होली का सिद्धान्त जीवन में लायें-पूज्य बापू जी

होली का सिद्धान्त जीवन में लायें-पूज्य बापू जी


(होलीः 1 मार्च, धुलेंडीः 2 मार्च 2018)

भक्त प्रह्लाद के जीवन से दो बातें प्रत्यक्ष हैं-

1.प्रह्लाद के जीवन में विरोध, प्रतिकूलताएँ आयीं पर वह उन विरोधों और प्रतिकूलताओं में गिरा नहीं, ऐसे ही जिसको ईश्वर की सर्वव्यापकता पर विश्वास है उसको प्रह्लाद की तरह विरोध, लोगों की डाँट, शिक्षकों का समझाना, साथियों का भड़काना, परिस्थितियों की विपरीतता अपने पथ से गिरा नहीं सकती।

2.प्रह्लाद ईश्वर की व्यापकता पर विश्वास करके भीतर से निश्चिंत एवं दृढ़ रहता था अर्थात् जगतरूपी हिरण्यकशिपु जब  तुम्हें दुःख दे तो तुम भी परमात्मा की सौम्य सत्ता पर विश्वास रखकर भीतर से निश्चिंत एवं दृढ़ रहना, परिस्थितियाँ बदल जायेंगी। परिस्थितियाँ आने-जाने वाली होती हैं। उनमें पिघलने वाले, सड़ने वाले, जलने वाले प्राकृतिक शरीर का नाश हो सकता है लेकिन आत्मा जो प्रह्लाद है, आनंदस्वरूप है उसका कभी नाश नहीं होता है।

होली व धुलेंडी का संदेश

शोक और खिन्नता भूल जायें और हर्ष से, प्रसन्नता से विभोर हो जायें यह होली का संदेश है। भिन्न-भिन्न प्रकार के रंगों से अपने तन के वस्त्र रंग देना और उन रंगों के बीच-बीच कभी कोई मिट्टी भी उँडेल देता है अर्थात् रंग छिड़कने के बीच धूल का भई प्रयोग हो जाता है, उसको धुलेंडी बोलते हैं। हमारे जीवन में भी अनेक प्रकार के हर्ष और शोक आयेंगे, अनेक प्रकार के प्रसंग पैदा होंगे और ऐसी रंग-बेरंगी परिस्थितियों पर आखिर तक एक दिन धूल पड़ जायेगी- इस बात की खबर यह धुलेंडी देती है। पृथ्वी की धूल और आकाश के इन्द्रधनुषी रंगों का मिलन – धरती और आकाश का मिलन अर्थात् हमारे जीवत्व और शिवत्व का मिलन – यह धुलेंडी का संदेश है।

स्वास्थ्य पर रंगों का प्रभाव

हमारे ऋषियों ने होली पर जिन पलाश फूल आदि के रंगों से खेलने की व्यवस्था की है, वे हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बड़े उपयोगी हैं। जो इन रंगों का उपयोग नहीं करता वह इनका उपयोग करने वालों की अपेक्षा ज्यादा खिन्न, ज्यादा अशांत होता है और गर्मी के कारण उसको ज्यादा रोगों से हानि होती है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2018, पृष्ठ संख्या 11, अंक 302

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