मुख पर ब्रह्मचर्य का तेज, अंग-अंग में संस्कृति रक्षा के लिए उत्साह, हृदय में निःस्वार्थ सेवाभाव – कुछ ऐसे गुण झलकते थे युवा वीर छत्रसाल के जीवन में। उस समय भारतभूमि व सनातन संस्कृति पर मुगलों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था। अपनी संस्कृति की रक्षा करने हेतु छत्रसाल ने वीर युवकों का एक दल संगठित कर लिया था। पर मुगलों के पास लाखों सैनिक, हजारों तोपें सैंकड़ों किले व अगाध सम्पदा थी एवं देश के अधिकांश भाग पर उन्होंने अपना अधिकार जमा लिया था। छत्रसाल उत्साही और साहसी तो थे पर आँखें मूँदकर आग में छलाँग लगाने वालों में से नहीं थे। भगवद्ध्यान करने वाले छत्रसाल सूक्ष्म बुद्धि के धनी थे। वे मुगल सेना में भर्ती हुए और उनका बल व कमजोरियाँ भाँप लीं।
बाद में अपने राज्य में आकर छत्रसाल ने मातृभूमि को मुक्त कराने की गतिविधियाँ तेज कर दीं और कुछ ही समय में बुंदेलखंड का अधिकांश भाग मुगल शासन से मुक्त करा लिया।
औरंगजेब घबराया। उसने अनेक सूबेदारों को एक साथ छत्रसाल पर आक्रमण करने के लिए भेजा। यह परिस्थिति छत्रसाल के लिए चिंताजनक तो थी पर गुरु प्राणनाथ का कृपापात्र वह वीर चिंतित नहीं हुआ बल्कि युक्ति से काम लिया। उन्होंने औरंगजेब के पास संधि-प्रस्ताव भेजा।
औरंगजेब ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। ज्यों ही मुगल फौजदार बेफिक्र व असावधान हुए, त्यों ही छत्रसाल ने उन पर आक्रमण कर दिया। समाचार जब तक आगरा में औरंगजेब तक पहुँचे उसके पहले ही छत्रसाल ने बुंदेलखंड के अनेक स्थानों से मुगलों को खदेड़ डाला।
औरंगजेब ने पुनः सबको मिलकर आक्रमण करने का आदेश दिया। छत्रसाल को यह ज्ञात हुआ। अपने सदगुरु प्राणनाथ जी से अंतर्यामी आत्मदेव में शांत होकर सत्प्रेरणा पाने की कला छत्रसाल ने सीख ली थी। झरोखे से बाहर दूर पर्वत-शिखर पर टिकी उनकी दृष्टि सिमट गयी, आँखें बंद हो गयीं। मन की वृत्ति अंतर्यामी की गहराई में डूब गयी। शरीर कुछ समय के लिए निश्चेष्ट हो गया। कुछ समय बाद चेहरे की गम्भीरता सौम्यता में बदल गयी और आँखें खुल गयीं। उपाय मिल गया था। छत्रसाल ने सेनानायकों को आदेश देकर गतिविधियाँ रोक दी। मुगल फौजदार छत्रसाल से युद्ध करने में घबराते थे। वे इस संकट को जहाँ तक हो सके टालना चाहते थे। कुछ दिनों तक छत्रसाल के आक्रमणों का समाचार नहीं मिला तो उन्होंने औरंगजेब को सूचित कर दिया कि “अब छत्रसाल डर गये हैं।’ इस प्रकार मुगल सेना ने छत्रसाल पर आक्रमण नहीं किया।
कुछ समय बाद छत्रसाल ने पुनः मातृभूमि व संस्कृति के विरोधी उन मुगलों पर आक्रमण कर उनके सेनानायकों को परास्त किया और बंदी बनाया। मुगलों की प्रतिष्ठा धूमिल हो गयी।
मुगल साम्राज्य के सामने छत्रसाल की सेना व साधन-सामग्री कुछ भी नहीं थी लेकिन उनके पास दृढ़निश्चयी हृदय, पवित्र उद्देश्य, निःस्वार्थ सेवा, भगवदाश्रय तथा गुरु का आशीर्वाद व मार्गदर्शन था, जिसके बल पर वे बुंदेलखंड की विधर्मियों से रक्षा करने में सफल हो गये।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2018, पृष्ठ संख्या 20 अंक 306
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