- पूज्य बापू जी
यह प्रकृति का विधान है कि जिसे जिस समय जिस वस्तु की अत्यंत आवश्यकता होती है उसे पूरी करने वाला उसके पास पहुँच जाता है अथवा तो मनुष्य स्वयं ही वहाँ पहुँच जाता है जहाँ उसकी आवश्यकता पूरी होने वाली है।
मुझसे ‘विश्व धर्म संसद, शिकागो’ में पत्रकारों ने पूछाः “भारत में ही भगवान के अवतार क्यों होते हैं ? हिन्दुस्तान में ही भगवान जन्म क्यों लेते हैं ? जब सारी सृष्टि भगवान की है तो आपके भगवान ने यूरोप या अमेरिका में अवतार क्यों नहीं लिया ? आद्य शंकराचार्य जी, गुरु नानक जी, संत कबीर जी, स्वामी रामतीर्थ जी जैसे महापुरुषों की श्रृंखला इन देशों में क्यों नहीं है ?”
मैंने उनसे पूछाः “जहाँ हरियाली होती है वहाँ वर्षा क्यों होती है और जहाँ वर्षा होती है वहाँ हरियाली क्यों होती है ?”
उन्होंने जवाब दियाः “बापू जी ! यह तो प्राकृतिक विधान है।”
तब मैंने कहाः “हमारे देश में अनादि काल से ही ब्रह्मविद्या और भक्ति का प्रचार हुआ है। इससे वहाँ भक्त पैदा होते रहे। जहाँ भक्त हुए वहाँ भगवान की माँग हुई तो भगवान व संत आये और जहाँ भगवान व संत आये वहाँ भक्तों की भक्ति और भी पुष्ट हुई। अतः जैसे जहाँ हरियाली वहाँ वर्षा और जहाँ वर्षा वहाँ हरियाली होती है वैसे ही हमारे देश में भक्तिरूपी हरियाली है इसलिए भगवान और संत भी बरसने के लिए बार-बार आते हैं।”
मैं दुनिया के अनेक देशों में घूमा, कई जगह प्रवचन भी किये परंतु भारत जितनी तादाद में तथा शांति से किसी दूसरे देश के लोग सत्संग सुन पाये हों ऐसा आज तक मैंने किसी भी देश में नहीं देखा। फिर चाहे ‘विश्व धर्म संसद’ ही क्यों न हो। जिसमें विश्वभर के वक्ता आयें वहाँ बोलने वाला 600 और सुनने वाले 1500 ! भारत में हर रोज़ सत्संग के महाकुम्भ लगते रहते हैं। भारत में आज भी लाखों की संख्या में हरिकथा के रसिक हैं। घरों में गीता एवं रामायण का पाठ होता है। भगवत्प्रेमी संतों के सत्संग में जा के उनसे ज्ञान-ध्यान प्राप्त कर श्रद्धालु अपना जीवन धन्य कर लेते हैं। अतः जहाँ-जहाँ भक्त और भगवत्कथा-प्रेमी होते हैं वहाँ-वहाँ भगवान और संतों का प्राकट्य भी होता ही रहता है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2018, पृष्ठ संख्या 9 अंक 303
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