तनाव, अशांति व भटकान मिटाकर आनंद-रस से सराबोर करतीं – साधना कुंजियाँ

तनाव, अशांति व भटकान मिटाकर आनंद-रस से सराबोर करतीं – साधना कुंजियाँ


विश्रांति योग की साधना वाला प्राणायाम

लाभः यह प्राणायाम तन, मन और मति पर विशेष प्रभाव करेगा। यह विश्रांति-योग की साधना है। चित्त की विश्रांति सामर्थ्य को प्रकट करती है, दुःखों व रोगों को विदाई देती है।

विधिः त्रिबंध के साथ एक से सवा मिनट श्वास भीतर रोकें, फिर धीरे-धीरे छोड़ें। श्वास लेते समय भावना करें कि ‘मैं एकाग्रता, प्रसन्नता और भगवत्शांति भीतर भर रहा हूँ।’ और छोड़ते समय भावना करें कि ‘चंचलता, अहंकार और नकारात्मक विचार क्षीण हो रहे हैं।’ ऐसे 5 प्राणायाम कर लो।

बेचैनी, तनाव व अशांति भगाने वाला प्राणायाम

लाभः इससे चिंता, तनाव नहीं रहते। मन की बेचैनी व अशांति दूर होती है।

विधिः दोनों नथुनों से श्वास लो। ‘ॐ शांति’ जपो और फूँक मारते हुए मन में चिंतन करो कि ‘मेरी चिंता, बेवकूफी, अशांति गयी।’ ऐसा 5-7 बार करो।

भगवदीय अंश जगाने वाला प्राणायाम

भगवदीय अंश विकसित कैसे हो, इस विषय में पूज्य बापू जी कहते हैं- “वासना राक्षसी अंश है, पाशवी अंश है। भगवदीय अंश का मतलब सत्त्वगुण है। भगवदीय अंश ध्रुव ने जगाया था तो भगवान का दर्शन कर लिया। समर्थ रामदास जी ने जगाया था तो हनुमान जी को प्रकट कर लिया था। परमहंस योगानंदजी ने जगाया था तो संकल्प सामर्थ्य पाया। हम जितना अधिक भगवदीय अंश में रहेंगे, उतना अधिक सब सुगम हो जायेगा।

मंत्रदीक्षा के समय हम जो 10 माला जपने का नियम देते हैं, वह पाशवी अंश से ऊपर उठाने के लिए है। कोई दीक्षा लेकर प्राणायाम आदि करे तो और अच्छी तरह से, दृढ़ता से राक्षसी अंश से ऊपर आयेगा। रोज 5-7 प्राणायाम तो करने ही चाहिए। त्रिबंध प्राणायाम करने से भगवदीय अंश विकसित होने में मदद मिलेगी।

बहुत सरल साधन है। एकटक भगवान को, गुरु को देखते रहे। फिर आँखें बंद कर लें तो आज्ञाचक्र में उनकी आकृति दिखेगी। होंठों में ‘ॐ….ॐ….ॐ…’ जप चलता रहे, फिर मन इधर-उधर जाय तो ‘ॐऽऽऽऽऽ…. ॐऽऽ…’ का गुंजन करें।”

साधना में उन्नति हेतु प्रयोग

साधना में उन्नति हेतु कुछ प्रयोग, जो पूज्य बापू जी के सत्संग में आते हैं, यहाँ दिये जा रहे हैं-

मन की भटकान शीघ्रता से कम करने का प्रयोग

लाभः इस प्रयोग से सुषुम्ना नाड़ी का द्वार खुलता है और जल्दी आनंद प्राप्त होता है। चंचल मन तब तक भटकता रहेगा जब तक उसे भीतर का आनंद नहीं मिलेगा।

निज सुख बिनु मन होइ कि थीरा।

संत तुलसीदास जी

इस प्रयोग में ज्ञानमुद्रा के अभ्यास व ‘ॐकार’ के गुंजन से मन की भटकान शीघ्रता से कम होने लगेगी।

विधिः ब्राह्ममुहूर्त की अमृतवेला में शौच-स्नानादि से निवृत्त होकर गर्म आसन बिछा के पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन (देखें ऋषि प्रसाद, जनवरी 2015, पृष्ठ 26) या सुखासन में बैठ जाओ। 3-4 प्राणायाम कर लो। त्रिबंध के साथ अंतर्कुंभक व बहिर्कुंभक प्राणायाम हों तो बहुत अच्छा। तदनंतर हाथों के अँगूठे के पासवाली पहली उँगलियों के अग्रभाग अँगूठों के अग्रभागों से स्पर्श कराओ व शेष तीनों उंगलियाँ सीधी रखकर दोनों हाथ घुटनों पर रखो। गर्दन व रीढ़ की ह़ड्डी सीधी रहें। आँखें अर्धोन्मीलित (आधी खुली) व शरीर अडोल रहे।

अब गहरा श्वास लेकर ॐकार का दीर्घ गुंजन करो। प्रारम्भ में ध्वनि कंठ से निकलेगी। फिर गहराई में जाकर हृदय से ॐकार की ध्वनि निकालो। बाद में और गहरे जाकर नाभि या मूलाधार से ध्वनि उठाओ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2017, पृष्ठ संख्या 4,6 अंक 294

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