(शरद ऋतुः 23 अगस्त 2018 से 22 अक्तूबर 2018 तक)
शरद ऋतु में ध्यान देने योग्य बातें-
1.रोगाणां शारदी माता। रोगों की माता है यह शरद ऋतु। वर्षा ऋतु में संचित पित्त इस ऋतु में प्रकुपित होता है। इसलिए शरद पूर्णिमा की चाँदनी में उस पित्त का शमन किया जाता है।
इस मौसम में खीर खानी चाहिए। खीर को भोजन में रसराज कहा गया है। सीता माता जब अशोक वाटिका में नजरकैद थीं तो रावण का भेजा हुआ भोजन तो क्या खायेंगी, तब इन्द्र देवता खीर भेजते थे और सीता जी वह खाती थीं।
2.इस ऋतु में दूध, घी, चावल, लौकी, पेठा, अंगूर, किशमिश, काली द्राक्ष तथा मौसम के अनुसार फल आदि स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं। गुलकंद खाने से भी पित्तशामक शक्ति पैदा होती है। रात को (सोने से कम से कम घंटाभर पहले) मीठा दूध घूँट-घूँट मुँह में बार-बार मुँह में घुमाते हुए पियें। दिन में 7-8 गिलास पानी शरीर में जाय, यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। (किशमिश व गुलकंद संत श्री आशाराम जी आश्रम व समिति के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध हैं। – संकलक)
3.खट्टे, खारे, तीखे पदार्थ व भारी खुराक का त्याग करना बुद्धिमत्ता है। तली हुई चीजें, अचारवाली खुराक, रात को देरी से खाना अथवा बासी खुराक खाना और देरी से सोना स्वास्थ्य के लिए खतरा है क्योंकि शरद् ऋतु रोगों की माता है। कोई भी छोटा-मोटा रोग होगा तो इस ऋतु में भड़केगा इसलिए उसको बिठा दो।
4.शरद ऋतु में कड़वा रस बहुत उपयोगी है। कभी करेला चबा लिया, कभी नीम के 12 पत्ते चबा लिये। यह कड़वा रस खाने में तो अच्छा नहीं लगता लेकिन भूख लगाता है और भोजन को पचा देता है।
5.पाचन ठीक करने का एक मंत्र भी हैः
अगस्तयं कुम्भकर्णं च शनिं च वडवानलम्।
आहारपरिपाकार्थं स्मरेद् भीमं च पंचमम्।।
यह मंत्र पढ़ के पेट पर हाथ घुमाने से भी पाचनतंत्र ठीक रहता है।
6.बार-बार मुँह चलाना (खाना) ठीक नहीं, दिन में दो बार भोजन करें। और वह सात्त्विक व सुपाच्य हो। भोजन शांत व प्रसन्न होकर करें। भगवन्नाम से आप्लावित (तर, नम) निगाह डालकर भोजन को प्रसाद बना के खायें।
7.50 साल के बाद स्वास्थ्य जरा नपा तुला रहता है, रोगप्रतिकारक शक्ति दबी रहती है। इस समय नमक, शक्कर और घी-तेल पाचन की स्थिति पर ध्यान देते हुए नपा-तुला खायें, थोड़ा भी ज्यादा खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
8.कईयों की आँखें जलती होंगी, लाल हो जाती होंगी। कइयों को सिरदर्द होता होगा। तो एक-एक घूँट पानी मुँह में लेकर अंदर गरारा (कुल्ला) करता रहे और चाँदी का बर्तन मिले अथवा जो भी मिल जाय, उसमें पानी भर के आँख डुबा के पटपटाता जाय। मुँह में दुबारा पानी भर के फिर दूसरी आँख डुबा के ऐसा करे। फिर इसे कुछ बार दोहराये। इससे आँखों व सिर की गर्मी निकलेगी। सिरदर्द और आँखों की जलन में आराम होगा व नेत्रज्योति में वृद्धि होगी।
9.अगर स्वस्थ रहना है और सात्त्विक सुख लेना है तो सूर्योदय के पहले उठना न भूलें। आरोग्य और प्रसन्नता की कुंजी है सुबह-सुबह वायु सेवन करना। सूरज की किरणें नहीं निकली हों और चन्द्रमा की किरणें शांत हो गयी हों उस समय वातावरण में सात्त्विकता का प्रभाव होता है। वैज्ञानिक भाषा में कहें तो इस समय ओजोन वायु खूब मात्रा में होती है वातावरण में ऋणायनों प्रमाण अधिक होता है। वह स्वास्थ्यप्रद होती है। सुबह के समय की जो हवा है वह मरीज को भी थोड़ी सांत्वना देती है।
दुग्ध सेवन संबंधी महत्त्वपूर्ण बातें
क्या करें | क्या न करें |
रात्रि को दूध पीना पथ्य (हितकर), अनेक दोषों का शामक एवं नेत्रहितकर होता है। | फल, तुलसी, अदरक, लहसुन, खट्टे एवं नमकयुक्त पदार्थों के साथ दूध का सेवन नहीं करना चाहिए। |
पीपरामूल, काली मिर्च, सोंठ – इनमें से एक या अधिक द्रव्य दूध के साथ लेने से वह सुपाच्य हो जाता है तथा इन द्रव्यों के औषधीय गुणों का भी लाभ प्राप्त होता है। | नया बुखार, मंदाग्नि, कृमिरोग, त्वचारोग, दस्त, कफ के रोग आदि में दूध का सेवन न करें। |
उबले हुए गर्म दूध का सेवन वात-कफशामक तथा औटाकर शीतल किया हुआ दूध पित्तशामक होता है। | दूध को ज्यादा उबालने से वह पचने में भारी हो जाता है। |
देशी गाय के दूध में देशी घी मिला के पीने से मेधाशक्ति बढ़ती है। | बासी, खट्टा, खराब स्वादवाला, फटा हुआ एवं खटाई पड़ा हुआ दूध भूल के भी नहीं पीना चाहिए। |
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2018, पृष्ठ संख्या 30,31 अंक 308
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ