पेट को आराम भी दें

पेट को आराम भी दें


उपवास के निमित्त आहार का त्याग करने से आमाशय खाली हो जाता है तथा जठराग्नि के रूप में जो प्राण-ऊर्जा आहार को पचाने का कार्य करती है, उसका उपयोग पाचनतंत्र की सफाई में होने लगता है, जिससे रक्त शुद्ध होने लगता है तथा शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगती है। अतः नियमित रूप से कम से कम सप्ताह या पन्द्रह दिन में एक दिन उपवास करने वालों की रोगप्रतिकारक शक्ति की कमी से उत्पन्न होने वाले एवं पाचनसंबंधी रोगों से रक्षा होती है। आहार शरीर को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है जबकि उपवास शरीर को आरोग्य व शुद्धि प्रदान करने के साथ हमें मानसिक प्रसन्नता और आध्यात्मिक लाभ भी प्रदान करता है। दुर्बल लोगों को अपनी क्षमता से अधिक उपवास नहीं करना चाहिए।

भोजन हेतु कैसे पात्रों का उपयोग हो ?

भोजन बनाने व खाने हेतु एल्यूमीनियम और प्लास्टिक के बर्तनों के प्रयोग से भोजन में हानिकारक रासायनिक पदार्थ मिश्रित हो जाते हैं। एल्यूमीनियम के बर्तनों में पकाया गया विटामिन्सयुक्त पौष्टिक खाद्य पदार्थ भी अपने गुण खो बैठता है। विशेषज्ञों का मानना है कि एल्यूमीनियम की विषाक्तता के कारण आँतों में जलन होने लगती है तथा आँतों का कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। एल्यूमीनियम के बर्तनों में भोजन बनाना हानिकारक है।

अतः भोजन बनाने व जाने हेतु उपरोक्त बर्तनों की अपेक्षा देशी मिट्टी (चीनी मिट्टी आदि नहीं), काँच, स्टील या कलई किये हुए पीतल के बर्तनों का प्रयोग हितकारी है।

केला, पलाश अथवा बड़ के पत्ते रूचि उत्पन्न करने वाले तथा विषदोष नाशक और जठराग्निवर्धक होते हैं अतः भोजन करने के लिए इनकी पत्तलों का उपयोग भी हितावह है।

खाद्य पदार्थों को फ्रिज अथवा कोल्ड स्टोरेज में रखने से उनका प्राकृतिक स्वरूप बदल जाता है और पौष्टिक तत्त्वों में कमी आ जाती है।

भोजन में संयम व सावधानी रखने से तथा उपरोक्त नियमों का पालन करने से हम अपने शरीर को स्वस्थ एवं निरोगी रख सकते हैं तथा मन की प्रसन्नता पा सकते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2017, पृष्ठ संख्या 32 अंक 298

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