एक बार स्वामी अखंडानंद जी की किसी शिष्या ने उनके चरणों में अपना एक प्रश्न रखाः “बहुत से महात्मा चमत्कार दिखाते हैं, आप क्यों नहीं दिखाते ?”
स्वामी जीः “तुम जब पहली बार हमसे मिलीं तो तुम्हारे चित्त की क्या स्थिति थी ?”
“उस समय तो मैं अत्यधिक डाँवाडोल स्थिति में थी।”
“सत्संग करते हुए 10 वर्ष तो तुमको हो ही चुके होंगे, बताओ, अब तुम्हारे चित्त की क्या स्थिति है ?”
“आपसे प्रथम मिलने के बाद, इस क्षण पर्यन्त मुझे ऐसा स्मरण नहीं कि मैं रोयी हूँ, अथवा कभी दुःखी हुई हूँ। निरंतर आपकी कृपा का अनुभव होता है।
“क्या तुम उसको हमारा ‘चमत्कार’ नहीं मानतीं ? ‘सिद्धियाँ-चमत्कार’ चमत्कार नहीं हैं। असली चमत्कार है चित्त का परिवर्तन !”
और यह चमत्कार पूज्य बापू जी के अनगिनत शिष्यों, भक्तों एवं सम्पर्क में आने वालों के जीवन में प्रत्यक्ष देखने को मिलता है।
स्रोतः ऋषि प्रसादः अगस्त 2018, पृष्ठ संख्या 7 अंक 308
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