ये 16 बातें समझ लें तो आपका पूर्ण विकास चुटकी में होगाः
1.आत्मबलः अपना आत्मबल विकसित करने के लिए ‘ॐ….ॐ….ॐ….ॐ….’ ऐसा जप करें।
2.दृढ़ संकल्पः कोई भी निर्णय लें तो पहले तीसरे नेत्र पर (भ्रूमध्य में आज्ञाचक्र पर) ध्यान करें और निर्णय लें और एक बार कोई भी छोटे मोटे काम का संकल्प करें तो उसमें लगे रहें।
3.निर्भयताः भय आये तो उसके भी साक्षी बन जायें और झाड़कर फेंक दें। यह सफलता की कुंजी है।
4.ज्ञानः आत्मा-परमात्मा और प्रकृति का ज्ञान पा लें। यह शरीर ‘क्षेत्र’ है और आत्मा ‘क्षेत्रज्ञ’ है। हाथ को पता नहीं कि ‘मैं हाथ हूँ’ लेकिन मुझे पता है, ‘यह हाथ है’। खेत को पता नहीं कि ‘मैं खेत हूँ’ लेकिन किसान को पता है, ‘यह खेत है’। ऐसे ही इस शरीररूपी खेत के द्वारा हम कार्य करते हैं अर्थात् बीज बोते हैं और उसके फल मिलते हैं। तो हम क्षेत्रज्ञ हैं – शरीर को और कर्मों को जानने वाले हैं। प्रकृति परिवर्तित होने वाली है और हम एकरस हैं। बचपन परिवर्तित हो गया, हम उसको जानने वाले वही के वही हैं। गरीबी अमीरी चली गयी, सुख-दुःख चला गया लेकिन हम हैं अपने आप, हर परिस्थिति के बाप। ऐसा दृढ़ विचार करने से, ज्ञान का आश्रय लेने से आप निर्भय और निःशंक होने लगेंगे।
5.नित्य योगः नित्य योग अर्थात् आप भगवान में थोड़ा शांत होइये और ‘भगवान नित्य हैं, आत्मा नित्य है और शरीर मरने के बाद भी मेरा आत्मा रहता है’ – इस प्रकार नित्य योग की स्मृति करें।
6.ईश्वर चिंतनः सत्यस्वरूप ईश्वर का चिंतन करें।
7.श्रद्धाः सत्शास्त्र, भगवान और गुरु में श्रद्धा – यह आपके आत्मविकास का बहुमूल्य खजाना है।
8.ईश्वर-विश्वासः ईश्वर में विश्वास रखें। जो हुआ, अच्छा हुआ, जो हो रहा है, अच्छा है और जो होगा वह भी अच्छा होगा, भले हमें अभी, इस समय बुरा लगता है। विघ्न-बाधा, मुसीबत और कठिनाइयाँ आती हैं तो विष की तरह लगती हैं लेकिन भीतर अमृत सँजोय हुए होती हैं। इसलिए कोई भी परिस्थिति आ जाय तो समझ लेना, ‘यह हमारी भलाई के लिए आयी है।’ आँधी तूफान आया है तो फिर शुद्ध वातावरण भी आयेगा।
9.सदाचरणः वचन देकर मुकर जाना, झूठ-कपट, चुगली करना आदि दुराचरण से अपने को बचाना।
10.संयमः पति-पत्नी के व्यवहार में खाने पीने में संयम रखें। इससे मनोबल, बुद्धिबल, आत्मबल का विकास होगा।
11.अहिंसाः वाणी, मन, बुद्धि के द्वारा किसी को चोट न पहुँचायें। शरीर के द्वारा जीव जंतुओं की हत्या, हिंसा न करें।
12.उचित व्यवहारः अपने से श्रेष्ठ पुरुषों का आदर से संग करें। अपने से छोटों के प्रति उदारता, दया रखें। जो अच्छे कार्य में, दैवी कार्य में लगे हैं उनका अनुमोदन करें और जो निपट निराले हैं उनकी उपेक्षा करें। यह कार्यकुशलता में आपको आगे ले जायेगा।
13.सेवा-परोपकारः आपके जीवन में परोपकार, सेवा का सदगुण होना चाहिए। स्वार्थरहित भलाई के काम प्रयत्नपूर्वक करने चाहिए। इससे आपके आत्मसंतोष, आत्मबल का विकास होता है।
14.तपः अपने जीवन में तपस्या लाइये। कठिनाई सहकर भी भजन, सेवा, धर्म-कर्म आदि में लगना चाहिए।
15.सत्य का पक्ष लेनाः कहीं भी कोई बात हो तो आप हमेशा सत्य, न्याय का पक्ष लीजिये। अपने वाले की तरफ ज्यादा झुकाव और पराये वाले के प्रति क्रूरता करके आप अपनी आत्मशक्ति का गला मत घोटिये। अपने वाले के प्रति न्याय और दूसरे के प्रति उदारता रखें।
16.प्रेम व मधुर स्वभावः सबसे प्रेम व मधुर स्वभाव से पेश आइये।
ये 16 बातें लौकिक उऩ्नति, आधिदैविक उन्नति और आध्यात्मिक अर्थात् आत्मिक उन्नति आदि सभी उन्नतियों की कुंजियाँ हैं।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2018, पृष्ठ संख्या 12, 13 अंक 306
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