ध व पवित्र रहती है। तुलसी के पत्तों में एक विशेष प्रकार का द्रव्य होता है जो कीटाणुयुक्त वायु को शुद्ध करता है। वैज्ञानिक मतानुसार तुलसी में विद्युत-शक्ति अधिक होती है जो कि ग्रहण के समय सूर्य से निकलने वाली हानिकारक किरणों का प्रभाव खाद्य पदार्थों पर नहीं होने देती। अतः सूर्य-चन्द्र ग्रहण के समय खाद्य पदार्थों पर तुलसी की पत्तियाँ रखने की परम्परा है।

तुलसी के पास बैठकर प्राणायाम करने से कीटाणुओं का नाश होकर शरीर में बल, बुद्धि व ओज की वृद्धि होती है। प्रातः खाली पेट तुलसी के 8-10 पत्ते खाकर ऊपर से एक गिलास पानी पीकर टहलने से बल, तेज, स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है व जलंदर भगंदर, कैंसर जैसी बीमारियाँ पास भी नहीं फटकती हैं।

तुलसी में एक विशिष्ट क्षार होता है। तुलसी का स्पर्श व दर्शन भी लाभदायी है। यह शरीर की विद्युत को बनाये रखती है। तुलसी की माला धारण करने वाले को बहुत-से रोगों से मुक्ति मिलती है।

तुलसीदल में एक उत्कृष्ट रसायन है। वह गर्म और त्रिदोषनाशक है। रक्तिविकार, ज्वर, वायु, खांसी, कृमि निवारक है तथा हृदय के लिए हितकारी है। सफेद तुलसी के सेवन से त्वचा व हड्डियों के रोग दूर होते हैं। काली तुलसी के सेवन से सफेद दाग दूर होते हैं। तुलसी की चाय पीने से ज्वर, आलस्य, सुस्ती तथा वात-पित्त विकार दूर होते हैं व भूख खुलकर लगती है। तुलसी की चाय में तुलसीदल, सौंफ, इलायची, पुदीना, सौंठ, कालीमिर्च, ब्राह्मी, दालचीनी आदि का समावेश किया जा सकता है।

तुलसी सौन्दर्यवर्धक व रक्तशोधक है। सुबह शाम तुलसी व नींबू का रस मिलाकर चेहरे पर घिसने से काले दाग दूर होते हैं व सुन्दरता बढ़ती है। ज्वर, खांसी, श्वास के रोग में तुलसी का रस 3 ग्राम, अदरक का रस 3 ग्राम व एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम लेने से फायदा होता है। तुलसी के रस से जठराग्नि प्रदीप्त होती है। तुलसी का रस कृमिनाशक है। तुलसी के रस में नमक डालकर नाक में बूँदे डालने से मूर्छा हटती है, हिचकी रूकती है। यह किडनी की कार्यशक्ति को बढ़ाती है। रक्त में स्थित कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित करती है। इसके सेवन से एसिडिटी, स्नायुओं का दर्द, सर्दी-जुकाम, मेदवृद्धि, मासिक सम्बंधी रोग, बच्चों के रोग, विशेषकर सर्दी, कफ, दस्त, उल्टी आदि में लाभ करती हैं। तुलसी हृदयरोग में आश्चर्यजनक लाभ करती है।

तुलसी की सूखी पत्तियों को अच्छी तरह पीसकर उसका गाढ़ा लेप चेहरे पर लगाने से त्वचा के छिद्र खुल जाते हैं। पसीने के साथ अशुद्धि निकल जाने से त्वचा स्वच्छ, दुर्गन्धरहित, तेजस्वी व मुलायम बनती है। चेहरे की कान्ति बढ़ती है।

अनेक रोगों की एक दवाः तुलसी के 25-30 पत्ते लेकर खरल में अथवा सिलबट्टे पर पीसें, जिस पर कोई मसाला न पीसा गया हो। इस पिसे हुए तुलसी के गूदे में 5-10 ग्राम मीठा दही मिलाकर अथवा 5-7 ग्राम शहद मिलाकर 30-40 दिन सेवन करने से गठिया का दर्द, सर्दी, जुकाम, खांसी (यदि रोग पुराना हो तो भी), गुर्दे (किडनी) की पथरी, सफेद दाग या कोढ़, शरीर का मोटापा, वृद्धावस्था की दुर्बलता, पेचिश, अम्लता, मन्दाग्नि, कब्ज, गैस, दिमागी कमजोरी, स्मरणशक्ति का अभाव, पुराने से पुराना सिरदर्द, बुखार, रक्तचाप (उच्च या निम्न) हृदयरोग, शरीर की झुर्रियाँ, श्वासरोग, कैंसर आदि रोग दूर हो जाते हैं।

कैंसर जैसे कष्टप्रद रोग में इस दवा को दो या तीन बार सेवन कर सकते हैं।

इसके सेवन से विटामिन ʹएʹ तथा ʹसीʹ की कमी दूर हो जाती है। खसरा निवारण के लिए यह रामबाण इलाज है।

किसी भी प्रकार के विषविकार में तुलसी का स्वरस यथेष्ट मात्रा में पीना चाहिए।

20 तुलसी पत्र एवं 10 कालीमिर्च एक साथ पीसकर हर आधे से दो घंटे के अंतर से बार-बार पिलाने से सर्पविष उतर जाता है। तुलसी का स्वरस लगाने से जहरीले कीड़े, ततैया, मच्छर का विष उतर जाता है।

तुलसी के स्वरस का पान करने से प्रसव-वेदना कम होती है।

स्वप्नदोषः 10 ग्राम तुलसी के बीज मिट्टी के पात्र में रात को पानी में भिगो दें व सुबह सेवन करें। इससे लाभ होता है।

तुलसी के बीजों को कूटकर व गुड़ में मिलाकर मटर के बराबर गोलियाँ बना लें। प्रतिदिन सुबह शाम दो-दो गोली खाकर ऊपर से गाय का दूध पीने से नपुंसकत्व दूर होता है, वीर्य में वृद्धि होती है, नसों में शक्ति आती है, पाचन शक्ति में सुधार होता है। हर प्रकार से हताश पुरुष भी सशक्त बन जाता है।

जल जाने परः तुलसी के स्वरस व नारियल के तेल को उबालकर, ठण्डा होने पर जले भाग पर लगायें। इससे जलन शांत होती है तथा फफोले व घाव शीघ्र मिट जाते हैं।

विद्युत का झटकाः विद्युत के तार का स्पर्श हो जाने या वर्षा ऋतु में बिजली गिरने के कारण यदि झटका लगा हो तो रोगी के चेहरे और माथे पर तुलसी का स्वरस मलें। इससे रोगी की मूर्च्छा दूर हो जाती है।

जलशुद्धिः दूषित जल की शुद्धि के लिए जल में तुलसी की हरी पत्तियाँ डालें। इससे जल शुद्ध व पवित्र हो जाएगा।

शक्ति की वृद्धिः शीतऋतु में तुलसी की 5-7 पत्तियों में 3-4 काली मिर्च तथा 3-4 बादाम मिलाकर, पीसकर सेवन करने से हृदय को शक्ति प्राप्त होती है।

छोटे बच्चों के रोगों में सेवन विधिः सूखी खांसी में तुलसी की कोंपलें व अदरक समान मात्रा में लेकर पीसकर शहद के साथ चटाएँ। दाँत निकलने से पहले यदि बच्चों को तुलसी का रस पिलाया जाये तो उनके दाँत सरलता से निकलते हैं। दाँत निकलते समय बच्चे को दस्त लगे तो तुलसी की पत्तियों का चूर्ण अनार के शरबत के साथ पिलाने से लाभ होता है। तुलसी की पत्तियों को नींबू के रस में पीसकर लगाने से दाद-खाज मिट जाती है। तुलसी की पत्तियाँ तथा सूखे आँवलों को पानी में भिगोकर रख दीजिये। प्रातःकाल उसे छानकर उस पानी से सिर धोने से सफेद बाल भी काले हो जाते हैं तथा बालों का झड़ना रूक जाता है।

सावधानीः तुलसी निषेध

उष्ण प्रकृति वाले, रक्तस्राव व दाहवाले व्यक्तियों को ग्रीष्म व शरद ऋतु में तुलसी का सेवन नहीं करना चाहिए। तुलसी के सेवन के डेढ़-दो घंटे तक दूध नहीं लेना चाहिए। अर्श-मस्से के रोगियों को तुलसी व काली मिर्च का उपयोग एक साथ नहीं करना चाहिए क्योंकि इनकी तासीर गर्म होती है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 1997, पृष्ठ संख्या 29,30 अंक 56

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