रोम, यूनान, मिस्र और भारत – इन चारों की संस्कृतियाँ अति प्राचीन हैं लेकिन तीन संस्कृतियों को धकेल दिया गया अजायबघरों में, अब केवल भारतीय संस्कृति की महक मौजूद है। उसको नष्ट करने के लिए लगे हैं पर भारतीय संस्कृति में अदभुत क्षमता है … मिट गये जहाँ से हमें मिटाने वाले।
अयोध्या का नाम फैजाबाद एवं प्रयाग का नाम इलाहाबाद रखा गया और संस्कृति के स्तम्भ संत-महात्माओं व समाज के बीच खाई खोदने का प्रयास किया गया। वे खाई खोदने वाले खोद-खोद के खप गये लेकिन जब तक संत इस धरती पर हैं, तब तक भारत की संस्कृति कभी लुप्त नहीं हो सकती, वह अक्षुण्ण रहेगी। भारतीय संस्कृति को भी अजायबघर में पहुँचाने के सपने देखने वालों की मलिन मुरादें साकार नहीं हो सकतीं क्योंकि भारतीय संस्कृति मिटी तो मानवता की मधुरता मिट जायेगी। रोम, यूनान व मिस्र की संस्कृतियों की नाईं जो भारतीय संस्कृति को कुचलने में लगे हैं, वे उससे बाज आयें। भारतवासी संगठित रहें, सजग रहें, अपनी महान संस्कृति एवं संतों के प्रति सदभाव-सम्पन्न हो जायें व देशविरोधियों की मलिन मुरादें नाकामयाब कर दें।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2017, पृष्ठ संख्या 7 अंक 300
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